पटना : 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान सैनिकों और किसानों का मनोबल बढ़ाने के लिए ‘जय जवान’ ‘जय किसान’ का नारा देने वाले पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के जीवन की कई किताबों में छाप हैं. जब-जब इन किताबों के शब्दों को पढ़ा जाता है तो शास्त्री अल्फाज बन लोगों के बीच उभरते हैं. लालबहादुर शास्त्री ने अपने विनम्र स्वाभाव और मृदुभाषी व्यवहार से भारत की राजनीति पर अमिट छाप छोड़ी थी. बता दें कि लालबहादुर शास्त्री का बिहार के पटना शहर से एक अलग ही लगाव था. दरअसल, बिहार के कदमकुआं के खासमहल में उनकी बहन सुंदरी देवी का निवास स्थान था. स्वतंत्र भारत की आजादी के अंदोलन में भाग लेने वाले शास्त्री जब कभी पटना आते थे तो अपनी बहन के घर कदमकुआं जरूर आते थे. पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की बात आज इसलिए क्योंकि आज उनका 119वीं जयंती है.


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बहन से मिलने पटना आते थे शास्त्री
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की बहन सुंदरी देवी पटना के कदमकुआं में रहती थी. उनकी बहन भी कांग्रेस की कद्दावर नेता थीं. जब देश आजाद हुआ था, तो स्वतंत्र भारत में विधायक भी रहीं. उनकी बहन की शादी लोकनायक जयप्रकाश नारायण के भतीजे शंभूशरण से हुई थी. बहन सुंदरी देवी पति शंभू शरण के देहांत के बाद पटना से अपने मायके बनारस चली गई थी. एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बता दें कि जब सुंदरी देवी 1964 में बीमार पड़ीं थी, तो उनको इलाज के लिए पटना मेडिकल कॉलेज और अस्‍पताल (पीएमसीएच) में भर्ती कराया गया था. जब बहन का अस्पताल में इलाज चल रहा था तो लाल बहादुर शास्‍त्री प्रधानमंत्री रहते हुए भी अपनी बहन से पटना आए थे.


शास्त्री ने दिया ‘जय जवान’ ‘जय किसान’ का नारा
बता दें कि 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान जब देश में ‘भोजन की कमी’ आई थी तो पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने सैनिकों और किसानों का मनोबल बढ़ाने के लिए ‘जय जवान’ ‘जय किसान’ का नारा दिया था. जब युद्ध हुआ था तो उन्होंने अपना वेतन तक लेना बंद कर दिया था. युद्ध के समय उन्होंने देश के नागरिक को एक जुट किया और देश को जीत दिलाई. लाल बहादुर शास्त्री ने अपने विनम्र स्वाभाव, मृदुभाषी व्यवहार और आम लोगों के बीच भारत की राजनीति पर अमिट छाप छोड़ी थी. उनकी आदत आज भी लोगों के बीच बनी हुई है और यही कारण है कि वे लोगों को सबसे प्रिय प्रधानमंत्रियों में से एक है.


ताशकंद में लाल बहादुर ने ली थी अंतिम सांस
बता दें कि मुगलसराय में शारदा प्रसाद श्रीवास्तव और रामदुलारी देवी के घर जन्मे लाल बहादुर शास्त्री 1964 से 1966 तक भारत के दूसरे प्रधानमंत्री रहे थे. साथ ही 1961 से 1963 तक देश के छठे गृह मंत्री के रूप में भी उन्होंने कार्य किया. इसके अलावा 11 जनवरी, 1966 को कार्डियक अरेस्ट के बाद लाल बहादुर शास्त्री ने ताशकंद में अंतिम सांस ली. लाल बहादुर शास्त्री को श्वेत क्रांति जैसे ऐतिहासिक अभियान शुरू करने के लिए भी जाना जाता है, जिसने देश में दूध के उत्पादन बढ़ाया.


शास्त्री ने रेलमंत्री के पद से भी दिया था इस्तीफा
पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने देश में किसानों की समृद्धि और भारत को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने का कार्य किया था. जब लाल बहादुर शास्त्री रेलमंत्री थे तो उनके कार्यकाल के दौरान एक रेल दुर्घटना में कई लोगों की जान चली गई. इस हादसे के बाद शास्त्री इतने हताश हुए कि दुर्घटना के लिए उन्होंने खुद को जिम्मेदार मानते हुए पद से इस्तीफा दे दिया था.


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