INDI Alliance: जून की गर्मियों में पटना से लेकर पूरे देश की राजनीति उस समय गरमा गई थी, जब 23 जून को बिहार की राजधानी में विपक्षी दलों का जमावड़ा हुआ था. विपक्षी एकता को नए सिरे से परिभाषित करती हुई यह पहली बैठक हुई थी, जिसके लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने काफी मेहनत की थी. ममता बनर्जी ने विपक्षी दलों की बैठक पटना में बुलाने का सुझाव दिया था, जो नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव को बहुत पसंद आया था. पटना की बैठक ने विपक्षी दलों को एक मंच मुहैया कराया, जहां सभी अपने गिले शिकवे भुलाने और भाजपा के खिलाफ देशव्यापी गठबंधन पर सहमत दिखे थे.


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पटना से बात आगे बढ़ी तो बेंगलुरू में 17—18 जुलाई को विपक्षी एकता की दूसरी बैठक बुलाई गई थी. इस बैठक में एक कदम और प्रगति हुई और विपक्षी दलों के गठबंधन को नाम मिल गया. सभी दलों ने आम सहमति से गठबंधन का नाम रखा— इंडिया. नया नाम मिलते ही एक बात स्पष्ट हो गई कि अब देश में यूपीए नाम का कोई गठबंधन नहीं है. अब विपक्षी दल इंडिया के बैनर तले ही चुनावों में भाजपा का मुकाबला करेंगे. इस नाम पर भी बहुत हायतौबा मची. पीएम मोदी ने इसे घमंडिया गठबंधन करार दिया. टीवी चैनलो, संसद डिबेट और भाजपा नेताओं के बयानों में आज भी इंडिया गठबंधन का मतलब घमंडिया गठबंधन ही है. 


नाम को लेकर एक अंदर की बात भी सामने आई कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस नाम से सहमत नहीं थे लेकिन सभी नेता सहमत हो गए तो उन्होंने भी इस पर हामी भर दी थी. बेंगलुरू की बैठक में नीतीश कुमार के नाराज होने की भी खबरें आईं. एक तो वे नाम से सहमत नहीं थे और दूसरा वे बैठक के तुरंत बाद निकल गए थे और पटना की तरह प्रेस ब्रीफिंग के दौरान मौजूद नहीं थे. इससे उनकी नाराजगी के कयास लगाए जाने लगे थे. हालांकि बिहार के राजगीर महोत्सव के दौरान उन्होंने खुद ही खुलासा किया कि वे नाराज नहीं थे और महोत्सव में आने के लिए वे बेंगलुरू से जल्दी निकल गए थे.


INDI Alliance की तीसरी बैठक 31 अगस्त और 1 सितंबर को मुंबई में हुई. मुंबई की बैठक में INDI Alliance की एक कोआर्डिनेशन कमेटी बनाए जाने पर सहमति बनी. कोआर्डिनेशन कमेटी में कांग्रेस की ओर से केसी वेणुगोपाल, एनसीपी के शरद पवार, डीएमके से सीएम एमके स्टालिन, शिवसेना से संजय राउत, राजद से तेजस्वी यादव, टीएमसी से अभिषेक बैनर्जी, आम आदमी पार्टी से राघव चड्ढा, जेडीयू से ललन सिंह, झारखंड मुक्ति मोर्चा से सीएम हेमंत सोरेन, पीडीपी से महबूबा मुफ्ती, नेशनल कांफ्रेंस से उमर अब्दुल्ला को जगह दी गई थी. मुंबई की बैठक में यह भी तय हुआ था कि 2 अक्टूबर को विपक्षी दलों के नेता राजघाट पर मिलकर एकजुटता प्रदर्शित करेंगे. 


ममता बनर्जी ने इस बैठक में यह भी कहा था कि 2 अक्टूबर तक INDI Alliance का घोषणापत्र आ जाना चाहिए, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. बीच में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस नेता व्यस्त हो गए तो इसे लेकर क्षेत्रीय दलों ने अपनी नाराजगी भी जाहिर की थी. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था, कांग्रेस इस समय गठबंधन को लेकर गंभीर नहीं है. जब वे चुनाव से फ्री होंगे तब इस पर बात करेंगे. नीतीश कुमार की यह बात सच भी हुई. पांच राज्यों की मतगणना के बीच में ही कांग्रेस ने आनन फानन 6 दिसंबर को INDI Alliance की बैठक बुला ली. हालांकि 6 दिसंबर की बैठक के लिए कई दलों के नेताओं ने आने में असमर्थता जताई तो बैठक को टाल दिया गया था. राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने तब बताया था कि बैठक 17 दिसंबर को दिल्ली में होगी लेकिन बाद में इसे 19 दिसंबर कर दिया गया.


अब आज यानी मंगलवार 19 दिसंबर को INDI Alliance की दिल्ली में बैठक होने जा रही है तो उम्मीद है ​कि कुछ मसलों पर सहमति बन सकती है. 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में से हिंदी पट्टी के 3 राज्य गंवाने वाली कांग्रेस कुछ मसलों पर नरम रुख दिखा सकती है. वहीं लोकसभा में सुरक्षा के मुद्दे पर विपक्षी दलों ​के कई सांसदों को निलंबन का सामना करना पड़ रहा है. यह मसला भी इस बैठक में अहम हो सकता है. इसके अलावा अगले लोकसभा चुनाव में INDI Alliance की क्या रणनीति होगी, चेहरा किसका होगा, संयोजक कौन बनेगा, मुद्दे क्या उठाए जाएंगे, पीएम मोदी की रणनीति का मुकाबला कैसे करेंगे आदि पर चर्चा हो सकती है. 


चेहरे को लेकर जेडीयू की ओर से एक बार फिर नीतीश के चेहरे को आगे करने की कोशिश की है. नीतीश के दिल्ली रवाना होने से पहले पटना की सड़कें एक निश्चय चाहिए, एक नीतीश चाहिए का स्लोगन से पटी पड़ी थीं. जाहिर सी बात है कि जेडीयू चेहरे के रूप में नीतीश कुमार को आगे कर रही है. अब देखना होगा कि नीतीश कुमार के चेहरे पर राजद, कांग्रेस, टीएमसी, सपा और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी सहमत होती है या नहीं.