पटनाः Raksha Bandhan 2022: एक बार देव-दानवों के युद्ध में जब दानव शुक्राचार्य के पुण्यों के फल से लगातार विजयी होने लगे और आतंकी बनने लगे, तब भगवान विष्णु को क्रोध आया. उन्होंने झुंझलाहट में अपना शरीर झटका, जिससे पसीने-मैल के मिले-जुले कण जमीन पर गिरे और भद्रा प्रकट हुई. भद्रा, यानी ऐसा समय जब अशुभ ने जन्म लिया हुआ. भद्रा के आते ही समय अशुभ हो गया और दानव हारने लगे. देव-दानवों का युद्ध खत्म होने के बाद महादेव शिव ने उसे सूर्यदेव के घर जन्म लेने का वरदान दिया, ताकि वो कालगणना में जगह पा सके. 


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ऐसे हुआ है भद्रा का जन्म
भद्रा का जन्म सूर्यदेव की पत्नी छाया से हुआ. वह शनिदेव की बहन हैं और स्वभाव से क्रोधी हैं. कहते हैं कि जन्म लेते ही उन्होंने संसार के निगलना शुरू कर दिया. इनका वर्ण काला रूप भयंकर लंबेकेश और दांत विकराल हैं. इनके ऐसे आचरण को देखकर सूर्य की पुत्री होते हुए भी कोई भी देव इनसे विवाह करने के लिए तैयार नहीं हुआ. एक बार सूर्यदेव ने स्वयंवर का भी आयोजन किया, जिसके मंडप, आसन आदि को भद्रा ने उखाड़ दिया और फेंक दिया. सूर्यदेव ने ब्रह्मा जी से प्रार्थना की कि मेरी पुत्री को समझाओ फिर ब्रह्मा जी ने समझाया और कहा कि हे भद्रे ! तुम सभी बव, बालव आदि सभी करणों के अंत में सातवें करण के रूप में स्थित रहो जिसे विष्टि नाम से जाना जाएगा.


ब्रह्मा जी ने ये दिया उपदेश
जो व्यक्ति तुम्हारे समय में यात्रा, गृह प्रवेश, कार्य व्यापार अथवा किसी भी तरह का मंगल कार्य करें तुम उसमें विघ्न डालो जो तुम्हारा अनादर करें उसका कार्य ध्वस्त कर दो. भद्रा ने ब्रह्मा जी का आदेश मान लिया और भद्राकाल के रूप में आज भी विद्यमान हैं. इनकी उपेक्षा करना विपरीत परिणाम कारक होता है. इनके कई नामों में धान्या, दधिमुखी, भद्रा, महामारी, खरानना, हंसी, नंदिनी, त्रिशिरा, सुमुखी, करालिका, वैकृति, रौद्रमुखी चतुर्मुखी आदि हैं. भद्रा में कई कार्यों को निषेध माना गया है. जैसे मुण्डन संस्कार, गृहारंभ, विवाह संस्कार, गृह - प्रवेश, रक्षाबंधन, शुभ यात्रा, नया व्यवसाय आरंभ करना और सभी प्रकार के मंगल कार्य भद्रा में वर्जित माने गये हैं. ब्रह्मा जी के आदेश से भद्रा, काल के एक अंश के रूप में विराजमान रहती है.


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