Jaage UP Bihar Song: मनोज भावुक का जनगीत 'जागे यूपी-बिहार' इन दिनों खूब चर्चा में है. यह गीत छठ के बाद भी लोग बड़े दिलचस्पी से देख और सुन रहे हैं. खास बात यह है कि यह पारंपरिक छठ गीतों से अलग, एक नया और अनोखा स्वाद लाता है. यह गीत न केवल भावुकता से भरा है, बल्कि यूपी-बिहार के पलायन के दर्द और यहां की सच्चाई को बहुत गहराई से दिखाता है.


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जानकारी के लिए बता दें कि गीतकार मनोज भावुक ने इस रचना के जरिए यूपी और बिहार की सरकारों से सवाल पूछे हैं और लोगों को जागरूक करने की कोशिश की है. गीत में इस क्षेत्र के लोगों की पीड़ा, उनके संघर्ष और उनके सपनों की तस्वीर उकेरी गई है. यह गीत लोगों को उनके अधिकारों और जरूरतों के प्रति जागरूक करता है. यही वजह है कि छठ खत्म होने के बाद भी लोग इस गीत से जुड़ रहे हैं.


मनोज भावुक का छठ गीत 


छुट्टी खातिर कहिया ले अर्जी लगइब
कहिया ले जोड़बs तू हाथ 
कहिया ले रेलिया रहि इहाँ बैरन 
कहिया मिली सुख के साथ


छठी मइया दिहीं ना असीसिया 
जागे यूपी-बिहार 
भटके ना बने-बने लोगवा 
मिले गाँवे रोजगार


रोटी के टुकड़ा के जिनगी रखैल 
रहि-रहि के हँकरत बा कोल्हू के बैल 
दुनिया के स्वर्ग बनवलें बिहारी 
काहे अपने धरती प भइलें भिखारी


चमकल मॉरीशस, दिल्ली, बंबे 
चमके अपनों दुआर,
चमके गऊँआ-जवार,
चमके यूपी-बिहार 
 
छठी मइया दिहीं ना असीसिया 
जागे यूपी-बिहार 
भटके ना बने-बने लोगवा 
मिले गाँवे 


अँगना में माई उचारेली कउवा 
कब अइहें बबुआ पुकारेली नउवा 
नोकरी के चक्कर में का-का बिलाता 
बंजर भइल जाता सब रिश्ता-नाता 


माई संगे ठेकुआ बनाईं
माई हमके धरे अँकवार  


छठी मइया दिहीं ना असीसिया 
जागे यूपी-बिहार 
भटके ना बने-बने लोगवा 
मिले गाँवे रोजगार   


गँउआ के धरती पड़ल बाटे परती 
ओही जी उगाईं सोना आ चानी 
ओही जी बनाईं अब महल-अटारी 
जहवॉ बाटे टुटही पलानी 


केतना सिखवलस कोरोनवा 
सुनीं गाँव के पुकार


छठी मइया दिहीं ना असीसिया 
जागे यूपी-बिहार 
भटके ना बने-बने लोगवा 
मिले गाँवे रोजगार


 


गीत को गायक मनोहर सिंह ने आवाज दी है, संगीत पीयूष मिश्रा का है और निर्देशन उज्ज्वल पांडेय ने किया है. हर्षित पांडेय और श्रेया पांडेय ने इसमें शानदार अभिनय किया है. यह गीत स्वर कोकिला शारदा सिन्हा को समर्पित है और यूपी-बिहार की सच्ची तस्वीर पेश करता है. गीत के बोल सीधे दिल को छूते हैं. इसमें सवाल है कि कब तक यूपी-बिहार के लोग रोजगार के लिए अपने गांव-घर छोड़कर भटकते रहेंगे? कब तक दूसरे राज्यों में मजदूरी करेंगे? गीत में उस दर्द को उभारा गया है, जब गांव की मां अपने बेटे के लौटने की राह देखती है और नाई उनके आने की खबर सुनने को बेचैन रहता है.


साथ ही गीत में यूपी-बिहार के उज्ज्वल भविष्य की उम्मीद भी झलकती है. यह कहता है कि जैसे इन राज्यों के लोग दुनिया के अलग-अलग हिस्सों को संवार सकते हैं, वैसे ही अपने गांव और जमीन को भी चमका सकते हैं. कोरोना महामारी का जिक्र करते हुए यह गीत हमें सिखाता है कि अपने गांव-घर को संवारने का समय आ गया है. 'जागे यूपी-बिहार' सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि एक आंदोलन है, जो पलायन और बेरोजगारी के खिलाफ आवाज उठाता है. यह गीत हमें सोचने पर मजबूर करता है कि हम अपने गांव-घर को कैसे आत्मनिर्भर और खुशहाल बना सकते हैं.


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