पटना: बिहार की सियासत में नीतीश कुमार को माहिर खिलाड़ी माना जाता है, लेकिन पिछले साल महागठबंधन में या यूं कहें राजद के साथ फिर से जाने के फैसले पर अब सवाल उठाए जाने लगे हैं. महागठबंधन में जाने या राजद के साथ जाने का फैसले के बाद जदयू के साथ बहुत कुछ अच्छा होता नहीं दिख रहा.


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महागठबंधन में जाने से कोई लाभ नहीं
कहा जा रहा है नीतीश के एनडीए छोड़कर महागठबंधन में जाने के बाद जदयू के लिए कोई लाभ नहीं हुआ. महागठबंधन में जाने के बाद जहां पार्टी में भी अंतर्कलह दिखाई देने लगा, वहीं तीन उप चुनाव में दोनों पार्टियां एक दूसरे के वोटबैंक को शिफ्ट नहीं करा सकी.


नीतीश के बिना जदयू की कल्पना नहीं
हाल के दिनों में राजनीति पर गौर करें तो इसमें कोई शक नहीं की नीतीश के बिना जदयू की कल्पना नहीं की जा सकती है. पिछले दो दशक से जदयू को नीतीश ने अपने कंधे पर रखकर ही सत्ता में बना कर रखा है.


नीतीश का फैसला सही नहीं
पिछली बार भी महागठबंधन के साथ जाने के बाद नीतीश फिर से सत्ता तक पहुंच गए थे, लेकिन बहुत कम दिनों उन्हे फिर से बदलकर एनडीए के साथ आना पड़ा था. उस समय भी माना गया था कि नीतीश का फैसला सही नहीं था. विधानसभा चुनाव 2020 में जदयू एनडीए के साथ होकर चुनाव मैदान में उतरी और फिर से सत्ता तक पहुंच गई. इसके बाद जदयू इस बार एनडीए को छोड़कर महागठबंधन के साथ चली गई.


महागठबंधन बनने के बाद नई परिस्थिति
इस चुनाव में जदयू के सांसद और विधायक राजद के खिलाफ चुनाव जीतकर आए हैं, इसलिए महागठबंधन बनने के बाद नई परिस्थिति में उन्हें चुनाव में टिकट मिलने से लेकर जीतने की गुंजाइश कितनी है, इसको लेकर ऊहापोह की स्थिति है.


पार्टी में अंतर्कलह 
महागठबंधन के बाद तीन विधानसभा क्षेत्रों में हुए उप चुनाव में भी राजद और जदयू को बहुत लाभ नहीं हुआ. इधर, पार्टी में अंतर्कलह भी सामने आया है. पार्टी के संसदीय दल के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने भी इन दिनों राजद के साथ हुई डील को लेकर सवाल उठा रहे हैं.


नीतीश पर अब विश्वास नहीं
इधर, विपक्ष भाजपा आक्रामक मूड में नजर आ रही है. भाजपा के प्रवक्ता संतोष पाठक कहते हैं कि नीतीश पर अब विश्वास नहीं किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि सत्ता नीतीश की कमजोरी हो गई है, वे सत्ता के लिए किसी सर भी समझौता कर सकते हैं.


(आईएएनएस)