पटनाः Rama Ekadashi katha in Hindi, 21st October: कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी कहते हैं. दीपावली से पहले आने वाली इस एकादशी का महत्व काफी अधिक है, क्योंकि इस दिन विष्णु जी के साथ महालक्ष्मी की भी विशेष पूजा की जाती है. यह एकादशी अपने सभी पुण्यों का प्रभाव देने वाली मानी जाती है. दीपोत्सव के लिए रमा एकादशी से काफी लोग अपने-अपने घर के बाहर दीपक जलाना शुरू कर देते हैं. इस व्रत से संबंधित कथा भी दिव्य है.


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ये है एकादशी की कथा
प्राचीन काल में मुचुकुंद नाम का एक राजा हुआ करता था. उस राजा की एक कन्या थी, जिसका नाम चंद्रभागा था. मुचुकुंद की कन्या का विवाह चंद्रसेन के पुत्र शोभन के साथ हुआ था. एक बार शोभन अपने ससुराल आया. उन्हीं दिनों रमा एकादशी थी. राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत जरूर करते थे. यह जानकर शोभन को चिंता हुई कि वह तो भूख बर्दाश्त नहीं कर पायेगा. उसने अपनी पत्नी से आग्रह किया कि वह उसे कुछ उपाय बतलाये. चंद्रभागा ने कहा कि अगर वह आप यहाँ रहेगा तो अवश्य ही व्रत करना पड़ेगा, नहीं तो वह दूसरे राज्य में चला जाए. 


शोभन के निकल गए प्राण
ऐसा सुनकर शोभन ने व्रत करने का निर्णय लिया. भूख-प्यास से व्याकुल शोभन के अगली सुबह प्राण निकल गए. पूरे विधि-विधान से उसका दाह संस्कार करवाया गया. पति की मृत्यु के पश्चात् चंद्रभागा अपने पिता के घर में ही रहने लगी. दूसरी तरफ रमा एकादशी व्रत के प्रभाव से शोभन पुनः जन्म लेकर देवपुर का राजा बना. एक दिन मुचुकुंद नगर का एक ब्राह्नण तीर्थयात्रा करता हुआ देवपुर पहुंचा. शोभन को देख वह ब्राह्मण उसे पहचान गया और उसके पास जा कर पूछा कि ऐसा सुंदर नगर उसे कैसे प्राप्त हुआ! तब शोभन ने उसे बताया कि यह सब धन-ऐश्वर्य उसे कार्तिक कृष्ण की रमा एकादशी का व्रत करने से मिला है, लेकिन यह सारे सुख अस्थिर हैं. 


ब्राह्नण ने चंद्रभागा को दी जानकारी
उसने ब्राह्मण से कोई उपाय पूछा, जिससे यह सब स्थिर हो जाए. शोभन की पूरी बात सुनने के बाद ब्राह्मण वहां से चला जाता है, और अपने नगर लौटकर चंद्रभागा को सारी बात बताई. ब्राह्मण के द्वारा अपने पति के बारे में सुन चन्द्रप्रभा अपने पति से मिलने के लिए व्याकुल हो गई. उसने ब्राह्मण से कहा कि मैं अपने पुण्य से उस नगर को स्थिर बना दूँगी. ब्राह्मण चंद्रभागा को मंदराचल पर्वत के समीप वामदेव ऋषि के आश्रम लेकर गया. जहाँ वेद मंत्रों के उच्चारण से चंद्रभागा दिव्य हो गयी. 


चंद्र भागा के पुण्य से स्थिर हुआ देवपुर का ऐश्वर्य
उसके बाद चंद्रभागा अपने पति के पास पहुँची. उसने कहा कि अपने पिता के घर जब मैं आठ वर्ष की थी, तब से विधि पूर्वक एकादशी के व्रत को करती आ रही हूँ. मेरे जीवनभर के पुण्य से आपका यह नगर स्थिर हो जायेगा, इसीलिए अपना सारा पुण्य मैं आपको अर्पित करती हूँ. चंद्रभागा के ऐसा करते ही देवपुर का ऐश्वर्य स्थिर हो जाता है, और सभी वहां आनंदपूर्वक रहने लगें.


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