पटना: बिहार के सियासत से इन दिनों केंद्र के रास्ते की तलाश कर रहे नीतीश कुमार के लिए स्थिति भले ही उनके हिसाब से संतोषप्रद दिख रही हो लेकिन ऐसा है नहीं. बिहार की राजनीति में पल-पल बदलते सियासी समीकरण ने नीतीश कुमार की भी चिंता बढ़ा दी है. एक तरफ नीतीश कुमार 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष को एकजुट करने में लगे हुए हैं तो वहीं दूसरी तरफ नीतीश कुमार के साथ विपक्ष के कई जल ही उनके फॉर्मूले पर सहमत नजर नहीं आ रहे हैं. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING


आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल से मुलाकात के बाद जहां नीतीश गदगद दिख रहे थे वहीं आप की तरफ से मुलाकात के हफ्ते दिन बाद ही घोषणा कर दी गई कि लोकसभा चुनाव में आप किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं होगी और अपने दम पर चुनाव लड़ेगी. एम के स्टालिन को नीतीश से परहेज है भले वह तेजस्वी के साथ खड़ी हो. नीतीश को टटोल चुके केसीआर भी अब नीतीश से किनारा कर चुके हैं. ममता बनर्जी कांग्रेस के साथ को लेकर असहज है तो वहीं सपा की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है. ऐसे में नीतीश अखिलेश और उसके बाद ममता से मिलने वाले हैं लेकिन नतीज क्या निकलेगा उनको भी पता है. शरद पवार नीतीश के बाद मल्लिकार्जुन खड़गे से मिले और सूत्रों की माने तो इसलिए खफा नजर आए की कांग्रेस नीतीश को ज्यादा तरजीह दे रही है. 


भाजपा के बिना 2014 के चुनाव में उतर चुकी नीतीश की पार्टी जदयू को पता है कि उनका तब क्या हाल हुआ था. 2014 में जदयू दो सीटों पर बिहार में सिमट गई थी जबकि 2019 में भाजपा के साथ की वजह से वह 16 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थी. ऐसे में इस बार भाजपा से अलग यह नीतीश का एसिड टेस्ट ही होगा. 


 अभी नीतीश के साथ गठबंधन में राजद है लेकिन राजद के समर्थक खुले मन से अभी भी नीतीश के साथ नहीं हैं. आरजेडी के वोटरों के द्वारा नीतीश का लगातार विरोध किया जाता रहा है. नीतीश पहले से राजद के मुखर विरोधी रहे हैं और इसी दम पर उनकी बिहार में सत्ता पर पकड़ बनी. नीतीश को राजद के साथ से ऊब चुके वोटरों ने विकल्प के तौर पर माना था. ऐसे वोटर अब नीतीश का राजद का साथ देने से खफा नजर आ रहे हैं. वहीं नीतीश कुमार का साथ जिस तरह से उनके करीबी छोड़ रहे हैं उसका भी नुकसान नीतीश को होगा उपेंद्र कुशवाहा और आरसीपी सिंह का नीतीश का साथ छोड़ना उनके लवकुश समीकरण में सेंध के तौर पर देखा जा रहा है. 


ये भी पढ़ें- नीतीश के लिए कांग्रेस का साथ और 'ममता' की छांव, क्षेत्रीय दलों को नहीं कबूल, पावर में दिखे पवार


नीतीश के खिलाफ जिस तरह से मुखर होकर गठबंधन में रहने के बाद भी राजद के नेता सुधाकर सिंह के साथ कई और नेता बयान देते रहे हैं और पार्टी ने किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है तो इससे भी नीतीश को सब समझ में आ रहा है. वहीं नीतीश को राजद के नेता ही बिहार में कुर्सी पर अब ज्यादा नहीं देखना चाहते हैं और उनकी जगह पर तेजस्वी की ताजपोशी की आस लगाए बैठे हैं. 


वहीं उपेंद्र कुशवाहा के उस बयान ने तो नीतीश को और परेशान कर दिया है जब उन्होंने कहा कि जेडीयू के कई सांसद इनके और भाजपा के संपर्क में हैं. जदयू सांसदों को भी पता है कि अगर भाजपा का साथ नहीं मिला तो 2014 वाली स्थिति उनकी हो जाएगी. वहीं भाजपा ने भी नीतीश के साथ बिहार में खेला करने के लिए जीतन राम मांझी, चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा, मुकेश सहनी जैसे नेताओं को अपने पाले में लाने की कवायद शुरू कर दी है. ऐसे में नीतीश को भी पता है कि इस बार पीएम की कुर्सी पर पहुंचने से पहले ही उनके साथ खेला हो सकता है. आपको बता दें कि वैसे भी महागठबंधन में अभी भी नीतीश असहज महसूस कर रहे हैं और दूसरा तरफ भाजपा की तरफ से लगातार यह कहा जाना कि अब एनडीए में उनके लिए कोई जगह नहीं है उनकी परेशानी को और बढ़ा रहा है.