Bihar Politics: क्या चिराग पासवान की पार्टी को बीजेपी ने दिया था विलय का प्रस्ताव? अब क्या होगी आगे रणनीति
Advertisement
trendingNow0/india/bihar-jharkhand/bihar1743637

Bihar Politics: क्या चिराग पासवान की पार्टी को बीजेपी ने दिया था विलय का प्रस्ताव? अब क्या होगी आगे रणनीति

बीजेपी ने चिराग पासवान को विलय करने के एवज में उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार भी घोषित करने का वादा किया था. हालांकि यह कहा जा रहा है कि चिराग ने इस तरह के किसी भी प्रस्ताव को मानने से इनकार कर दिया है. 

चिराग पासवान

Chirag Paswan News: विलय के प्रस्ताव के खिलाफ हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा ने महागठबंधन से नाता तोड़ लिया और उसके एकमात्र मंत्री संतोष मांझी ने नीतीश सरकार से इस्तीफा दे दिया था. अब खबर आ रही है कि भाजपा ने भी चिराग पासवान को लोजपा आर को विलय का प्रस्ताव दिया था. हालांकि चिराग पासवान ने विलय के किसी भी प्रस्ताव से इनकार कर दिया. पटना से जो छनकर खबरें आ रही हैं, उसमें कहा गया है कि चिराग पासवान को विलय करने के एवज में भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार भी घोषित करने का वादा किया था. हालांकि यह कहा जा रहा है कि चिराग पासवान ने इस तरह के किसी भी प्रस्ताव को मानने से इनकार कर दिया है. चिराग पासवान किसी भी हाल में अपने पिता रामविलास पासवान की विरासत यानी उनकी पार्टी और उनकी राजनीतिक तपस्या को किसी पार्टी में विलय कर खत्म नहीं करना चाहते हैं. एक पत्रकार ने दावा किया है कि दो महीने पहले एक अनौपचारिक बातचीत में चिराग पासवान ने इस तरह के दावे किए थे.

उस पत्रकार की ओर से यह भी कहा गया है कि 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद उपेंद्र कुशवाहा को भी इस तरह का प्रस्ताव दिया गया था, लेकिन उन्होंने भी यह प्रस्ताव मानने से इनकार कर दिया था. बिहार में भाजपा के साथ दिक्कत यह है कि उसके पास कैडर तो है पर मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में कोई चमत्कारिक चेहरा नहीं है. सुशील कुमार मोदी बिहार में लंबे समय तक शीर्ष नेता रहे पर मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के रूप में पार्टी ने उन्हें कभी नहीं उतारा. इसका सबसे बड़ा कारण यह रहा कि नीतीश कुमार की पार्टी के साथ भाजपा का वर्षों पुराना गठबंधन चल रहा था. 2020 के विधानसभा चुनाव में जब भाजपा ने जेडीयू से भी अधिक सीटें हासिल की तो सुशील कुमार मोदी को डिप्टी सीएम न बनाकर रेणु देवी और तारकिशोर प्रसाद के रूप में दो डिप्टी सीएम बनाए गए थे लेकिन वे दोनों भी कोई खास कमाल नहीं दिखा पाए और नीतीश कुमार ने बीच में ही भाजपा को गच्चा देकर अगस्त 2022 में महागठबंधन का दामन थाम लिया था. उसके बाद से भाजपा विपक्ष में बैठने को मजबूर हो गई है. 

ये भी पढ़ें- वन नेशन-वन इलेक्शन पर आगे बढ़ेंगे PM मोदी? लोकसभा के साथ होंगे इन राज्यों के चुनाव!

अब भाजपा के पास मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में कोई चमत्कारिक चेहरा नहीं है, जिससे जनता एकदम से प्रभावित हो जाए. हालांकि बीजेपी ने पिछले दिनों जब से सम्राट चैधरी के रूप में नया प्रदेशाध्यक्ष बनाया है, तब से कई तबकों से उन्हें मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के रूप में प्रचारित किया जा रहा है. हालांकि सम्राट चैधरी की चैधराहट को भी पार्टी के भीतर से चुनौती मिलती दिख रही है. राजीव प्रताप रूढ़ी ने सीएम पद की उम्मीदवारी को लेकर सम्राट चैधरी को पिछले दिनों चुनौती दे डाली थी. दूसरी ओर, गिरिराज सिंह ने एक सभा में सम्राट चैधरी को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में उपयुक्त नेता बताया था. प्रदेशाध्यक्ष के रूप में सम्राट चैधरी खासे एक्टिव दिखाई दे रहे हैं और नीतीश कुमार की हर बात का सीधा-सीधा जवाब दे रहे हैं. 

ये भी पढ़ें- वो पांच बड़े कारण जिनके चलते PM मोदी नहीं करवाएंगे समय से पहले लोकसभा चुनाव

सम्राट चैधरी कुशवाहा समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो प्रदेश में यादव समाज के बाद सबसे बड़ा ओबीसी समुदाय माना जाता है. अब तक कुशवाहा समाज उपेंद्र कुशवाहा के चलते नीतीश कुमार को वोट करता आया है और कुर्मी-कुशवाहा समीकरण को नीतीश कुमार ने लव-कुश नाम दिया था. यही नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू का आधार वोट बैंक रहा है, लेकिन पिछले कुछ उपचुनाव से देखा जा रहा है कि कुशवाहा बहुल इलाकों में जेडीयू नहीं, बल्कि बीजेपी की जीत हो रही है. इसे कुशवाहा वोटों की शिफ्टिंग के तौर पर देखा जा रहा है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कुशवाहा समाज का वोट खिसकने से नीतीश कुमार का आधार वोट बैंक प्रभावित हुआ है और वे राजनीतिक तौर पर कमजोर हुए हैं. इसलिए कुशवाहा समाज से आने वाले सम्राट चैधरी को पार्टी ने प्रदेशाध्यक्ष की कमान दे दी है और दूसरी ओर कुशवाहा समाज के बड़े नेता उपेंद्र कुशवाहा भी बीजेपी के साथ आने वाले हैं. बस आधिकारिक ऐलान बाकी है.

Trending news