पटनाः Mokshada Ekadashi Vrat Katha: मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी मनाई जाती है. यह एकादशी सभी व्रतों में सर्वश्रेष्ठ है. जो इस एकादशी में सिर्फ उपवास भी कर लेता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस बार मोक्षदा एकादशी 3 दिसंबर 2022 को है. इस दिन शनिवार का दिन है साथ ही यह एकादशी पंचक और भद्रा के साथ पड़ रही है. मोक्षदा एकादशी का क्या महत्व है, इसकी कथा श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी. 


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युधिष्ठिर ने सुनी कथा
जुए से राज्य हार चुके महाराज युधिष्ठिर परिवार सहित वन में विचर रहे थे. इस दौरान श्रीकृष्ण उनके सहायक थे और वह उन्हें प्रमुख व्रतों और अनुष्ठानों की जानकारी दे रहे थे. युधिष्ठिर ने उनसे मार्गशीर्ष मास की कृष्ण एकादशी का वर्णन सुना तो उन्हें शुक्ल पक्ष की एकादशी के बारे में भी जानने की जिज्ञासा हुई. तब उनके पूछने पर श्रीकृष्ण ने कथा आरंभ की. उन्होंने बताया कि गोकुल नगर में वैखानस नामक राजा राज्य करता था. उसके राज्य हर तरीके से संपन्न था. एक रात राजा ने स्वप्न देखा कि उसके पिता नरक में हैं. 


राजा के पिता को था नर्क का कष्ट
सुबह वह विद्वान ब्राह्मणों के पास गया और अपना स्वप्न सुनाया. कहा- मैंने अपने पिता को नरक में कष्ट उठाते देखा है. उन्होंने मुझसे कहा कि हे पुत्र मैं नरक में पड़ा हूँ. यहाँ से तुम मुझे मुक्त कराओ. जबसे मैंने ये वचन सुने हैं तबसे मैं बहुत बेचैन हूँ. क्या करूँ? ब्राह्मणों ने कहा- हे राजन! यहाँ पास ही भूत, भविष्य, वर्तमान के ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है. आपकी समस्या का हल वे जरूर करेंगे. ऐसा सुनकर राजा मुनि के आश्रम पर गया. उस आश्रम में अनेक शांत चित्त योगी और मुनि तपस्या कर रहे थे. उसी जगह पर्वत मुनि बैठे थे. 


पर्वत ऋषि से मिले राजा
राजा ने मुनि को साष्टांग दंडवत किया और फिर उनके पूछने पर अपनी व्यथा बताई. राजा ने कहा कि अचानक मेरे चित्त में अत्यंत अशांति होने लगी है. ऐसा सुनकर पर्वत मुनि ने आँखें बंद की और भूत विचारने लगे. फिर बोले हे राजन! मैंने योग के बल से तुम्हारे पिता के कुकर्मों को जान लिया है. उन्होंने पूर्व जन्म में कामातुर होकर एक पत्नी को रति दी किंतु सौत के कहने पर दूसरे पत्नी को ऋतुदान माँगने पर भी नहीं दिया. उसी पापकर्म के कारण तुम्हारे पिता को नर्क में जाना पड़ा.


ऋषि ने बताया उपाय
तब राजा ने कहा इसका कोई उपाय बताइए. मुनि बोले: हे राजन! आप मार्गशीर्ष एकादशी का उपवास करें और उस उपवास के पुण्य को अपने पिता को संकल्प कर दें. इसके प्रभाव से आपके पिता की अवश्य नर्क से मुक्ति होगी. मुनि के ये वचन सुनकर राजा महल में आया और मुनि के कहने अनुसार कुटुम्ब सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत किया. इसके उपवास का पुण्य उसने पिता को अर्पण कर दिया. इसके प्रभाव से उसके पिता को मुक्ति मिल गई और स्वर्ग में जाते हुए वे पुत्र से कहने लगे- हे पुत्र तेरा कल्याण हो. यह कहकर स्वर्ग चले गए.


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