Jharkhand Vidhan Sabha Chunav 2024: झारखंड JDU अध्यक्ष खीरू महतो ने कहा कि हम भाजपा के साथ गठबंधन में झारखंड विधानसभा चुनाव लड़ने की उम्मीद कर रहे हैं. बता दें कि प्रदेश में बीजेपी का आजसू के साथ पहले से गठबंधन है.
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JDU Political Power In Jharkhand: झारखंड में इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं. बिहार की सत्ताधारी पार्टी जेडीयू भी इस बार पड़ोसी राज्य में पूरे दमखम से चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है. इसके लिए जेडीयू के सर्वेसर्वा और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कल (शनिवार, 27 जुलाई) पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ एक बैठक की. इस मीटिंग में जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय कुमार झा, बिहार के मंत्री अशोक चौधरी और एवं राज्यसभा सांसद खीरू महतो सहित अन्य लोग शामिल हुए. बैठक में झारखंड के जेडीयू प्रदेश अध्यक्ष खीरू महतो ने मुख्यमंत्री के सामने 11 उम्मीदवारों की लिस्ट रखी. ये वो सीटें जहां जेडीयू का मजबूत जनाधार है. बैठक के बाद खीरू महतो ने कहा कि जेडीयू झारखंड में भी बीजेपी के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ना चाहती है. ऐसा नहीं होने पर उन्होंने कम से कम 49 सीटों पर चुनाव लड़ने के संकेत दिए. अब सवाल ये है कि अगर बीजेपी इस डील को स्वीकार नहीं करती है तो जेडीयू के तीर से कौन घायल होगा?
झारखंड में नीतीश कुमार अपने पुराने मित्र और बीजेपी के पूर्व दिग्गज नेता सरयू राय के साथ जोड़ी बनाकर सियास अखाड़े में उतरने की तैयारी कर रहे हैं. इस तरह से जेडीयू एक तीर से दो निशाने लगाने की कोशिश में है. पहला- अपनी इस रणनीति से नीतीश कुमार प्रदेश में अपना सियासी ग्रॉफ मजबूत करना चाहते हैं. दूसरा- इससे बीजेपी पर गठबंधन करने का दबाव भी बन सकता है, क्योंकि सरयू राय वो नेता हैं जिन्होंने पिछले चुनाव में बीजेपी से बगावत करके उसे सत्ता से दूर कर दिया था.
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अगर झारखंड के पॉलिटिकल इतिहास को देखें तो यहां जेडीयू कभी भी प्रभावशाली नहीं रही. झारखंड के गठन के बाद से ही पार्टी इस राज्य में अपनी सियासी जमीन तलाश रही है. 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में जेडीयू ने 18 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन सिर्फ 6 सीटों पर जीत मिली थी. 2009 में पार्टी ने 14 सीटों पर चुनाव लड़ा और सिर्फ 2 पर जीत हासिल हुई. 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में 11 सीटों पर लड़ी और खाता तक नहीं खुला. 2019 में पार्टी सर्वाधिक 49 सीटों पर चुनाव लड़ी थी लेकिन एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई थी. इतना ही नहीं वोट प्रतिशत भी 1 फीसदी से गिरकर 0.7 फीसदी पर पहुंच गया था.