सुशील कुमार मोदी बहुत झूठ बोलते हैं- शिवानंद तिवारी
बिहार में नई सरकार के गठन के बाद से ही पक्ष-विपक्ष के नेता एक दूसरे पर जनकर जुबानी हमला कर रहे हैं. जहां भाजपा नेताओं के निशाने पर नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव सहित प्रदेश के सभी मंत्री हैं वहीं सत्ता पक्ष के नेता लगातार भाजपा और उनके नेताओं के खिलाफ निशाना साध रहे हैं.
पटना : बिहार में नई सरकार के गठन के बाद से ही पक्ष-विपक्ष के नेता एक दूसरे पर जनकर जुबानी हमला कर रहे हैं. जहां भाजपा नेताओं के निशाने पर नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव सहित प्रदेश के सभी मंत्री हैं वहीं सत्ता पक्ष के नेता लगातार भाजपा और उनके नेताओं के खिलाफ निशाना साध रहे हैं. इसी क्रम में राजद के वरिष्ठ नेता ने शिवानंद तिवारी ने कहा कि सुशील कुमार मोदी बहुत झूठ बोलते हैं. उन्होंने फेसबुक पर यह लिखा है.
सुशील मोदी पर जमकर किया कटाक्ष
सुशील मोदी 1974 आंदोलन के नामी नेता थे. उस समय लालू यादव पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष थे तो सुशील महासचिव थे. वह आंदोलन छात्रों और युवाओं का था. इसलिए लालू जी के बाद सुशील मोदी का ही नाम अख़बारों में छपता था. नीतीश कुमार या हम जैसे लोगों का नाम कम से कम आंदोलन के शुरुआती दौर में, सुशील मोदी के मुकाबले कम जाना जाता था. आज उस आंदोलन के पचास वर्ष पूरा होने वाला है. इस बीच लालू यादव और नीतीश कुमार राष्ट्रीय राजनीति में दखल रखने वाले नेता की हैसियत में आ गए, लेकिन सुशील मोदी कहां तक पहुंचे! राजनीति में लालू और नीतीश के कंधे तक पहुंचने की तमन्ना रखने वाले सुशील इनके आस-पास भी नहीं पहुंच पाए.
कहा सुशील मोदी की राजनीति में कभी गंभीरता नहीं दिखी
सुशील मोदी की राजनीति में कभी गंभीरता नहीं दिखी. जब 1974 का आंदोलन चल रहा था. उस समय कुछ लोगों को अख़बारों में छपने का गंभीर रोग था. आज जैसा टेलीविजन वाला वह जमाना नहीं था. जो कम छपते थे स्वाभाविक था कि उनमें ज्यादा छपने वाले के विरूद्ध जलन होती थी. दो एक तो ऐसे थे जो अखबार वालों को देने के लिए जेब में हमेशा अपना पासपोर्ट साइज फोटो लेकर चलते थे. उन दिनों पटना से अखबार भी कम ही छपता था. मंटु दा यानी मंटु घोष उन दिनों पीटीआई के संपादक हुआ करते थे. बहुत आदर और सम्मान था उनका. कर्पूरी जी, गफूर साहब, तिवारी जी या अन्य नेताओं की भी बैठकी उनके दफ्तर में हुआ करती थी. 1974 के युवा नेताओं को भी उनका बहुत स्नेह मिलता था. अक्सर वहां पीटीआई से युवा नेताओं का बयान रिलीज हो जाता था. एक युवा नेता इस मामले में सबसे आगे थे. अक्सर उनका बयान छप जाता था. उन पर मजाक चलता था. उनका नाम ही पड़ गया था. टोल्ड पीटीआई. वे अखबार में उन दिनों खूब छपे लेकिन नेता नहीं बन पाए.