जामताड़ा : झारखण्ड के राज्यपाल रमेश बैस द्वारा 1932 खतियान विधेयक सरकार को लौटा देने के बाद से ही प्रदेश का सियासी पारा चढ़ गया है. हेमंत सोरेन ने 1932 के खतियान कानून को राज्यपाल द्वारा वापस लौटाने को लेकर कहा कि राज्यपाल केंद्र सरकार के इशारे पर चल रही है. यही कारण है कि खतियानी बिल को पास नहीं किया गया. खतियानी बिल के पास होने से राज्य के मूल वासियों को कई अधिकार मिल जाते जो केंद्र सरकार नहीं चाहती है. जिन राज्यों में केंद्र सरकार की डबल इंजन की सरकार है वहां अपने मन मुताबिक कानून बना रही है. उन्होंने कहा कि अगर झारखंड की सरकार कोई नियम कानून बनाती है तो बिहार और यूपी के लोगों के पेट में दर्द होता है. राज्यपाल कहते हैं कि कानून बनाना भारत सरकार का काम है.राज्य की 3.15 करोड़ जनता बोलती है कि जो 1932 के खतियानी है वही यहां के मूल वासी हैं. उन्होंने कहा कि राज्य में शुरुआत से ही आदिवासी और पिछड़े लोगों का शोषण होता रहा है.


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हेमंत सोरेन ने कहा कि बिहार से झारखंड अलग हुआ, हम लोगों की अवाज थी कि हम बिहार में नहीं रहेंगे, तब राज्य अलग हुआ. झारखंड के आंदोलन के बाद अब दूसरा आंदोलन 1932 खतियान को लेकर होगा, जो 1932 का नाम लेगा वह झारखंड में रहेगा. हम लोगों को आदत है आंदोलन कर अपना अघिकार लेने का, भारत को दिखा देंगे कि किस तरह अपना अधिकार लिया जाता है. 


इसके बाद जामताड़ा विधायक इरफान अंसारी ने कुंडहित में पत्रकारों से बातचीत करते हुए इस मामले पर कहा कि 1932 का खतियान झारखंडियों के लिए एक सुनहरा अवसर था. राजभवन द्वारा 1932 का खतियान वापस कर देना झारखंडियों के लिए काफी दुखद है. 


इरफान ने आगे कहा की राजभवन इस पर पुनर्विचार नहीं करती है तो कांग्रेस पार्टी सड़क से लेकर सदन तक आंदोलन करेगी. उन्होंने कहा कि अगर झारखंड में 1932 के खतियान लागू हो जाता है तो इस राज्य के मूल निवासियों को तृतीय एवं चतुर्थ वर्ग में नौकरी के लिए दर-दर भटकना नहीं पड़ेगा. उन्होंने अन्य राज्यों का हवाला देते हुए कहा कि दूसरे राज्यों में तृतीय एवं चतुर्थ वर्ग में नौकरी के लिए उन्हें राज्य के लोगों को प्राथमिकता दी जाती है. उन्होंने कहा की झारखंड में बिहार, छत्तीसगढ़ के आधे राज्यों से लोग आकर यहां नौकरी कर रहे हैं. झारखंड के बेरोजगार युवाओं के नौकरी को छीनकर बाहरी लोग ले रहे हैं. 


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