नीतीश के लिए कांग्रेस का साथ और 'ममता' की छांव, क्षेत्रीय दलों को नहीं कबूल, पावर में दिखे पवार
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नीतीश के लिए कांग्रेस का साथ और 'ममता' की छांव, क्षेत्रीय दलों को नहीं कबूल, पावर में दिखे पवार

बिहार की सियासत से इस बार केंद्र तक जाने का रास्ता तलाश रहे कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों को एक बार फिर से झटका लगा है. दरअसल कांग्रेस जहां नीतीश कुमार के लिए राहों में फूल बिछा रही है वहीं कांग्रेस का यह साथ क्षेत्रीय दलों को कबूल नहीं हो रहा है.

(फाइल फोटो)

पटना: बिहार की सियासत से इस बार केंद्र तक जाने का रास्ता तलाश रहे कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों को एक बार फिर से झटका लगा है. दरअसल कांग्रेस जहां नीतीश कुमार के लिए राहों में फूल बिछा रही है वहीं कांग्रेस का यह साथ क्षेत्रीय दलों को कबूल नहीं हो रहा है. यही वजह है कि नए गठबंधन के बनने से पहले और सियासी जुगलबंदी के तैयार होने से पहले ही कई दलों के सियासी सुर बदलने लगे हैं. 

हाल ही में नीतीश कुमार राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, अरविंद केजरीवाल, सीताराम येचुरी, लालू प्रसाद यादव से दिल्ली में मिलकर आए तो वहीं अब वह सियासी समीकरण साधने के लिए ममता बनर्जी से मिलने ममता की छांव में पश्चिम बंगाल पहुंचने वाले हैं. इसको लेकर सियासी चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है. ममता के बारे में सबको पता है कि वह जिसपर विश्वास कर ले उसके लिए कुछ भी करने को तैयार रहती हैं. 25 अप्रैल को ममता और नीतीश की मुलाकात में 2024 के राजनीतिक समीकरण पर ही बात होगी यह स्पष्ट है. बता दें कि इससे पहले अखिलेश यादव ममता से मिल चुके हैं और तब कांग्रेस से अलग क्षेत्रीय दलों की एकता के सहारे 2024 के चुनाव पर फोकस करने पर बात बनी थी. 

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ममता अखिलेश के मुलाकात के तुरंत बाद ममता ओडिशा मे नवीन पटनायक से मिली थीं तो वहीं जनता दल (सेक्युलर) नेता एच डी कुमारस्वामी ने उनसे मुलाकात की थी. वहीं वह एम के स्टालिन से भी बात कर चुकी हैं. एक तरफ तो कांग्रेस नीतीश को विपक्षी दलों को साथ लाने का काम सौंप चुकी है वहीं ममता बनर्जी कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता का सुर अलाप रही हैं. यहां सूत्रों की मानें तो OSOC यानी एक सीट एक उम्मीदवार के 1977 के फॉर्मूले को सुझाया गया और कहा गया कि कोई भी पीएम का चेहरा नहीं होगा जो पार्टी सबसे ज्यादा सीट जीतेगी या फिर सर्वसम्मति से जो सर्वमान्य नेता होगा उसी को जीतने के बाद पीएम बनाया जाएगा. इसके साथ हीं यह भी फॉर्मूले में रखा गया कि जहां जो पार्टी ताकतवर होगी वहां उसी के पास अधिकार होगा की वह गठबंधन की दूसरी पार्टी को लड़ने के लिए वहां कितनी सीटें दे. 

 हालांकि नीतीश यह दावा करते हैं कि अधिक से अधिक विपक्षी दलों को एक साथ लाने की कोशिश करेंगे मतलब साफ है कि नीतीश भी मान रहे हैं कि सभी विपक्षी दलों को भाजपा के खिलाफ एक मंच पर एक साथ नहीं लाया जा सकता है. वहीं कांग्रेस के साथ को लेकर कई दल असहज भी महसूस कर रहे हैं. टीएमसी, आप और समाजवादी पार्टी तो कांग्रेस से दूरी बनाकर रखने पर ही विचार कर रही है. आप तो नीतीश से मुलाकात के हफ्ते बाद ही स्पष्ट कर चुकी है कि लोकसभा चुनाव वह अपने दम पर लड़ेगी वह किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेगी.

वहीं राजनीतिक सूत्रों की मानें तो नीतीश के बाद खड़गे की मुलाकात शरद पवार से भी हुई लेकिन नीतीश को ज्यादा तरजीह देना पवार को पसंद नहीं आया. शरद पवार की पार्टी में खुद उथल-पुथल चल रहा है. उनके भतीजे अजित पवार को लेकर चर्चा है कि दिल्ली में उनकी मुलाकात भाजपा नेताओं से हुई है और वह जल्द ही भाजपा ज्वाइन करने वाले हैं. अडानी के मुद्दे पर विपक्ष के जेपीसी की मांग पर शरद पवार पहले ही विपक्षियों को झटका दे चुके हैं. बता दें कि इस विपक्षी एकता में सबसे बड़ी बाधा पीएम का चेहरा ही होगा क्योंकि एम के स्टालिन, ममता बनर्जी, केसीआर पहले ही अपनी तरफ से संकेत देकर पीएम पद का चेहरा बनने की महत्वाकांक्षा दिखा चुके हैं.   

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