जब रामलीला मैदान की रैली रोकने के लिए दूरदर्शन पर अचानक चला दी गई थी फिल्म `बाॅबी`
विपक्षी एकता के अगुवा बने बिहार के नीतीश कुमार और उनके सुर में सुर मिलाने वाले नेताओं का कहना है कि देश में जो स्थिति 1975-77 के बीच थी, वहीं स्थिति आज भी है. वे दरअसल, आपातकाल की ओर इशारा कर रहे हैं.
विपक्षी एकता के अगुवा बने बिहार के नीतीश कुमार और उनके सुर में सुर मिलाने वाले नेताओं का कहना है कि देश में जो स्थिति 1975-77 के बीच थी, वहीं स्थिति आज भी है. वे दरअसल, आपातकाल की ओर इशारा कर रहे हैं. विपक्षी एकता की आवाज बुलंद करने वाले यह भी दावा कर रहे हैं कि जिन हालात में 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी थी, उसी तरह 2024 में विपक्ष कुछ कमाल करने वाला है. इसके पक्ष में इन नेताओं के अपने-अपने दावे हैं. अब आइए जानते हैं कि जब 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी थी तो उस समय किस तरह के हालात थे.
इंदिरा गांधी की जय पर नहीं बजी थी ताली
बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1 मार्च 1977 को दिल्ली के बोट क्लब में रैली होने वाली थी. उस रैली में मौजूद सरकारी कर्मचारी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से नाराज थे. उस रैली में कांग्रेस प्रत्याशी शशि भूषण ने इंदिरा गांधी की जय का नारा लगाया तो भीड़ ने कुछ रिस्पांस नहीं दिया. इस पर शशि भूषण को लगा कि हो सकता है माइक काम नहीं कर रहा हो. इस पर उन्होंने माइक को खटखटाया तो भीड़ से हंसी की आवाज आने लगी. इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं कि उस समय इंदिरा गांधी के प्रति लोगों में किस तरह की नाराजगी थी. यहां तक कि लोग इंदिरा गांधी के भाषण खत्म होने से पहले ही निकलना शुरू हो गए थे.
10 मिनट का प्रचार और इतिहास में दर्ज हो गई रैली
उस समय के वरिष्ठ पत्रकारों ने अपनी रिपोर्ट में कई बार इस बात का उल्लेख किया है कि 1977 में पार्टियां नहीं, जनता चुनाव लड़ रही थी. तब चंद्रशेखर कोई सभा करते थे तो एक-दो आदमी चादर लेकर घूमते थे और आसानी से 10 से 15 लाख रुपये जमा हो जाते थे. जनता पार्टी के प्रचार का नाम सुनते ही 10 से 15 हजार लोग जमा हो जाते थे. पिथौरागढ़ में डा. मुरली मनोहर जोशी चुनाव मैदान में थे और मात्र 10 मिनट ही रिक्शे पर प्रचार हुआ और यह कहा जाता है कि वो रैली पिथौरागढ़ के इतिहास की सबसे बड़ी रैली थी.
'वक्त' को बेवक्त कर दिखाई गई थी फिल्म 'बाॅबी'
उस समय विपक्ष ने दिल्ली के रामलीला मैदान में जबर्दस्त रैली की थी. उस रैली के बारे में भी कहा जाता है कि उससे बड़ी रैली रामलीला मैदान में आज तक नहीं हुई. जबकि सरकार की ओर से भीड़ को रैली से दूर करने के लिए तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ल ने दूरदर्शन पर रविवार की फीचर फिल्म का समय 4 के बदले 5 बजे करवा दिया था. यही नहीं, पूर्व निर्धारित फिल्म वक्त के बदले 1973 की सबसे ब्लाॅकबस्टर फिल्म बाॅबी को दिखाने का आदेश जारी कर दिया गया था. रामलीला मैदान के पास कोई बस आने नहीं दी गई. इस कारण लोगों को रैली में जाने के लिए एक किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ा था. उस समय फिल्म बाॅबी भी जेपी और जगजीवन राम की रैली के आकर्षण को कम नहीं कर पाई थी.
