Nepotism in Politics: देश में अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव सभी राजनीतिक दलों ने तैयारी शुरू कर दी है. चुनाव आते ही देश की राजनीति में एक बार फिर परिवारवाद को लेकर नई बहस छिड़ गई है. चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आएगा, ये मुद्दा और बड़ा बनता जाएगा. ये एक कड़वा सच है कि मौजूदा दौर में इस रोग से हर एक पार्टी ग्रसित है बस अंतर सिर्फ इतना है कि कोई ज्यादा है कोई कम. परिवारवाद पर हमेशा हमलावर रहने वाली बीजेपी में भी इससे अछूती नहीं है. 


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हालांकि, पीएम मोदी ने अपनी पार्टी में फैले परिवारवाद को खत्म करने के लिए एक दवा इजाद कर ली है. उनकी दवा कड़वी जरूर है, पर असरदार भी है. वंशवादी राजनीति के खिलाफ लड़ाई में बीजेपी के अंदर एक नियम लागू कर दिया गया है. यह नियम है- 'वन फैमिली-वन टिकट'. इस नियम के तहत एक परिवार से सिर्फ एक ही व्यक्ति को टिकट दी जाएगी. पार्टी ने इस रणनीति पर काम यूपी चुनाव से शुरू कर दिया था. गुजरात और कर्नाटक चुनाव में भी इसी नियम के तहत टिकटों का बंटवारा हुआ.  


राजनाथ की इच्छा भी पूरी नहीं हुई


यूपी चुनाव के वक्त बड़ी चर्चा थी कि रक्षामंत्री राजनाथ सिंह का छोटा बेटा नीरज सिंह भी सक्रिय राजनीति में उतरने वाला है. दावे किए जा रहे थे कि वह बीजेपी की टिकट पर चुनावी मैदान में ताल ठोकते दिखाई देंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. 'वन फैमिली-वन टिकट' नियम के तहत राजनाथ सिंह की फैमिली में सिर्फ पंकज सिंह को ही टिकट मिली. इतना ही नहीं पंकज सिंह को योगी कैबिनेट में जगह नहीं मिलने का बड़ा कारण ये बताया जाता है कि उनके पिता राजनाथ सिंह मोदी कैबिनेट का हिस्सा हैं. खबरें तो ये भी आई थीं कि इस फैसले से राजनाथ काफी नाराज हो गए थे. हालांकि, बाद में उन्होंने भी इस नियम को एक्सेप्ट कर लिया.  


गुजरात में कई नेता हो गए थे नाराज


गुजरात में भी बीजेपी ने इस नियम को बरकरार रखा. केंद्रीय नेतृत्व ने अपने नेताओं को साफ कह दिया था कि वे अपने परिजनों के लिए टिकट ना मांगे. आलाकमान ने साफ कहा था कि किसी भी सांसद या विधायक के परिवार के सदस्यों को टिकट नहीं दिया जाएगा. जानकारी के मुताबिक, प्रदेश के तकरीबन 30 नेताओं ने अपने रिश्तेदारों के लिए टिकट की मांग की थी. सांसद मनसुख मानवा ने तो सार्वजनिक तौर पर इसका खुलासा कर दिया था. उन्होंने कहा था कि मैंने अपनी बेटी के लिए टिकट मांगा था मगर आलाकमान ने नियम का हवाला देते हुए माना कर दिया है.


कर्नाटक में नियम से समझौता नहीं


कर्नाटक चुनाव में भी बीजेपी ने इसी नियमों के तहत टिकटों का बंटवारा किया है. यदि किसी नेता के बेटे या बेटी को टिकट दी गई है तो उसका टिकट काट दिया गया है. येदियुरप्पा इसका बड़ा उदाहरण हैं. पार्टी के सख्त नियमों को देखते हुए ही येदियुरप्पा ने सन्यास की घोषणा कर दी थी और अपने बेटे को टिकट दिलवाया. इस नियम से कई नेताओं को आपत्ति भी हुई. कई नेताओं ने तो अपनों के टिकट के लिए दूसरी पार्टी का दामन थाम लिया. 


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विपक्ष लागू कर पाएगा ये नियम?


पीएम मोदी का साफ कहना है कि राजनीति में भाई-भतीजावाद के चलते पर्टियां असल में एक परिवार की प्रॉपर्टी बनती जा रही है और वह परिवारिक पब्लिक लिमिटेड कंपनी की तरह व्यवहार कर रही हैं. वहीं बीजेपी ने तो लगातार तीन राज्यों में इस नियम को लागू करके साबित कर दिया कि वो वंशवादी राजनीति के सख्त खिलाफ है. अब सवाल ये है कि क्या विपक्ष भी इस नियम को लागू कर पाएगा. मौजूदा हालातों में ऐसा बड़ा मुश्किल लगता है क्योंकि कुछ पार्टियां तो ऐसी भी हैं जो राजनीतिक दल कम पारिवारिक दल ज्यादा लगती हैं. 


देश की परिवारवादी पार्टियां


कांग्रेस में कहने को तो मल्लिकार्जुन खड़गे अध्यक्ष हैं लेकिन पार्टी के सारे फैसले आज भी गांधी परिवार की मर्जी से लिए जाते हैं. इसी तरह बिहार में राजद और लोजपा, पंजाब में अकाली दल, महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और एनसीपी, प. बंगाल में टीएमसी, यूपी में समाजवादी पार्टी और रालोद,  को सिर्फ एक ही परिवार चला रहा है. परिवारवाद के संक्रमण से दक्षिण भारत की पार्टियां भी ग्रसित हैं. कर्नाटक में जेडीएस, तेलंगाना में बीआरएस पहले टीआरएस, आंध्र प्रदेश मे टीडीपी और वाईएसआर कांग्रेस में एक ही परिवार का दबदबा है. इसी तरह से झारखंड में जेएमएम और जम्मू कश्मीर में पीडीपी और नेशनल कॉफ्रेंस भी परिवारवादी पार्टियां हैं.