पटनाः Sawan Story Deepak ki Katha: एक बार महर्षि दधीचि ने देवाधिदेव महादेव से प्रश्न किया कि परमसत्ता क्या है. वह कैसी है, किस तरह दिखती है और कौन है. असल में ऋषि दधीची सुप्रीम पॉवर के बारे में जानने चाहते हैं. भगवान शिव उनके गुरु हैं, इसलिए उन्होंने उनसे ये प्रश्न किया था. भगवान शिव ने कहा कि परमसत्ता का कोई आकार नहीं है, वह निर्गुण है और प्रकृति में जो भी दिख रहा है, वही परमसत्ता का रूप है. उसका कोई निश्चित रूप नहीं है. भगवान शिव ने कहा कि वह प्रकाश है, और उसके ही प्रकाश से सब दिखता है. जब इस रहस्य को समझ पाना बहुत कठिन लगने लगा, तब महादेव ने पास जल रहे एक दीपक की ओर इशारा कर दिया. उन्होंने कहा कि यही परमसत्ता का स्वरूप है. 


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महादेव शिव ने दिया उत्तर
अभी जो जल रहा है और जिससे प्रकाश आ रहा है, वह ईश्वर तत्व है. जब ये बुझेगा तो प्रकाश प्रकृति में मिल जाएगा. दीप जलाने के लिए जो जतन करने पड़ते हैं, वैसी ही मेहनत, वही तपस्या परमसत्ता को पाने के लिए करनी होती है. ओम नमः सच्चिदानंदः, रूपाय परमात्मने,
ज्योतिर्मय स्वरूपाय विश्व मांगल्य मूर्तये।


शिव स्वरूप है दीपक
भगवान शिव और ऋषियों की ये कथा, दीपक का महत्व बताने के लिए कथा है. दीपक की जलती हुई बत्ती ही शिव स्वरूप है. प्रतीक के तौर पर शिव के ज्योति स्वरूप का रूप ही शिवलिंग का रूप है. मान्यता है कि इसीसे सारा ब्रह्मांड प्रकाशित है और चलायमान है. असल में एक दीपक, पूरी तरह प्रकृति के पांच तत्वों का प्रतीक है. मिट्टी का एक दिया या कोई भी धातु भूमि तत्व है. मिट्टी को पानी में गलाने से इसमें जल भी मिल जाता है. धूप और हवा में सुखाने से आकाश और वायु तत्व इसमें मिल जाते हैं और जब दीपक जलाया जाता है तो अग्नि तत्व भी इसमें मिल जाता है. 


दीपक है सबसे बड़ी दवा
इस तरह, जब हम एक दीपक जलाते हैं तो यह जीवन का प्रतीक बन जाता है. इसीलिए सनातन परंपरा में घरों में सुबह-शाम दीपक जलाने की परंपरा चली आ रही है. दीपक जलाकर हम नेगेटिव ऊर्जा को दूर कर देते हैं और सकारात्मक ऊर्जा को पा सकते हैं. दीपक अंधकार को मिटाकर प्रकाश फैलाता है. अग्नि पुराण के अनुसार सूर्यास्त के बाद मुख्य द्वार के पास दीपक लगाने से उस घर में रहने वाले लोगों की उम्र बढ़ती है और रोग खत्म होने लगते हैं. इसके साथ ही दीप ही लक्ष्मीस्वरूप भी है. श्रीहरि उन्हें एक नाम दीपकांति और दीपाक्षी भी पुकारते हैं. दीपक का महत्व आयुर्वेद में बताया है. आसन व प्राणायम की क्रिया से पहले घी का दीपक जलाकर रखने से वायु शुद्ध होती है और इस दौरान शरीर के रोम से निकलने वाली टॉक्सिक गैसें दीप ज्योति में जलकर भस्म हो जाती हैं.


पंच तत्वों का प्रतीक है दीपक
घी के अंदर एक सुगंध होती है जो जलने वाले स्थान पर काफी देर तक रहती है जिसकी वजह वह स्थान शुद्ध रहता है और इससे कई तरह की बीमारियों से भी बचाव होता है. इसके अलावा आध्यात्म के अनुसार हमारे शरीर में 7 ऊर्जा चक्र होते हैं, घी का दिया जलाने से यह चक्र जागृत हो जाते हैं. इनके साथ ही शरीर में चंद्र, सूर्य तथा सुषुम्ना नाड़ी को भी शुद्ध करता है. बृहदारण्यकोपनिषद् का एक पवित्र मंत्र है तमसो मा ज्योतिर्गमय. यह एक प्रार्थना है, जो कहती है कि मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो. यही वजह है कि हर दिन के साथ-साथ दीपक से जुड़े खास त्योहार पर भी भारतीय परंपरा का हिस्सा बने हुए हैं. दीपावली इनमें से एक बड़ा त्योहार है. इसके अलावा कई अन्य मौकों पर भी दीपक जलाने की परंपरा निभाई जाती है. इन परंपराओं में जीवन को प्रकाशित करने का मंत्र समाया हुआ है. यही दीपक का महत्व है.


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