Nitish Kumar Iftar Party: रामनवमी के मौके पर बिहार में एक ओर जहां जगह-जगह पर दंगे हो रहे थे, तो वहीं दूसरी सुशासन बाबू यानी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इफ्तार पार्टी का आनंद ले रहे थे. अब उनकी इस दावत पर राजनीति शुरू हो चुकी है. बीजेपी ने इसको लेकर मोर्चा खोल दिया है. भगवा पार्टी का आरोप है कि नीतीश कुमार ध्रुवीकरण की राजनीति कर रहे हैं और उन्होंने इसके लिए कानून व्यवस्था को भी ताक पर रख दिया है.  


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हालांकि, ऐसा नहीं है कि नीतीश कुमार पहली बार इफ्तार दावत में शामिल हुए हों. वह अक्सर ऐसे आयोजनों में दिखाई देते रहे हैं. मौजूदा हालातों में इफ्तार पार्टी में शामिल होने को बीजेपी ने मुद्दा बना लिया है. लेकिन इसकी तह में जाए तो पता चलेगा कि नीतीश कुमार को ऐसा करने के लिए मजबूर करने के पीछे भी बीजेपी है. 


 


पासमंदा मुसलमानों के जाने का डर


दरअसल, बिहार में मुस्लिम आबादी में 80% पासमंदा मुसलमान हैं. इनकी दम पर आरजेडी ने 15 साल तक बिहार पर राज किया था. इसके बाद मुसलमानों का वोट आरजेडी से टूट कर जनता दल यूनाइटेड यानी नीतीश कुमार के पास चला गया था. 2005 और 2010 में हुए बिहार विधानसभा चुनावों में पसमांदा समाज ने उन्हें बड़ी जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी. अब 2024 फतह के लिए पीएम मोदी के टारगेट पर इस समय पसमांदा मुसलमान है. 


पासमंदा मुसलमानों पर बीजेपी की नजर


मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार ने पसमांदा मुसलमानों के लिए काफी काम किया है. बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा अब मुसलमानों को बीजेपी के साथ जोड़ने का काम शुरू कर चुका है. इसके लिए देश के तकरीबन 64 ऐसे जिले चुने गए हैं, जिनमें मुसलमानों की आबादी ज्यादा है. इनमें बिहार के भी कई जिले आते हैं. नीतीश कुमार को डर सता रहा है कि पसमांदा मुसलमान कहीं उनका साथ छोड़कर बीजेपी के पास ना चला जाए.


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कौन होते हैं पासमंदा मुसलमान?


पसमांदा, फारसी का शब्द है. इसका मोटे तौर पर अर्थ होता है पिछड़े वंचित लोग. इस श्रेणी में आने वाले ज्यादातर लोग दलित से बने मुस्लिम हैं. कुंजरे (राइन), जुलाहा (अंसारी), धुनिया (मंसूरी), कसाई (कुरैशी), हज्जाम (सलमानी), बढ़ई (सैफी), मनिहार (सिद्दीकी), दर्जी (इदरीसी) यह वो जातियां हैं जो पसमांदा मुसलमानों की श्रेणी में आती हैं.