पटना: नीतीश ने बीजेपी का साथ छोड़ा और लालू-तेजस्वी के साथ आ गए. जाहिर है ये गठबंधन दोनों के लिए फायदेमंद नजर आ रहा है लेकिन दोनों में से किसको ज्यादा फायदा होगा? ये सवाल बड़ा अहम है क्योंकि इसके जवाब में बिहार की सियासत का फ्यूचर छिपा है. क्या पटना यूनिवर्सिटी छात्र संघ चुनाव के नतीजे इस सवाल का कुछ हद तक जवाब दे रहे हैं? 


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छात्रसंघ चुनाव में जेडीयू का जलवा
दरअसल, पटना यूनिवर्सिटी छात्र संघ चुनाव (Patna University Student Union Election 2022) में सेंट्रल पैनल के कुल 5 पदों में 4 पदों पर छात्र जेडीयू ने कब्जा जमाया है. वहीं एबीवीपी के खाते में मात्र एक सीट आई है. 


राजद का बुरा प्रदर्शन
खास बात ये है कि चुनाव छात्र आरजेडी ने भी लड़ा लेकिन उसके हाथ इस पैनल में कुछ नहीं आया. ये चीज इसलिए और भी चौंकाती है कि क्योंकि जेडीयू की तुलना में आरजेडी के पास युवा चेहरे है. तेजस्वी हैं, तेज प्रताप हैं.


किसे किस सीट पर मिली जीत
छात्र जेडीयू के आनंद मोहन अध्यक्ष, विक्रमादित्य सिंह उपाध्यक्ष, संध्या कुमारी संयुक्त सचिव और रविकांत ने कोषाध्यक्ष का चुनाव जीता. महासचिव चुनाव एबीवीपी के बिपुल कुमार ने जीता.


पिछले बार से बदली तस्वीर
ये नतीजे 2019 में हुए छात्र संघ चुनाव से बड़ा शिफ्ट हैं. पिछली बार छात्र जेडीयू का कोई भी उम्मीदवार सेंट्रल पैनल में नहीं जीत पाया था. उस साल 5 में से दो सीटों पर JAP-AISF गठबंधन जीता था. छात्र RJD, ABVP और AISA को 1-1 सीट मिली थी. लेकिन इस बार छात्र RJD, जन अधिकार पार्टी, AISA, NSUI, AISF या फिर निर्दलीयों का सूपड़ा साफ हो गया.


जेडीयू ने नीतीश के सिर बांधा जीत का सेहरा
गौर करने वाली बात ये है कि बिहार में नया गठबंधन बनने के बाद ये पहले छात्र संघ चुनाव थे. कहने को तो ये छात्रसंघ चुनाव हैं लेकिन सबको पता है कि छात्र संगठनों को संबंधित पार्टी का सहयोग रहता है. पटना यूनिवर्सिटी छात्र संघ चुनाव नतीजों को कुछ लोग जेडीयू की जीत के तौर पेश कर रहे हैं. खुद जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने नीतीश कुमार पर भरोसा जताने के लिए छात्रों का आभार जताया है. 


जेडीयू को कैसे मिला फायदा?
तो क्या ये माना जाए कि बीजेपी के साथ रहने पर नीतीश को जितना नुकसान हो रहा था, उतना ही फायदा आरजेडी के साथ आने पर हो रहा है?  वैसे ये कहना अभी जल्दबाजी हो सकती है, लेकिन अगर ऐसा होता है तो इसकी वजह ये हो सकती है कि हिंदुत्वा की राजनीति करने वाली बीजेपी के साथ रहकर नीतीश कुमार अपने क्रेडेंशियल खो रहे थे. उनकी धर्मनिरपेक्ष छवि को चोट पहुंच रही थी. 


लोकसभा-विधानसभा चुनाव में बदलेगी तस्वीर
बीजेपी-जेडीयू के साथ से अल्पसंख्यक और राइट-लेफ्ट के बीच खड़ा वोटर आरजेडी के लिए गोलबंद हो रहा था. बिहार में समीकरण बदलने के बाद धर्मनिरपेक्ष राजनीति के अकेली मुख्य दावेदार पार्टी आरजेडी नहीं रह गई है. आरजेडी के हिस्से के काफी वोटर अब जेडीयू की तरफ शिफ्ट हो सकते हैं. अगर ये ट्रेंड बना तो 2024 और 2025 के चुनावी नतीजों पर असर डालेगा. 


ये असर कितना होगा, इसपर गठबंधन की पार्टियों के रिश्ते भी निर्भर करेंगे. ये रिश्ता कैसा है, इसपर बिहार की राजनीति निर्भर करेगी.