सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद माइनिंग लीज़ आरोप का क्या औचित्य, सॉलिसिटर जनरल राजीव रंजन ने कही ये बड़ी बात
झारखंड सरकार के महाधिवक्ता राजीव रंजन ने बताया कि अब मुख्यमंत्री के खिलाफ झारखंड हाई कोर्ट में कोई भी मामला पेंडिंग नहीं है. ऐसे में जब माइनिंग लीज की शिकायत संबंधी याचिका को ही सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया तो फिर इलेक्शन कमीशन से की गई शिकायत पर भी उन्हें राहत मिलने की पूरी गुंजाइश है.
रांचीः झारखंड हाईकोर्ट में मुख्यमंत्री के खिलाफ दायर माइनिंग लीज और शेल कंपनी की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने नॉट मेंटेनेबल माना है. जिस ने मुख्यमंत्री को बड़ी राहत दी है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आर्डर शीट में यह लिखा गया कि it was not proper for the Highcourt to entertain a PIL which is based on mere allegations and half baked truth.
महाधिवक्ता ने कही ये बात
वहीं मामले पर झारखंड सरकार के महाधिवक्ता राजीव रंजन ने बताया कि अब मुख्यमंत्री के खिलाफ झारखंड हाई कोर्ट में कोई भी मामला पेंडिंग नहीं है. ऐसे में जब माइनिंग लीज की शिकायत संबंधी याचिका को ही सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया तो फिर इलेक्शन कमीशन से की गई शिकायत पर भी उन्हें राहत मिलने की पूरी गुंजाइश है. क्योंकि माइनिंग लीज के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही कह दिया था कि सेक्शन 9 ए रिप्रेजेंटेशन आफ पीपल्स एक्ट के दायरे में नहीं आता है और सरकार से कोई कॉन्ट्रैक्ट नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में स्टेट के स्टैंड को स्पष्ट किया है और लिखा है कि शिव शंकर शर्मा ने नहीं बताया कि माइनिंग लीज 10 साल से चल रहा है. उसने कहा कि 2021 में माइनिंग लीज मिल गया है जबकि माइनिंग लीज 2008 से 2018 तक भी था जो रिन्यू हुआ है. माइनिंग लीज होना गवर्नमेंट कॉन्ट्रैक्ट नहीं माना जाता है और 9 ए के दायरे में नहीं आता है.
जनहित याचिका का हो रहा है मिस यूज
झारखंड हाईकोर्ट ने भी जनहित याचिका के लिए एक नियम बनाया था जिसके तहत विस्तृत जानकारी दी जानी थी, लेकिन शिव शंकर शर्मा के नाम से दायर याचिका में नियम संगत जानकारी नहीं दी गई थी. वहीं महाधिवक्ता ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट का यह अहम जजमेंट इसीलिए भी है, झारखंड के लिए क्योंकि इस तरीके के तमाम पीआईएल जो बिल्कुल भी तथ्य हीन हैं और किसी गणमान्य व्यक्ति के खिलाफ कोई भी एलिगेशन लिखकर दे दे वह मान्य नहीं है. उसे पीआईएल की तरह ट्रीट नहीं किया जा सकता जिसके लिए झारखंड हाईकोर्ट ने खुद पीआईएल का नियम बनाया है. वहीं उन्होंने बताया कि यह पीआईएल पॉलिटिकल इंटरेस्ट लिटिगेशन था जो मोटिवेटेड था.
यह भी पढ़िएः उपचुनावों के रिजल्ट पर अब भी जारी बयानबाजियां, उपेंद्र कुशवाहा के बयान पर राजनीति शुरू