पटनाः Karva Chauth ki Katha: सनातन परंपरा में सुहागिन महिलाओं द्वारा करवाचौथ का व्रत रखा जाता है. यह व्रत हिंदू परंपरा का खास प्रतीक है. विवाह और दांपत्य की मधुरता और पवित्रता का प्रतीक यह त्योहार हर तरीके से बेहद खास होता है. इस व्रत की कहानियों में एक स्त्री वीरावती की कथा बहुत प्रसिद्ध है. वीरावती एक सेठ की पुत्री है और उसके सात भाई हैं. करवाचौथ के व्रत के दिन वह भूल से बिना चांद देखे भोजन कर लेती है. इससे उसके पति की मृत्यु हो जाती है. बाद में वह पश्चाताप और अनुष्ठान करती है, जिससे उसका पति जीवित हो जाता है. करवाचौथ के तौर पर लगभग सभी ने यही कथा सुनी है. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

यमराज का वरदान है करवा चौथ
असल में यह सिर्फ व्रत का लाभ बताने वाली कथा है. कार्तिक की चतुर्थी का नाम करवाचौथ कैसे पड़ा, इसकी कहानी कुछ और ही है. असल में यह करवा नाम की एक दूसरी स्त्री की कहानी है, जिसने सावित्री की ही तरह अपने पति के प्राण यमराज से बचा लिए थे. तब यमराज ने करवा को उसकी पति श्रद्धा देखकर वरदान दिया था कि इस विशेष दिन को तुम्हारे नाम के व्रत से जाना जाएगा और जो स्त्री ऐसा व्रत करेगी उसका अखंड सुहाग बना रहेगा. तबसे ही करवाचौथ व्रत की परंपरा चल पड़ी है. जानिए करवा चौथ की असली कहानी.


एक प्राचीन स्त्री की कहानी
प्राचीन समय में करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री थी. वह अपने पति के साथ नदी किनारे के एक गाँव में रहती थी. उसका पति वृद्ध था. एक दिन वह नदी में स्नान करने गया. नदी में नहाते समय एक मगर ने उसे पकड़ लिया. इस पर व्यक्ति 'करवा करवा' चिल्लाकर अपनी पत्नी को सहायता के लिए पुकारने लगा. करवा पतिव्रता स्त्री थी. आवाज़ को सुनकर करवा भागकर अपने पति के पास पहुंची और दौड़कर कच्चे धागे से मगर को आन देकर बांध दिया. मगर को सूत के कच्चे धागे से बांधने के बाद करवा यमराज के पास पहुँची. 


सींक का यह है महत्व
वे उस समय चित्रगुप्त के खाते देख रहे थे. करवा ने सात सींक ले उन्हें झाड़ना शुरू किया, यमराज के खाते आकाश में उड़ने लगे. यमराज घबरा गए और बोले- 'देवी! तू क्या चाहती है?' करवा ने कहा- 'हे प्रभु! एक मगर ने नदी के जल में मेरे पति का पैर पकड़ लिया है. उस मगर को आप अपनी शक्ति से अपने लोक (नरक) में ले आओ और मेरे पति को चिरायु करो.' करवा की बात सुनकर यमराज बोले- 'देवी! अभी मगर की आयु शेष है. अत: आयु रहते हुए मैं असमय मगर को मार नहीं सकता.' इस पर करवा ने कहा- 'यदि मगर को मारकर आप मेरे पति की रक्षा नहीं करोगे, तो मैं शाप देकर आपको नष्ट कर दूंगी.' 


करवा की धमकी से डर गए यमराज
करवा की धमकी से यमराज डर गए. वे करवा के साथ वहाँ आए, जहाँ मगर ने उसके पति को पकड़ रखा था. यमराज ने मगर को मारकर यमलोक पहुँचा दिया और करवा के पति की प्राण रक्षा कर उसे दीर्घायु प्रदान की. जाते समय वह करवा को सुख-समृद्धि देते गए तथा यह वर भी दिया- 'जो स्त्री इस दिन व्रत करेगी, उनके सौभाग्य की मैं रक्षा करूंगा.' करवा ने पतिव्रत के बल से अपने पति के प्राणों की रक्षा की थी. इस घटना के दिन से करवा चौथ का व्रत करवा के नाम से प्रचलित हो गया. जिस दिन करवा ने अपने पति के प्राण बचाए थे, उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चौथ थी. हे करवा माता! जैसे आपने (करवा) अपने पति की प्राण रक्षा की वैसे ही सबके पतियों के जीवन की रक्षा करना.


यह भी पढ़िएः Kartik Lakshami Maa Aagman: कार्तिक मास में घर आएंगी मां लक्ष्मी, बस ऐसे दें माता को आवाज