Navratri 2024 4th Day: नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कुष्मांडा की पूजा का विशेष महत्व है. इस दिन भक्तगण पूरी श्रद्धा और विधिपूर्वक मां की आराधना करते हैं. मां कुष्मांडा को मालपुआ का भोग विशेष रूप से प्रिय होता है, इसलिए पूजा में इसे अर्पित करना शुभ माना जाता है. मां कुष्मांडा को सृष्टि की प्रारंभिक स्वरूप और आदिशक्ति के रूप में जाना जाता है.


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मां कुष्मांडा की व्रत कथा
आचार्य मदन मोहन ने बताया कि पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन समय में त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने सृष्टि की रचना का विचार किया. उस समय चारों ओर अंधकार फैला हुआ था और सम्पूर्ण ब्रह्मांड एकदम शांत था. कहीं कोई ध्वनि या हलचल नहीं थी, सिर्फ गहरा सन्नाटा था. त्रिदेव ने सृष्टि की रचना के लिए जगत जननी, आदिशक्ति मां दुर्गा से सहायता मांगी.


साथ ही मां दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कुष्मांडा ने मुस्कान बिखेरते हुए सृष्टि की रचना की. ऐसा कहा जाता है कि उनकी हल्की मुस्कान से पूरे ब्रह्मांड में रोशनी फैल गई और अंधकार समाप्त हो गया. इस तरह, मुस्कान के माध्यम से सृष्टि का निर्माण करने के कारण मां को कुष्मांडा कहा जाता है. मां की महिमा अनंत और अद्वितीय है.


मां का निवास स्थान
शास्त्रों के अनुसार मां कुष्मांडा का निवास स्थान सूर्य लोक है. उनके मुखमंडल का तेज ही सूर्य को प्रकाशवान बनाता है. मां की शक्ति इतनी अपार है कि वे सूर्य के भीतर और बाहर दोनों जगह निवास कर सकती हैं. मां के मुख से निकलने वाली तेजोमय आभा पूरे जगत का कल्याण करती है. मां कुष्मांडा ने सूर्य के समान चमकने वाले तेज का आवरण धारण किया हुआ है और यह अद्भुत तेज केवल मां की कृपा से ही संभव है.


मां का आह्वान मंत्र
पूजा के समय मां कुष्मांडा के निम्नलिखित मंत्र का जाप करना शुभ माना जाता है.


सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु में ॥


इसके साथ ही, यह भी कहा गया है कि मां की पूजा के दौरान निम्न मंत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए.


या देवी सर्वभूतेषु मां कुष्मांडा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥


आचार्य के अनुसार इस प्रकार मां कुष्मांडा की पूजा करने से भक्तों को सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है.


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