जाॅर्ज फर्नांडीस का जादू सिर चढ़कर बोला था
1977 का चुनाव जाॅर्ज फर्नांडीस ने जेल में रहकर मुज़फ्फरपुर से ही लड़ा था. उस समय वे बड़ौदा डायनामाइट केस में फंसे थे. तब सुषमा स्वराज और फर्नांडीस के परिवार ने हथकड़ियों में जकड़ी उनकी तस्वीर दिखाकर प्रचार किया था. जब चुनाव परिणामों का ऐलान हुआ तो जाॅर्ज दिल्ली के तिहाड़ जेल में बंद थे. जाॅर्ज तिहाड़ जेल के वार्ड नंबर 17 में थे. मतगणना की खबर के बारे में जेल में भी उत्सुकता थी पर खबर मिले तो मिले कैसे. तब जेल में एक डाॅक्टर रात 10-11 बजे आ-जा सकते थे. उनसे अनुरोध किया गया कि जब भी वे जेल आएं तो मतगणना का हाल पता करके आएं और यह जरूर पता कर लें कि मुज़फ्फरपुर में कौन जीत रहा है. डाॅक्टर साहब ने बताया कि जाॅर्ज एक लाख के भारी मतों से आगे चल रहे हैं. फिर क्या था, जेल में दिवाली का माहौल बन गया.
इंदिरा गांधी पिछड़ने लगीं तो आरके धवन ने डाला था दबाव
इंदिरा गांधी जब काउंटिंग में पिछड़ने लगीं तो रायबरेली के डीएम विनोद मल्होत्रा पर दोबारा काउंटिंग के लिए दबाव डाला गया. ऐसा वरिष्ठ पत्रकार रहे कुलदीप नैय्यर ने अपनी आत्मकथा बियांड द लाइंस में लिखा है. नैय्यर की किताब के अनुसार, डीएम विनोद मल्होत्रा को पहले ही राउंड से लग गया कि इंदिरा गांधी चुनाव हार रही हैं तो ओम मेहता और आरके धवन ने उन्हें फोन कर चुनाव का रिजल्ट घोषित न करने को कहा था. इंदिरा की हार पक्की होने पर डीएम विनोद ने अपनी पत्नी से राय मशविरा की. डीएम विनोद की पत्नी ने तब कहा था कि हम बर्तन मांज लेंगे पर बेईमानी नहीं करेंगे.
रोने लगी थीं कार्यवाहक राष्ट्रपति बीडी जत्ती की पत्नी
हारने के बाद इंदिरा गांधी ने अपने आवास पर ही कैबिनेट की बैठक बुलाई और आपातकाल खत्म करने का फैसला किया और तत्कालीन कार्यवाहक राष्ट्रपति बीडी जत्ती को इस्तीफा देने राष्ट्रपति भवन के लिए निकल गईं. जत्ती और उनकी पत्नी इंदिरा गांधी के आने का इंतजार कर रहे थे. कहा तो यह भी जाता है कि इंदिरा गांधी के पहुंचने के बाद बीडी जत्ती की पत्नी वहां रोने लगीं. वहां इंदिरा गांधी ने अपना इस्तीफा सौंप दिया. जत्ती ने उनसे नई सरकार बनने तक पद पर बने रहने को कहा. वहां से इंदिरा गांधी साउथ ब्लाॅक नहीं गईं बल्कि अपने घर चली गईं. शाम को उन्होंने भारत सरकार के सभी सचिवों और अपने स्टाफ को चाय पर बुलाया था.
153 सीटों पर सिमटकर रह गई थी कांग्रेस
उस चुनाव में जनता पार्टी को 270 सीटें हासिल हुई थीं तो उसके सहयोगी कांग्रेस फाॅर डेमोक्रेसी को 28 सीटें मिली थीं. कांग्रेस केवल 153 पर सिमट गई थी.