पटनाः Pitru Paksh 2022: आश्विन माह की शुरुआत के साथ पितृ पक्ष की शुरुआत हो चुकी है. इसी के साथ गयाजी की ओर श्रद्धालुओं के बढ़ते कदम यह बता रहे हैं कि फल्गू नदी के तट पर बसा यह तीर्थ आत्मा और परमात्मा के मिलन का केंद्र है. गया में पिंडदान करने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. यहां इस कर्म के लिए कई वेदियां बनी हैं, सभी का अपना अलग महत्व है, लेकिन इनमें भी सबसे महत्वपूर्ण है धर्मारण्य वेदी. यही वजह है कि इस वेदी पर लोग जरूर पिंड दान करते हैं. इस वेदी पर पिंडदान के बाद ही पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. यहां उन्हें पितृदोष और प्रेतबाधा से मुक्ति मिलती है. 


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54 वेदियों में से एक धर्मारण्य वेदी
पुराणें के अनुसार गया में प्राचीन काल में 365 वेदियां थीं, जहां लोग पिंडदान किया करते थे. वर्तमान में 54 वेदियां हैं, जहां लोग पिंडदान और नौ स्थानों पर तर्पण कर अपने पुरखों का श्राद्ध करते हैं.  इन्हीं 54 वेदियों में से एक वेदी धर्मारण्य वेदी है. यह वेदी गया से करीब 15 मिलोमीटर दूर बोधगया में स्थित है. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक कुरुक्षेत्र में महाभारत युद्ध के बाद भगवान कृष्ण यहां पांडवों को लेकर आए थे. भगवान कृष्ण ने ही पांडवों से यहां पितृयज्ञ करवाया था. हिंदू संस्कारों में पंचतीर्थ वेदी में धर्मारण्य वेदी की गणना की जाती है. 


धर्मराज युधिष्ठिर ने किया था पितृयज्ञ 
गयावाल तीर्थवृत्ति सुधारिनी सभा के मंत्री और गयवाल पंडा मनीलाल बारीक के मुताबिक स्कंद पुराण के अनुसार, महाभारत युद्ध के दौरान मारे गए लोगों की आत्मा की शांति और पश्चाताप के लिए धर्मराज युधिष्ठिर ने धर्मारण्य पिंडवेदी पर यज्ञ का आयोजन कर पिंडदान किया था. उन्होंने बताया कि यहां त्रिपिंडी श्राद्ध का महत्व है. जिसके तहत यहां जौ, चावल, तिल और गुड़ से पिंड दिया जाता है. पिंडदान के कर्मकांड को संपन्न कर पिंड सामग्री को अष्टकमल आकार के धर्मारण्य यज्ञकूप में श्रद्धालु विसर्जित कर देते हैं. कई पिंडदानी अरहट कूप में त्रिपिंडी श्राद्ध के पश्चात प्रेत बाधा से मुक्ति के लिए नारियल छोड़कर अपनी आस्था पूर्ण करते हैं.


पितृदोष, प्रेतबाधा से मिलती है मुक्ति
स्थानीय पुरोहित ने बताया कि धर्मारण्य वेदी पर पिंडदान करने से अकाल मृत्यु का भय, पितृदोष से मुक्ति और घर में प्रेतबाधा से भी शांति मिलती है. पूर्वज जो मृत्यु के बाद प्रेतयोनि में प्रवेश कर जाते हैं. अपने ही घर में लोगों को तंग करने लगते हैं. उनका यहां पिंडदान हो जाने से उन्हें शांति मिल जाती है और वे मोक्ष को प्राप्त कर लेते हैं. धर्मशास्त्रों के अनुसार, धर्मराज युधिष्ठिर ने धर्मारण्य पिंडवेदी पर पिंडदान करने के बाद महाबोधि मंदिर स्थित धर्म नाम के शिवलिंग और महाबोधि वृक्ष को नमन किया था. कालांतर से भगवान बुद्ध को भगवान विष्णु को अवतार मानकर सनातनी यहां भी पिंडदान करते हैं.


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