Valmiki Jayanti 2022: भारत देश ऋषि, मुनियों और वीर पुरुषों से भरा हुआ देश है. जिनके पीछे कई कथाएं है. प्राचीन काल में कई महर्षियों ने अपना योगदान दिया है और उन्होंने कई महान कथाओं की रचना की है. उन्ही में से एक महान महर्षि थे वाल्मीकि जी. आज पूरे देश में वाल्मीकि जयंती मनाई जा रही है. हर साल वाल्मीकि जयंती पूर्णिमा तिथि के दिन मनाई जाती है. आज शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के आरंभ में 9 अक्टूबर 2022 को  03:41 बजे से शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि समाप्त 10 अक्टूबर 2022 पूर्वाह्न 02:24 बजे तक वाल्मीकि जयंती मनाई जाएगी. महर्षि वाल्मीकि रामायण के रचनाकार के रूप में जाने जाते हैं. 


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महर्षि वाल्मीकि का जीवन लोगों के लिए प्रेरणादायक है. लोग आज के समय में उनसे सीख ले सकते हैं. महर्षि वाल्मीकि के बारे में कई कहानियां है. उनके बारे में विभिन्न किताबों में अलग-अलग बातें कही गई है. 


महर्षि वाल्मीकि भारत में महान ऋषि मुनियों में से एक माने जाते हैं. हालांकि जानकारी के मुताबिक महर्षि वाल्मीकि का नाम रत्नाकर था. बताया जाता है, कहा जाता है कि वे एक डाकू हुआ करते थे. इसी के चलते वह अपने परिवार का भरण पोषण करते थे. 


जानिए डाकू से कैसे बने ऋषि
-कहानियों के अनुसार जब एक बार वे इसी प्रकार से लूट के लिए निकले थे. तब उन्हें रास्ते में नारद मुनि मिले थे. जिसके बाद वाल्मीकि ने नारद मुनि से लूट का प्रयास किया. जिसके बाद नारद मुनि ने उनसे कुछ सवाल पूछे. उन्होंने कहा कि तुम लूट पाट क्यों करते हो? जिसके बाद वाल्मीकि ने उत्तर दिया कि यह उनका काम है और इसी से वे अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं. 


-जिसके जवाब में नारद मुनि ने उनसे कहा कि यह पाप है, और इस फल का भागीदार तुम्हारा परिवार नहीं बनेगा, तुम बनोगे. जिसके बाद वाल्मीकि हैरान रह गए. उन्होंने नारद जी का आशीर्वाद लेकर तपस्या का रास्ता चुन लिया. 


-जिसके बाद वाल्मीकि ने सत्य का रास्ता अपनाया और उन्होंने राम नाम का जप शुरू कर दिया, हालांकि महर्षि वाल्मीकि राम नाम को सही तरीके से नहीं ले पाते थे. जिसपर नारद जी ने उन्हें मरा मरा का जप करने को कहा. महर्षि वाल्मीकि ने मरा मरा का सच्चे मन से जाप किया. जप करते समय मुख से राम नाम निकला था. 


-महर्षि वाल्मीकि रामायण के रचनाकार थे. साथ ही वे भगवान श्रीराम के दोनों पुत्र लव और कुश के गुरु भी थे. महर्षि वाल्मीकि राम नाम का जप करते हुए महाज्ञानी बन गए. आज भी उन्हें रामायण के रचनाकार के रूप में याद किया जाता है. उन्होंने इसे संस्कृत भाषा में लिखा था. 


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