पटनाः Pitru Paksha 2022: लगातार चली आ रही पर्वों-त्योहारों की कड़ी के बीच अब पितृ पक्ष की शुरुआत होने जा रही है. आश्विन माह के कृष्णपक्ष के 15 दिनों को ही पितृ पक्ष कहा जाता है. पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के कारण इसे श्राद्ध पक्ष कहते हैं. मान्यता है कि पितृ पक्ष में श्राद्ध करने से पिंडदान सीधे पितरों तक पहुंचता है. पितृ पक्ष के दिनों में लोग अपने पितरों को याद कर उनके नाम पर उनका पिंडदान कर्म, तर्पण और दान आदि करते हैं. ताकि उनकी आत्मा तृप्त होकर लौटे. माना जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान यमराज भी पितरों की आत्मा को मुक्त कर देते हैं, ताकि वे धरती पर अपने वंशजों के बीच रहकर अन्न और जल ग्रहण कर संतुष्ट हो सकें.


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गया में क्यों है पिंडदान का महत्व
पितृ पक्ष में वैसे तो देश के कई स्थानों पर पिंडदान और तर्पण किए जाने की परंपरा है लेकिन गया (बिहार) में पिंडदान का अलग-अलग महत्व होता है. धार्मिक मान्यता है कि गया में पिंडदान करने से 108 कुल और 7 पीढ़ियों का उद्धार होता है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. गरुड़ पुराण के आधारकाण्ड में गया (बिहार) में होने वाले पिंडदान का महत्व बताया गाया है. कहा जाता है कि गया में भगवान राम और सीता ने पिता राजा दशरथ को पिंडदान किया था. गरुड़ पुराण में बताया गया है कि यदि इस स्थान पर पितृपक्ष में पिंडदान किया जाए तो पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है. धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीहरि यहाँ पर पितृ देवता के रूप में विराजमान रहते हैं. इसी लिए इसे पितृ तीर्थ भी कहा जाता है. गया की इसी महत्ता के कारण लाखों लोग हर साल यहां पर अपने पूर्वजों का पिंडदान करने आते हैं.


ये है तर्पण का महत्व
अथर्ववेद में अश्विन मास के दौरान पितृपक्ष के बारे में कहा गया है कि शरद ऋतु के दौरान जब छोटी संक्रांति आती है अर्थात सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करता है तो इच्छित वस्तुओं में पितरों को प्रदान की जाती हैं, यह सभी वस्तुएँ स्वर्ग प्रदान करने वाली होती है. माना जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान यमराज भी पितरों की आत्मा को मुक्त कर देते हैं, ताकि वे धरती पर अपने वंशजों के बीच रहकर अन्न और जल ग्रहण कर संतुष्ट हो सकें.


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