BJP For Mission 2024: लोकसभा चुनाव में औपचारिक तौर पर भले ही अभी एक साल का समय बाकी है पर गहमागहमी का दौर शुरू हो गया है. एक तरफ जहां पीएम मोदी सहित पूरी बीजेपी ने अपनी तैयारियों को परखने का काम शुरू कर दिया है, वहीं कर्नाटक में मिली प्रचंड जीत से कांग्रेस उत्साहित है और उसके साथ पूरा विपक्ष बीजेपी के खिलाफ रणनीति सेट करने में जुट गए हैं. इसी को लेकर पटना के ज्ञान भवन में 23 जून को विपक्षी दलों की महाबैठक का आयोजन किया गया है. ममता बनर्जी ने पटना में यह बैठक कराने की सलाह दी थी, जिस पर अमल करते हुए नीतीश कुमार ने बैठक की मेजबानी करने का फैसला लिया. इस महाबैठक में यह तय किया जाएगा कि बीजेपी के खिलाफ लोकसभा चुनाव में क्या साझा रणनीति होनी चाहिए. 


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कर्नाटक चुनाव में हार के बाद से बीजेपी के अजेय होने का दावा कमजोर हुआ है. आरएसएस के मुखपत्र आर्गनाइजर ने भी सरकार को इस बात की चेतावनी दी है. अब आते हैं बीजेपी की दिक्कतों पर. बीजेपी की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि देश के अधिकांश राज्यों में वह सेचुरेशन प्वाइंट पर है. इसका मतलब यह कि बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक में पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी एक तरह से क्लीन स्वीप किया था. अब इन राज्यों में उसकी सीटें कम ही होंगी, बढ़ने वाली नहीं हैं. गुजरात में बीजेपी एक बार फिर अपना प्रदर्शन दोहरा सकती है, लेकिन बाकी राज्यों में बीजेपी के लिए 2019 का प्रदर्शन दोहराना पहाड़ पर चढ़ने जैसा मुश्किल काम होगा. 


पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बिहार में 40 में से 39, महाराष्ट्र में 48 में से 41, कर्नाटक में 28 में से 26, मध्य प्रदेश में 29 में से 28 और राजस्थान में 25 में से 25 सीटें जीती थीं. बीजेपी की दिक्कत यही है. अब इन राज्यों में बीजेपी के लिए अपने प्रदर्शन को दोहरा पाना मुश्किल काम होगा. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं कि बिहार में राजद और जेडीयू के साथ कांग्रेस का एक बड़ा महागठबंधन है, जो बीजेपी को किसी भी कीमत पर क्लीन स्वीप नहीं होने देगा. महाराष्ट्र में बीजेपी ने शिवसेना तोड़कर भले ही एकनाथ शिंदे की सरकार बना ली, लेकिन जमीन पर शिंदे सेना उद्धव की सेना से मुकाबला कितना कर पाएगी, यह देखना बाकी होगा. 


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कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जिस तरह से कांग्रेस ने जीत हासिल की है, उसे देखकर वहां लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लिए मुश्किलों का अंदाजा सहज लगाया जा सकता है. मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच के टकराव से हालात बीजेपी के लिए उतने अच्छे नहीं कहे जा सकते. राजस्थान में भी अशोक गहलोत ने जो इस बार दांव खेला है, उसे देखकर नहीं लगता कि बीजेपी वहां 25 में से 25 सीटें अपनी झोली में डाल सकती है.


लोकसभा चुनाव 2019 में इन राज्यों ने बीजेपी को भर-भरकर वोट दिए थे तो सवाल उठता है कि क्या बीजेपी इस बार भी अपना पुराना प्रदर्शन दोहरा पाएगी. विपक्ष के उत्साहित होने का भी कारण यही है. विपक्ष भी यह बात भलीभांति जानता है कि इन पांच राज्यों में बीजेपी की सीटें कम ही होंगी, बढ़ने वाली नहीं हैं. इन राज्यों में विपक्ष को जहां डबल डिजिट का फायदा हो सकता है तो बीजेपी को डबल डिजिट का लाॅस भी हो सकता है. अगर ऐसा होता है तो क्या होगा. उत्तर भारत में केवल उत्तर प्रदेश ही ऐसा राज्य है, जहां के बारे में राजनीतिक विश्लेषक भी यह मानते हैं कि यह बीजेपी के लिए वोट बैंकर स्टेट साबित हो सकता है. उत्तर प्रदेश के अलावा यह करिश्मा गुजरात दोहरा सकता है. इन दो राज्यों को छोड़कर किसी भी राज्य को लेकर कोई भी विश्लेषक बीजेपी के लिए 2019 का प्रदर्शन दोहराने की गारंटी नहीं दे रहा है. 


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एक कर्नाटक चुनाव ने देश की चुनावी फिजा को बदलकर रख दिया है. कहां तो माना जा रहा था कि पीएम मोदी और बीजेपी को अभी कोई चुनौती नहीं दे सकता या फिर कोई दल इस स्थिति में नहीं है कि बीजेपी की केंद्र की सरकार को उखाड़ फेंके. लेकिन कर्नाटक चुनाव परिणाम जिस तरह से आए हैं, उससे जानकारों की तो छोड़िए, बीजेपी और उसके मातृ संगठन आरएसएस की चिंताएं भी उजागर होने लगी हैं. अब देखना होगा कि हर गंभीर चुनौती से डटकर मुकाबला करने वाले पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह पार्टी के सामने आए इस गंभीर चुनौती से कैसे सामना कर पाते हैं.