कामरान, रांची : कफन में लिपटे इन शवों का कोई शिनाख्त नहीं है. ये किसी के पिता, तो किसी की मां, तो किसी के बच्चे हैं, लेकिन ये गुमनाम हैं. इनका अंतिम संस्कार करने वाला भी कोई नहीं था. संवेदना जगी और लावारिस लाशों के दाह संस्कार के लिए के लिए 'मुक्ति संस्था' ने चार वर्ष पहले बीड़ा उठाया. इसी कड़ी में आज मुक्ति संस्था के 50 से अधिक सदस्यों ने मिलकर रिम्स के पोस्टमार्टम हाउस में पड़े लावारिस शवों का जुमार नदी के तट पर अंतिम संस्कार किया.


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राजधानी रांची के रिम्स अस्पताल में आए दिन कई ऐसे बेघर लोग पहुंचते हैं जो किसी हादसे के शिकार हैं या फिर कई ऐसे मरीज अस्पताल में ही दम तोड़ देते हैं. इनके सिर पर किसी अपने का साया नहीं होता है. ऐसे में शव रिम्स के पोस्टमार्टम हाउस में ही पड़े रहते हैं और उनका अंतिम संस्कार करने वाला कोई नहीं होता है.


अभी तक संस्था के लोगों ने 700 से ज़्यादा लावारिस शवों का पूरे विधि विधान के साथ अंत्येष्टि किया है. मुक्ति संस्था से कुल 200 से अधिक सदस्य जुड़े हुए हैं, जो बेनाम शव का अंतिम संस्कार कर इस नेक कार्य में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कराते हैं. इस काम में उन्हें सरकार के साथ-साथ आम जनों का भी भरपूर सहयोग मिलता है.


लगभग हर बड़े सरकारी अस्पताल में लावारिस शव पड़ रहते हैं. इनके अंतिम संस्कार के लिए सरकार भी एनजीओ के मदद का ही इंतजार करती है.