Solar Activity In 2024: सूर्य पर तेज हुई गतिविधियों के चलते पृथ्वी पर आफत आ सकती है. पिछले हफ्ते, तीन सैटेलाइट समय से पहले ही धरती पर वापस गिर गए.
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Science News in Hindi: पिछले सप्ताह, तीन ऑस्ट्रेलियाई उपग्रह पृथ्वी के वायुमंडल में जल गए. ऐसा होना पहले से तय था. जब कोई सैटेलाइट पृथ्वी की निचली कक्षा (2,000 किलोमीटर या उससे कम) में होता है, तो ऑर्बिटल डिके महसूस करता है. धीरे-धीरे सैटेलाइट सतह की ओर खिंचता है और वायुमंडल में भस्म हो जाता है. लेकिन ऑस्ट्रेलिया के वो तीन सैटेलाइट समय से पहले ही वायुमंडल में दाखिल हो गए थे. तीनों सैटेलाइट्स को बाहरी अंतरिक्ष में छह महीने तक रहना था, मगर वे दो महीने ही टिक पाए. वक्त से पहले उनके खत्म हो जाने की वजह है सूर्य पर तेज हो रही गतिविधियां.
हाल के सालों में सौर गतिविधियां बढ़ने से सैटेलाइट ऑपरेटर्स की हालत खराब हो रखी है. सूर्य से निकलने वाली ऊर्जा बाहरी वायुमंडल में सोख ली जाती है और वह गुब्बारे की तरह फूल जाता है. इससे पृथ्वी की नजदीकी कक्षाओं में मौजूद सैटेलाइट्स खतरे में पड़ जाते हैं क्योकि उन पर वायुमंडल का खिंचाव बढ़ जाता है. यह एक ऐसा बल है जो उनकी कक्षा में अड़ंगा लगाता है उन्हें ग्रह की सतह की ओर गिरने के लिए मजबूर करता है.
The Sun emitted a strong solar flare on Nov. 6, 2024, peaking at 8:40 a.m. ET. NASA’s Solar Dynamics Observatory captured an image of the event, which was classified as X2.3. https://t.co/ShmsbiXgMF pic.twitter.com/Q3AZem2bIf
— NASA Sun & Space (@NASASun) November 6, 2024
सूर्य पर आखिर क्या चल रहा है?
सूर्य इस समय अपने प्रचंड रूप में है. दरअसल, सूर्य का चुंबकीय क्षेत्र लगातार बदलता रहता है. करीब-करीब हर 11 साल में यह पूरी तरह से पलट जाता है. इस 11 वर्षीय चक्र के बीच में, सौर गतिविधियां अपने चरम पर होती हैं. सौर गतिविधियों में सनस्पॉट (सूर्य की सतह पर काले धब्बे), सौर ज्वालाएं और सौर हवाएं आती हैं. फिलहाल सूर्य सौर चक्र 25 से गुजर रहा है.
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सूर्य के मौसम का धरती पर असर
सूर्य पर कुछ भी होता है तो उसका असर पृथ्वी पर दिखता है. सोलर एक्टिविटी का सबसे अच्छा उदाहरण आसमान में नजर आने वाली रंगीन रोशनी है जिन्हें 'ऑरोरा' कहते हैं. यह रोशनी सूर्य से निकलने वाले आवेशित कणें के वायुमंडल से टकराने पर पैदा होती है.
सौर ज्वालाओं और सौर हवाओं से आवेशित कणों की संख्या कई गुना बढ़ जाती है. इससे सैटेलाइट्स पर लगे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के बिगड़ने का खतरा रहता है. आयन रेडिएशन भी बढ़ जाता है जो एस्ट्रोनॉट्स और पायलट्स के लिए खतरनाक है. लंबी दूरी के रेडियो कम्युनिकेशन में भी बाधा आती है.
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सैटेलाइट्स को खतरा क्यों?
पृथ्वी की निचली कक्षा में मौजूद सैटेलाइट्स पर सौर गतिविधि का लगातार असर पड़ता है. सूर्य से आने वाली अतिरिक्त ऊर्जा बाहरी वायुमंडल में अवशोषित हो जाती है, जिससे यह किसी गुब्बारे की तरह, बाहर की ओर फैल जाता है. इसका नतीजा यह होता है कि पृथ्वी से 1,000 किमी से कम दूरी पर स्थित सभी सैटेलाइट्स में वायुमंडलीय खिंचाव में काफी इजाफा होता है. यह खिंचाव उनकी कक्षा में रुकावट बनता है और उन्हें ग्रह की सतह की ओर गिरने का कारण बनता है.
इस इलाके के प्रमुख सैटेलाइट्स में- अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) और स्टारलिंक तारामंडल शामिल हैं. इन सैटेलाइट्स में वायुमंडलीय खिंचाव को बेअसर करने वाले थ्रस्टर्स लगे हैं, हालांकि वह काफी महंगे होते हैं. निचली कक्षा में कई यूनिवर्सिटीज के सैटेलाइट्स हैं, जैसे ऑस्ट्रेलिया की कर्टिन यूनिवर्सिटी. इसी के तीन सैटेलाइट्स पिछले हफ्ते वायुमंडल में भस्म हुए.