Surya Grahan 2022: सूर्य ग्रहण हालांकि पूरी तरह एक खगोलीय घटना है, लेकिन भारत में इसे लेकर एक पौराणिक कथा भी प्रचलित है. असल में सौरमंडल के सभी ग्रहों का भारत के पुराणों में मानवीकरण और देवीकरण किया गया है. इसी तरह समुद्र मंथन और दानव स्वर भानु से जुड़ी एक कथा भी प्रचलित है.  


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सूर्य ग्रहण की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, जब समुद्र मंथन के समय अमृत निकला था, तो देव और दानवों में उसे पहले पाने के लिए लड़ाई होने लगी. राक्षसों ने उस अमृत को छीन लिया था और वे सबसे पहले उसे पीकर अमर हो जाना चाहते थे. तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण करके उस अमृत कलश हो प्राप्त कर लिया. फिर उन्होंने राक्षसों को समझाया कि देवों और तुमने साथ मिलकर इस अमृत को प्राप्त किया ​है, इसलिए दोनों को ही इसे प्राप्त करने का अधिकार है.


मोहिनी स्वरूप में भगवान विष्णु मोहिनी बनकर नृत्य करने लगे और नृत्य करते-करते ही सभी को अमृत पिलाने लगे. उन्होंने पहले देवताओं को अमृत पिलाया. इस बीच वह दानवों को मदिरा पान कराते रहे. असुर और देव अपनी अपनी अलग पंक्ति में बैठे थे. भगवान विष्णु देवताओं को अमृत पान कराने लगे.


इसी बीच एक राक्षस यानी कि स्वरभानु को लगा कि उन्हें अमृत नहीं मिलेगा. वह देवताओं और दानवों के अमृत का रंग देखकर संदेह करने लगा. इसलिए उसने देवता का रूप धारण कर लिया और देवताओं की पंक्ति में जाकर बैठ गया. जब उसकी बारी आई, तो भगवान विष्णु उसे देवता समझकर अमृत पिलाने लगे. उसी दौरान चंद्र देव और सूर्य देव उसका भेद समझ गए और भगवान विष्णु को बताया कि आप जिसे अमृत पान करा रहे हैं, वह असुर है.


असुर पर किया सुदर्शन प्रहार
यदि असुर अमर हो जाता तो अनर्थ हो जाता, इसलिए भगवान विष्णु ने अपने चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया. उस अमृत के प्रभाव से वह असुर मरा नहीं और उसका सिर एवं धड़ जीवित रहा. वही राहु और केतु के रूप में छद्म ग्रह बन गया. अमृत पान न कर पाने के कारण राहु देवताओं से बैर रखता है और सूर्य-चंद्र ने उसका भेद बताया था, इसलिए वह हर वर्ष उन्हें ग्रस लेता है. यानी कि खा जाता है. राहु सूर्य व चंद्र को खाचा है, लेकिन राहु का गला कटा होने के कारण सूर्य चंद्र गले से निकल आते हैं. जितनी देर राहु सूर्य को ग्रास बनाता है, वह समय ग्रहण कहलाता है.