Kolebira Assembly Seat: कोलेबिरा में आजतक नहीं खिला `कमल`, पिछली बार कांग्रेस को मिली थी जीत, देखें समीकरण
Kolebira Assembly Seat Profile: कोलेबिरा सीट पर आज तक बीजेपी का `कमल` नहीं खिला है. हालांकि, पिछले कुछ चुनाव से बीजेपी को दूसरा स्थान हो हासिल हो रहा है. इससे पार्टी को उम्मीद की एक किरण नजर आ रही है.
Kolebira Assembly Seat Profile: झारखंड में एक बार फिर से विधानसभा चुनाव का रण सजने लगा है. इस चुनाव में सत्तारूढ़ इंडिया ब्लॉक जहां फिर से सत्ता पाने के लिए मैदान में उतरेगा तो वहीं बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए की भी जीत हासिल कोशिश करेगा. सभी दलों की ओर से तैयारियां शुरू हो चुकी हैं और रणनीति बनाई जा रही है. बीजेपी उन सीटों पर ज्यादा जोर लगा रही है, जहां वह ज्यादा कमजोर है. इन सीटों में कोलेबिरा विधानसभा सीट भी शामिल है. कोलेबिरा सीट पर आज तक बीजेपी का 'कमल' नहीं खिला है. यहां लंबे समय से कांग्रेस और झारखंड पार्टी का कब्जा रहा है. पिछली बार नमन बिक्सल कोंगारी ने कांग्रेस का झंडा बुलंद किया था.
2019 में हुए विधानसभा चुनाव में नमन बिक्सल कोंगारी ने बीजेपी के सुजन जोजो को 12,338 मतों से हराया था. नमन बिक्सल को 48,350 वोट हासिल हुए थे, तो वहीं सुजन जोजो को 36,167 मत मिले थे. झारखंड पार्टी की आइरिन एक्का को 18700, बहुजन समाज पार्टी के सुरेन्द्र सिंह को 1810, रासेंपा के अनिल कंडुलना को 14351, निर्दलीय शिवचरण मांझी को 1526, प्यारा मुंडू को 1474, झाविमो के दीपक केरकेट्टा को 1352, निर्दलीय डेविड पवन केरकेट्टा को 888 वोट मिले थे.
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बीजेपी को इस सीट पर भले ही आजतक जीत हासिल नहीं हुई हो, लेकिन लगातार पिछले तीन चुनाव में दूसरा स्थान हासिल हो रहा है. इससे बीजेपी को उम्मीद की एक किरण नजर आ रही है. बीजेपी नेतृत्व को लगता है कि अगर इस सीट के सामाजिक समीकरण को साध लिया जाए तो जीत का स्वाद चखने को मिल सकता है. एक अनुमान के मुताबिक इस क्षेत्र में 45 हजार से अधिक मतदाता मुंडा जनजाति से हैं. खड़िया जनजाति की आबादी भी अच्छी खासी है. इन जातियों के प्रतिनिधि को ही जीत मिलती रही है.
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क्षेत्र में जल, जंगल, जमीन की सुरक्षा, आजीविका और अमन-चैन अहम मुद्दा है. इन क्षेत्रों में बेहतर कार्य करने की जरूरत है, ताकि क्षेत्र का समुचित व समानुपातिक विकास हो सके. सरकारों ने आदिवासी हितों की अनदेखी की है. गरीबी व पलायन की गंभीर स्थिति है. फलस्वरूप लोग रोजी-रोटी के लिए पलायन करने को विवश होते हैं. क्षेत्र में जंगली हाथी सालों भर आबादी में घुसकर लोगों को परेशान करते हैं, जिससे जान-माल और फसलों का नुकसान होता है. शिक्षा, चिकित्सा, बिजली-पानी जैसे अहम बुनियादी सुविधाओं को बहाल करने की दिशा में कार्य किया जाना चाहिए.
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