Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट बिहार सरकार के जातिगत सर्वेक्षण कराने के फैसले को बरकरार रखने वाले पटना हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने संबंधी याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई सितंबर में करेगा. न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने 23 जुलाई, 2024 दिन मंगलवार को पक्षकारों से कहा कि वे लिखित रूप में दलीलें दाखिल करें कि क्या राज्य को जातिगत सर्वेक्षण कराने का अधिकार है और किन शर्तों और परिस्थितियों में कानून के तहत ऐसी कवायद पर रोक है. 


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पीठ ने बिहार सरकार के जातिगत सर्वेक्षण को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह से कहा कि उनकी दलीलें इस बात पर आधारित होनी चाहिए कि क्या राज्य द्वारा एकत्र किये गये पूरे आंकड़े सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होने चाहिए या नहीं? सिंह ने कहा कि उनकी चुनौती का मुख्य बिन्दु यह है कि राज्य द्वारा कराए गए सर्वेक्षण से व्यक्तियों की निजता का उल्लंघन हुआ है, क्योंकि लोगों को उनकी जाति बताने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. 


उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 1992 के इंदिरा साहनी फैसले के तहत व्यक्तिगत जातिगत सर्वेक्षण पर रोक लगा दी गई है. सिंह ने कहा कि बिहार के सर्वेक्षण में सभी के लिए जातिगत पहचान बताना अनिवार्य कर दिया गया. 



न्यायमूर्ति खन्ना ने सिंह से कहा कि उन्हें आनुपातिकता के सिद्धांत को ध्यान में रखना होगा, जिसे हाल के दिनों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपनाया जा रहा है, और इस प्रश्न पर विचार करना होगा कि क्या कार्यपालिका जनसंख्या के बारे में आंकड़े एकत्र करने के लिए इस प्रकार की कवायद कर सकती है या नहीं, और यह किस हद तक गलत है. आनुपातिकता का सिद्धांत कहता है कि किसी सार्वजनिक प्राधिकार द्वारा की जाने वाली कार्रवाई उस लक्ष्य के अनुपात में होनी चाहिए, जिसे वह प्राप्त करना चाहता है. 


इनपुट: भाषा