लालू के रणनीतिकार और तेजस्वी के करीबी, क्यों हैं नीतीश के सियासी रडार पर?
बिहार में भले महागठबंधन के सहयोगी दल एक-दूसरे के साथ होने का दावा कर रहे हों लेकिन भीतर खाने इनके बीच सब कुछ सही नजर नहीं आ रहा है.
Lalu Yadav vs Nitish Kumar: बिहार में भले महागठबंधन के सहयोगी दल एक-दूसरे के साथ होने का दावा कर रहे हों लेकिन भीतर खाने इनके बीच सब कुछ सही नजर नहीं आ रहा है. मंत्रीमंडल विस्तार को लेकर कांग्रेस जिस तरह से अपना राग अलाप रही है वह गठबंधन के दलों के बीच के सामंजस्य को लेकर बहुत कुछ पहले ही कह चुका है. ऊपर से राजद और जदयू के बीच जिस तरह की बयानी जंग जारी है उससे भी कौन वाकिफ नहीं है. सबकुछ जनता के बीच एकदम खुले तौर पर हो रहा है इस सब के बाद भी सभी सियासी दल एकसाथ होने के दावा करते रहे हैं.
अब राजद के कोटे से नीतीश सरकार में मंत्री रहे सुधाकर सिंह, चंद्रशेखर के बाद आलोक मेहता चर्चा में आ गए हैं. मुख्यमंत्री ने आलोक मेहता के राजस्व विभाग में अधिकारियों के तबादले को लेकर रोक लगा दी है. वह बिहार सरकार में वित्त मंत्री हैं और उनके विभाग के द्वारा 480 अंचलाधिकारियों के किए गए तबादले पर नीतीश कुमार ने वीटो लगा दिया है. नीतीश इस ट्रांसफर प्रक्रिया में गड़बड़ी को इसकी वजह बता रहे हैं.
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ऐसे में अब सवाल यह उठने लगा है कि नीतीश कुमार लगातार राजद कोटे के मंत्रालयों पर ही शिकंजा क्यों कसते जा रहे हैं. हालांकि पत्रकारों के द्वारा नीतीश से जब इसको लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया. वहीं इस पूरे मामले पर आलोक मेहता भी चुप्पी साधे हुए हैं जबकि राजद के वरिष्ठ नेता भी इसपर कुछ नहीं बोल रहे हैं.
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नीतीश कुमार के सियासी रडार पर आकर सुधाकर सिंह को मंत्री पद गंवाना पड़ा, चंद्रशेखर को भी चुप्पी साधनी पड़ी, राजद एमएलसी सुनील सिंह की आवाज भी बंद है और अब आलोक मेहता भी शांत हैं. तो ऐसे में राजनीति के जानकार सवाल उठाने लगे हैं कि नीतीश के सियासी रडार पर लालू या लालू परिवार के करीबी हीं क्यों हैं?
बता दें कि राजद के जो भी मंत्री या नेता नीतीश की रडार पर आए हैं वह कम काम और बयानों की वजह से ज्यादा सुर्खियों में रहे हैं. मतलब इनके बयान सीएम को असहज करते रहे हैं. नीतीश कुमार पहले भी भाजपा के साथ जब सरकार चला रहे थे तो उन्हें तब भी इसी लिए जाना जाता था. वह 2008 में चंद्रमोहन राय जो भाजपा के कोटे से सरकार में स्वास्थ्य मंत्री से उनको अचानक हटा दिया था. 2010 में भाजपा के कोटे के कई मंत्रियों पर एक साथ गाज गिरी थी. 2010 में राधामोहन सिंह को नीतीश से बेहतर नहीं बनने की वजह से केंद्र की राजनीति की तरफ जाना पड़ा था.
हालांकि नीतीश के राजद के नेताओं पर इस तरह की कार्रवाई को राजनीति के जानकार एक मैसेज देने का तरीका बता रहे हैं. नीतीश पर जो भी लालू या तेजस्वी द्वारा सरकार चलाने का आरोप लगा रहे हैं उनको भी यह एक तरह से जवाब है.