रांचीः एक तरफ सीएम सोरेन खनन पट्टा मामले में बुरी तरह घिरे हुए हैं. ऑफिस ऑफ प्राफिट के मसले पर उनकी सीएम कुर्सी खतरे में है. लिहाजा झारखंड में इस वक्त राजनीतिक संकट जारी है. शनिवार को इस पूरे प्रकरण में रिसॉर्ट पॉलिटिक्स की भी एंट्री हो गई है. वहीं यूपीए के सभी विधायक एकजुटता दिखा रहे हैं. बीजेपी इस पूरे मामले पर नजर बनाए हुए है और सियासी चाल दोनों ही पक्षों से चली जा रही है. 


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बीजेपी के भी सामने संकट!
बीजेपी जिस, सदस्यता के खत्म होने के मुद्दे पर मुखर है, इस मामले में झारखंड में खुद उसके ही हाथ रंगे हुए हैं. असल में बीजेपी के दो विधायकों के सिर पर सदस्यता समाप्ति की तलवार लटकी हुई है. इनमें एक हैं बाबूलाल मरांडी तो दूसरे हैं कांके भाजपा विधायक समरी लाल. बता दें कि दल बदल के मामले में  बाबूलाल मरांडी से जुड़ी याचिका में विधानसभा अध्यक्ष के कोर्ट में सुनवाई चल रही है. जबकि कांके से बीजेपी  विधायक समरी लाल के जाति प्रमाण पत्र मामले में कल्याण सचिव की अध्यक्षता एक जांच कमेटी का गठन किया गया था जिसने जांच में पाया था  कि वो झारखंड के स्थानीय निवासी नहीं हैं. 


बाबूलाल पर ये मामला
दल बदल के मामले में बाबूलाल मरांडी से जुड़ी याचिका में विधानसभा अध्यक्ष के कोर्ट में सुनवाई चल रही है. बाबूलाल मरांडी ने अपने दल जेवीएम का विलय बीजेपी में किया था. दलबदल मामले में बाबूलाल मरांडी के खिलाफ विधानसभा अध्यक्ष के कोर्ट में अलग-अलग कुल 4 मामला दर्ज कराया गया है. 


चुनाव जीतकर बीजेपी में हुए थे शामिल
बाबूलाल मरांडी जेवीएम के टिकट पर चुनाव जीतकर बीजेपी में शामिल हो गए थे इसके विरोध में पूर्व विधायक राजकुमार यादव, जेएमएम विधायक भूषण तिर्की, कांग्रेस विधायक दीपिका पांडेय सिंह और विधायक प्रदीप यादव एवं बंधु तिर्की ने याचिका दायर की है. 


कांके विधायक समरीलाल भी विवादित
वहीं, दूसरी ओर फर्जी कास्ट सर्टिफिकेट मामले में कांके से भाजपा विधायक समरीलाल भी विवादों में फंसे हुए हैं. उनके खिलाफ भी मामला निर्वाचन आयोग में है और उनकी भी सदस्यता पर समाप्ति की तलवार लटक रही है. कांके विधायक समरीलाल द्वारा गलत जाति प्रमाण पत्र के आधार पर चुनाव जीतने का मामला अप्रैल तक राजभवन में ही रहा था. राज्यपाल रमेश बैस इसकी समीक्षा कर शीघ्र ही चुनाव आयोग के पास राय लेने के लिए भेजने की बात कही थी. चुनाव आयोग से राय मिलते ही इस पर राज्यपाल द्वारा निर्णय लिया जाना तय है. हालांकि यह मामला झारखंड उच्च न्यायालय में भी चल रहा है, इसलिए राजभवन की नजर न्यायालय पर भी है.


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