Lok Sabha election 2024: बिहार के रास्ते केंद्र की सत्ता की तैयारी में लगे विपक्षी दल को भले एकजुट करने की जुगत में प्रदेश के सीएम नीतीश कुमार लगे हुए हैं लेकिन उन्हें भी पता है कि एक ही मंच पर विपक्षी दलों को लाना इतना आसान नहीं है. नीतीश कुमार जानते हैं कि मिशन 2024 के लिए विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने में 'बड़े रोड़े हैं इस राह में'. नीतीश कुामर अभी तक जिन भी विपक्षी दलों के नेताओं से मिले हैं उसके बाद उनकी बॉडी लैंग्वेज देखकर लगा कि वह एक कदम और इस राह में सफलता की सीढ़ी चढ़ चुके हैं लेकिन क्या यह राह इतनी आसान है. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING


2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले 2018 का वह वक्त भी राजनीति के जानकार नहीं भूले होंगे जहां एक साथ मंच पर ऐसे-ऐसे नेता इकट्ठे हुए जो राजनीतिक तौर पर एक दूसरे को देखना तक पसंद नहीं करते लेकिन 2019 के चुनाव से ठीक पहले 18 में मंच पर हाथ से हाथ जोड़े इन नेताओं ने एक दूसरे से अपना हाथ छुड़ाया और निकल गए अपनी पार्टी के साथ चुनावी समर में उतर गए. नीतीश कुमार को भी पता है कि ऐसा ही कुछ इस बार भ होना है क्योंकि उनके इस राह में कई रोड़े हैं जिनको हटा पाना उनके लिए आसान नहीं है. 


आपको बता दें कि कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस को मिली प्रचंड जीत के बाद कांग्रेसी उत्साहित हैं. वह उत्साह जो राहुल गांधी की सांसदी जाने के बाद ठंडा पड़ गया था वह अब एक बार फिर से उबाले मार रहा है. नीतीश कुमार ने कांग्रेस को जो विपक्षी एकता का फॉर्मूला थमाया था OSOC यानी एक सीट पर एक उम्मीदवार वाला क्या अब कांग्रेस ही इससे इत्तेफाक रखेगी. अगर पूछें तो जवाब मिलेगा नहीं. इसके पीछे की एक वजह है कि इस फॉर्मूले में बताया गया कि जहां जो मजबूत है या जो पार्टी दूसरे नंबर पर रही है उसे ही वहां से लड़ने के लिए उम्मीदवार का चयन करना होगा. मतलब इस लिहाज से तो कांग्रेस के लिए यूपी और बिहार में कुछ बचा ही नहीं. ममता बनर्जी भले अभी विपक्षी एकता के साथ खड़ी दिखाई दे रही हो लेकिन वह हाल ही में पश्चिम बंगाल में हुए उपचुनाव को भूली नहीं है जब कांग्रेस और वाम दल मिलकर ममता की पार्टी के उम्मीदवार के खिलाफ मैदान में उतरे और टीएमसी को हार का सामना करना पड़ा. 


ये भी पढ़ें- Opinion: खत्म हो रहा मोदी मैजिक? बीजेपी को अब बदलनी होगी अपनी रणनीति


हालांकि इस सब को नीतीश कुमार मैनेज भी कर ले तो कांग्रेस को कैसे मैनेज करेगी. जिसे 200 के करीब सीटों पर लड़ने देने की बात हो रही थी उस पार्टी ने कर्नाटक के चुनाव में जो प्रदर्शन किया है क्या वह अब इस आंकड़े से संतुष्ट होगी. वहीं दूसरी तरफ नीतीश कुमार बड़ी आशा के साथ नवीन पटनायक से मिलकर आए थे और उनके आने के बाद नवीन पटनायक का संदेशा भी आ गया कि उनकी पार्टी अकेले दमपर लोकसभा का चुनाव लड़ेगी. नवीन पटनायक ने तो पीएम मोदी से मुलाकात के बाद यह भी कह दिया की देश को तीसरे मोर्चे की जरूरत नहीं है. 


नीतीश अरविंद केजरीवाल से मिल आए और उसके बाद केजरीवाल की पार्टी ने भी हफ्ते भर बाद अकेले लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया. ऐसे में नीतीश कुमार को पता है कि वह कोशिश कर रहे हैं इसका अंजाम क्या होगा उन्हें भी नहीं पता. ऐसे में उनके अंदर भी इसको लेकर निराशा के भाव हैं तभी वह कहते रहे हैं कि अधिक से अधिक विपक्षी दलों को 2024 में भाजपा को फिर से सत्ता में आने से रोकने के लिए एक साथ आना होगा. 


अब एक तरफ कर्नाटक के नतीजे आने के बाद यह कहा जा रहा है कि कांग्रेस अब अकेले अपने दम पर लोकसभा का चुनाव लड़ेगी. ऐसे में नीतीश कुमार के पास थर्ड फ्रंट का विकल्प बचता है. वहीं कांग्रेस के साथ तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर भी नहीं रहना चाहते हैं. वह कई मौकों पर विपक्षी एकता में कांग्रेस रहित साथ की बात दोहरा चुके हैं. वहीं एनसीपी नेता शरद पवार का नाम आगे कर तो नीतीश ने कांग्रेस को ही परेशानी में डाल दिया है. ऊपर से नीतीश अगर मन ही मन यह ख्याल रख रहे हैं कि उन्हें पीएम का चेहरा बनाया जाएगा तो यह भी नहीं हो सकता क्योंकि बिहार में ज्यादा से ज्यादा कितनी सीटों पर महागठबंधन जदयू को चुनाव लड़ने का मौका देगी. अग मान लें आधी सीटों पर भी तो 20 सीटों पर जीत तो सुनिश्चित नहीं होगी. अगर जीत सुनिश्चित हो भी गई तो क्या 20 सीट लेकर आई पार्टी के नेता को गठबंधन के सभी दल पीएम के रूप में स्वीकार कर लेगें. ऐसे में अभी विपक्ष की राह में बड़े रोड़े हैं.