Sawan Somvar Vrat Katha: सावन सोमवार की यह है व्रत कथा, व्रत करने वाले इसे पढ़ना न भूलें
Sawan Somvar Vrat Katha: हिंदू धर्म में सावन महीने का बहुत महत्व होता है. सावन के महीने में भक्त भोले बाबा की सबसे ज्यादा पूजा अर्चना करते है. ऐसा कहा जाता है कि सावन का महीना भगवान शिव जी को सबसे ज्यादा प्रिय है
Sawan Somvar Vrat Katha: हिंदू धर्म में सावन महीने का बहुत महत्व होता है. सावन के महीने में भक्त भोले बाबा की सबसे ज्यादा पूजा अर्चना करते है. ऐसा कहा जाता है कि सावन का महीना भगवान शिव जी को सबसे ज्यादा प्रिय है. सावन महीने में भगवान शिव के कई सारे भक्त सोमवार का व्रत भी करते है. माना जाता है कि सावन में सोमवार का व्रत करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. इस साल का सावन महीना शिव भक्तों के लिए बेहद खास है, क्योंकि इस बार ये महीना दो महीने का पड़ रहा है. इस साल सावन 4 जुलाई, मंगलवार से शुरू हो रहा है और 31 अगस्त 2023 तक चलेगा.
सावन के महीने में कई भक्त सोमवार का व्रत रखते है. इस बार सावन महीने में 8 सोमवार पड़ रहे है. जिस दिन भक्त व्रत रख महादेव को प्रसन्न कर सकते है. शास्त्रों के अनुसार, जो भक्त सावन में सोमवार का व्रत रखते है. उन्हें व्रत कथा पढ़ना जरूरी माना जाता है. तो आइए जानते है सावन व्रत कथा-
सावन व्रत कथा
एक शहर में एक साहूकार रहता था. उसके घर में पैसों की कोई कमी नहीं थी लेकिन उसके कोई संतान नहीं थी, जिससे वह बहुत दुखी रहता था. पुत्र की कामना करते हुए वह हर सोमवार को भगवान शिव का व्रत किया करते थे और शिव और पार्वती जी की पूरी भक्ति के साथ शिवालय में पूजा करते थे. उनकी भक्ति देखकर माता पार्वती प्रसन्न हुई और उन्होंने भगवान शिव से साहूकार की इच्छा पूरी करने का अनुरोध किया. पार्वती जी की इच्छा सुनकर भगवान शिव ने कहा कि "हे पार्वती. इस संसार में प्रत्येक प्राणी को उसके कर्मों के अनुसार फल मिलता है और उसके भाग्य में जो कुछ भी होता है उसे भुगतना पड़ता है." लेकिन पार्वती जी ने साहूकार की आस्था को बनाए रखने की इच्छा पूरी करने की इच्छा व्यक्त की. माता पार्वती के अनुरोध पर शिवजी ने साहूकार को वरदान दिया और कहा कि उनकी संतान अल्पायु होगी. वो केवल 16 वर्ष तक ही जीवित रह पाएगी.
इस दौरान साहूकार माता पार्वती और भगवान शिव की ये सभी बाते सुन रहा था. इसके बाद भी वह पहले की तरह शिव की पूजा करता रहा. साहूकार के घर में कुछ वक्त बाद एक पुत्र का जन्म हुआ. जब वह बालक ग्यारह वर्ष का हुआ तो उसे पढ़ने के लिए काशी भेज दिया गया। साहूकार ने बेटे के मामा को बुलाकर ढेर सारा पैसा दिया और कहा कि तुम इस बच्चे को काशी विद्या प्राप्त करने के लिए ले जाओ और रास्ते में यज्ञ करो. आप जहां भी यज्ञ करें, वहां ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा देकर जाएं.
अपने पिताजी की आज्ञा का मान रखते हुए साहूकार का बेटा और मामा रास्ते में यज्ञ कराते हुए और ब्राह्मणों को दान देते हुए काशी की ओर चले जाते है. इस बीत रास्ते में एक राजा की कन्या का विवाह हो रहा था. राजकुमारी से जिस राजकुमार का विवाह हो रहा था वो आंखों से काना था. इस बात की जानकारी राजा को नहीं थी. राजकुमार ने इस बात का लाभ उठाकर अपने स्थान पर साहूकार के बेटे को दूल्हा बना दिया. लेकिन साहूकार का बेटा ईमानदार था. उसने अवसर का लाभ उठाया और राजकुमारी के दुपट्टे पर लिखा कि "तुम मुझसे शादी कर चुके हो लेकिन जिस राजकुमार के साथ तुम्हें भेजा जाएगा. वह एक आंख वाला काना है. मैं काशी पढ़ने जा रहा हूं."
जब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखे शब्दों को पढ़ा तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई. बारात को छोड़कर राजा ने अपनी बेटी को नहीं छोड़ा. उधर साहूकार का लड़का और उसके मामा काशी पहुंचे और वहां जाकर यज्ञ किया. लड़के की उम्र के दिन जब वह 16 वर्ष का था, एक यज्ञ किया गया था। लड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है। मामा ने कहा कि तुम अंदर जाओ और सो जाओ। शिव के वरदान के अनुसार कुछ ही पलों में बच्चे की जान निकल गई।
मृत भांजे को देख उसके मामा विलाप करने लगे। संयोग से उसी समय शिव और माता पार्वती वहां से जा रहे थे। पार्वती ने भगवान से कहा- प्राणनाथ, मैं इसकी पुकार को सहन नहीं कर सकती। आपको इस व्यक्ति की पीड़ा को दूर करना होगा। जब शिवजी मरे हुए लड़के के पास पहुंचे तो उन्होंने कहा कि यह उसी साहूकार का बेटा है, जिसे मैंने 12 साल की उम्र में वरदान दिया था। अब इसकी उम्र खत्म हो गई है। लेकिन माता पार्वती ने कहा कि हे महादेव कृपा करके इस बच्चे को और उम्र दे, नहीं तो इसके माता-पिता भी मर जाएंगे। शिव के अनुरोध पर, भगवान शिव ने लड़के को जीवित रहने का वरदान दिया। शिव की कृपा से वह बालक जीवित हो गया।
शिक्षा समाप्त करके जब वह लड़का अपने मामा के साथ अपने नगर लौट रहा था तो दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह राजकुमारी के साथ हुआ था। उस नगर में भी उसने यज्ञ का आयोजन किया। उस नगर के राजा ने तुरंत उसे पहचान लिया। यज्ञ समाप्त होने पर राजा व्यापारी के बेटे और उसके मामा को महल में ले आए और उन्हें बहुत-सा धन, वस्त्र देकर राजकुमारी के साथ विदा किया।
लड़के के मामा ने नगर में पहुंचते ही एक दूत को घर भेजकर अपने आने की सूचना भेजी। बेटे के जीवित वापस लौटने की सूचना से व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ। व्यापारी और उसकी पत्नी ने स्वयं को एक कमरे में बंद कर रखा था। भूखे-प्यासे रहकर वो दोनों अपने बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो दोनों अपने प्राण त्याग देंगे। व्यापारी अपनी पत्नी के साथ नगर के द्वार पर पहुंचा। अपने बेटे के जीवित होने और उसके विवाह का समाचार सुनकर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा।
उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के सपने में आकर कहा- ‘हे श्रेष्ठी! मैंने तेरे सोमवार व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लंबी आयु प्रदान की है।’ ऐसा सुनकर व्यापारी काफी प्रसन्न हुआ।
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