Jharkhand Tribals: क्या है `सरना धर्म कोड`? जानें क्यों झारखंड के आदिवासी कर रहे इसकी मांग

Jharkhand Tribals: झारखंड में चुनाव आते ही एक बार फिर से `सरना कोड` की मांग तेज हो गई है. वैसे तो आदिवासी का मतलब उन लोगों से है, जो पुराने समय से किसी खास जगह के मूल निवासी रहे हैं. भारत में आदिवासी समुदाय का एक हिस्सा हिंदू नहीं बल्कि सरना धर्म को मानता है. इनके मुताबिक, सरना वो लोग हैं जो प्रकृति की पूजा करते हैं.

जी बिहार-झारखंड वेब टीम Sat, 31 Aug 2024-3:09 pm,
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क्या है सरना धर्म?

भारत में आदिवासी समुदाय का एक हिस्सा हिंदू नहीं बल्कि सरना धर्म को मानता है. इनके मुताबिक, सरना वो लोग हैं जो प्रकृति की पूजा करते हैं.  ये लोग किसी देवी-देवता के स्थान पर पहाड़, नदियों, सूरज, चांद और पशुओं की पूजा करते हैं. इनके त्योहारों का अपना अलग कैलेंडर होता है और वे मूर्ति पूजा कम ही करते हैं. उनकी शादी, जन्म और मृत्यु जैसे मौके पर अलग-अलग रस्में होती हैं.  मृत्यु के बाद वे मृतक को अक्सर अपने घर के पास दफनाते हैं और पिंड दान नहीं करते. हालांकि, अब बहुत से आदिवासी अन्य धर्मों को अपना चुके हैं और उनकी परंपराओं को भी अपना रहे हैं.

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शिव और भैरव की पूजा

सरना आदिवासी और हिंदू धर्म में कुछ समानताएं हैं. जैसे सरना आदिवासी शिवलिंग की पूजा करते हैं और शिव एवं भैरव को मुख्य देवता मानते हैं. हिंदुओं में भी शिव और भैरव की पूजा की जाती है. इसके अलावा दोनों ही समुदाय प्रकृति की पूजा भी करते हैं और कई पर्व-त्योहारों पर इस पूजा का आयोजन करते हैं.

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संविधान में विशेष दर्जा?

देश के संविधान में आदिवासियों को हिंदू माना गया है. हालांकि, कुछ कानून हैं जो इन्हें लागू नहीं होते. उदाहरण के लिए हिंदू विवाह अधिनियम 1955, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956, और कुछ अन्य कानूनों की खास धारा आदिवासियों पर लागू नहीं होती. इसका कारण यह है कि इन जनजातियों के विवाह, तलाक, और उत्तराधिकार के अपने अलग रीति-रिवाज होते हैं.

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सरना धर्म कोड क्या है?

जनगणना के दौरान हर धर्म को एक अलग कोड दिया जाता है. झारखंड और तीन अन्य राज्यों के आदिवासी सरना को भी अपना अलग कोड देने की मांग कर रहे हैं. अगर केंद्र सरकार इस मांग को मंजूर कर लेती है. तो सरना को भी एक अलग धर्म के रूप में मान्यता मिल जाएगी. नेशनल कमीशन फॉर शेड्यूल्ड ट्राइब्स (NCST)) ने सरना धर्म को अलग श्रेणी देने की मांग की है. झारखंड विधानसभा ने पहले ही इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. अब केवल केंद्र सरकार की सहमति का इंतजार है. हालांकि, कई लोग इसका विरोध कर रहे हैं, और कुछ आदिवासी खुद को हिंदू धर्म से जुड़ा मानते हैं.

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