Navratra 2024: नवरात्र को नवदिन क्यों नहीं कहते? सनातनी होने के नाते यह आपको जरूर जानना चाहिए
Navratra 2024: हजारों लाखों साल पहले हमारे मनीषियों ने दिन और रात में आवाज की गति की पहचान कर ली थी और उसी हिसाब से अधिकांश सनातनी त्योहार रात को ही मनाने की परंपरा बनाई गई.
Navratra 2024: नवरात्र का आज दूसरा दिन है. पूरे देश में हर्षोउल्लास का माहौल है. सभी सनातनी हिन्दू एक दूसरे को नवरात्र की बधाइयां दे रहे हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि नवरात्र को "नवरात्र" ही क्यों कहते हैं... "नवदिन" क्यों नहीं? इन 9-10 दिनों तक तो मां भगवती की पूजा दिन में (सुबह में) होती है तो तरीके से इसे "नवदिन" कहना चाहिए था लेकिन इसे नवरात्र ही कहा जाता है? आचार्य पंडित प्रमोद शुक्ला ने इसे विस्तार से समझाया है. थोड़ा समय दीजिए और हिंदू होने के नाते अपने ज्ञान को बढ़ाइए, क्योंकि सनातनी को सनातन से जुड़े आधारभूत ज्ञान तो होने ही चाहिए.
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आचार्य पंडित प्रमोद शुक्ला कहते हैं, असल में इसे नवरात्र इसलिए कहा जाता है क्योंकि नवरात्र शब्द से "नव अहोरात्रों (विशेष रात्रियां)" का बोध होता है और इस समय शक्ति के नव रूपों की उपासना की जाती है. ऐसा इसलिए कि "रात्रि" शब्द सिद्धि का प्रतीक माना जाता है. जैसा कि आप सभी जानते हैं कि भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है. यही कारण है कि... दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र आदि उत्सवों को रात में ही मनाने की परंपरा है.
आचार्य पंडित प्रमोद शुक्ला का कहना है कि नवरात्र हिन्दू सनातन धर्म की वैज्ञानिकता का बेजोड़ उदाहरण है. हमारे मनीषियों ने वर्ष में दो बार नवरात्रों का विधान बनाया है. विक्रम संवत् के पहले दिन अर्थात चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (पहली तिथि) से नौ दिन अर्थात नवमी तक और इसी प्रकार इसके ठीक छह माह बाद आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी अर्थात विजयादशमी के एक दिन पूर्व तक नवरात्र मनाया जाता है. हालांकि सिद्धि और साधना की दृष्टि से शारदीय नवरात्रों को ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है.
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वे कहते हैं कि हमारे पूर्वज ऋषि-महर्षियों ने रात्रि के महत्व को अत्यंत सूक्ष्मता के साथ वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में समझने और समझाने का प्रयत्न किया. अब तो यह एक सर्वमान्य वैज्ञानिक तथ्य भी है कि रात्रि में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं. आश्चर्य इस बात का है कि हमारे ऋषि-मुनि हजारों-लाखों साल पहले प्रकृति के इन वैज्ञानिक रहस्यों को जान चुके थे.
आपने महसूस किया होगा, अगर दिन में आवाज दी जाए तो वह दूर तक नहीं जाती, लेकिन रात में आवाज दी जाए तो वह बहुत दूर तक जाती है. इसके पीछे दिन के कोलाहल के अलावा एक वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि दिन में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे बढ़ने से रोक देती हैं. कहने का मतलब है कि जिस तरह सूर्य की किरणें दिन के समय रेडियो तरंगों को रोकती हैं, ठीक उसी प्रकार मंत्र जाप की विचार तरंगों में भी दिन के समय रुकावट पड़ती है.
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इसीलिए ऋषि-मुनियों ने रात्रि का महत्व दिन की अपेक्षा बहुत अधिक बताया है. रात में मंदिरों में घंटे और शंख की आवाज के कंपन से दूर-दूर तक वातावरण में कीटाणुओं का नाश हो जाता है. यही रात्रि का वैज्ञानिक रहस्य है, जो इस वैज्ञानिक तथ्य को ध्यान में रखते हुए रात्रियों में संकल्प और उच्च अवधारणा के साथ अपने शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजते हैं, उनकी कार्यसिद्धि अर्थात मनोकामना सिद्धि, उनके शुभ संकल्प के अनुसार उचित समय और ठीक विधि के अनुसार करने पर अवश्य होती है.