पटना: बिहार में जातीय गणना के बाद अब बिरादरी की सियासत शुरू हो गई है. बिरादरी यानी जातीय समीकरण को दुरुस्त कर सियासत में पांव जमाने वाले दल या नेता अचानक सक्रिय हो गए हैं. जातीय गणना में संख्या कम होने के आरोप लगाए जा रहे हैं तो कोई अपनी जाति को एक मंच पर लाने की कोशिश में है.


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माना जाता रहा है कि बिहार की सियासत जाति आधारित समीकरण के जोड़तोड़ पर फलती-फूलती रही है. लोकसभा चुनाव के पहले अब फिर से इसी के मद्देनजर राजनीति प्रारंभ हो गई है. जातीय गणना के बाद दलित और महादलित की राजनीति करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास ) के प्रमुख चिराग पासवान जातीय गणना में हेराफेरी का आरोप लगा चुके हैं. पटना साहिब के सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद भी कायस्थों की संख्या की कमी पर अपनी नाराजगी व्यक्त कर चुके हैं. सबसे गौर करने वाली बात है कि पार्टी लाइन से हटकर भी नेता अपनी बिरादरी के हिमायती बनने से परहेज नहीं कर रहे हैं.


जदयू के सांसद सुनील कुमार पिंटू तेली समाज की सही गिनती नहीं होने का हवाला देते हुए अपनी ही पार्टी और सरकार के विरुद्ध मुखर हो गए हैं. पिंटू तो यहां तक कह रहे हैं कि वे सही आंकड़ा मुख्यमंत्री को मुहैया कराएंगे. भाजपा के नेता और विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष हरि सहनी भी निषाद जातियों को उप जातियों के वर्गों में बांटकर गणना किए जाने पर नाराजगी जाहिर कर चुके हैं. भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ. भीम सिंह चंद्रवंशी दस वर्ष में अपनी जाति की संख्या दस लाख से अधिक घटने का लेकर प्रश्न खड़ा कर रहे. सामान्य प्रशासन विभाग के पूर्ववर्ती आंकड़ों के माध्यम से वे राज्य सरकार को घेर रहे हैं. 


पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा कि लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के इशारे पर तेली, तमोली, चौरसिया, दांगी सहित आधा दर्जन जातियों को अतिपिछड़ा सूची से बाहर करने की साजिश रची जा रही है. वैश्य एवं कुशवाहा समाज को बांटने और इनकी आबादी कम दिखाने की मंशा जातीय सर्वे में उजागर हो चुकी है. मुसलमानों में मल्लिक, शेखड़ा और कुल्हिया ऊंची जातियां हैं. लेकिन, अतिपिछड़ा वर्ग में शामिल कर इन्हें आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है.


(इनपुट आईएएनएस के साथ)