रांची: ऐसा लगता है कि हेमंत सोरेन सरकार और उनका गठबंधन बीजेपी को लगातार बैकफुट पर रखने में जुटा हुआ है. ऑपरेशन कमल की अटकलों के बीच पहले तो सोरेन ने विधानसभा में बहुमत साबित किया और अब आरक्षण पर बड़े फैसले लेकर बीजेपी के हाथ बांध दिए हैं. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

हेमंत सोरेन की कैबिनेट ने आरक्षण और डोमिसाइल पॉलिसी (Domicile Policy) पर बड़े फैसले किए हैं. राज्य में पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी के साथ-साथ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को मिलने वाले आरक्षण में वृद्धि का प्रस्ताव पारित किया गया है. 


ओबीसी-27, SC-12, ST-28% आरक्षण
स्वीकृत प्रस्ताव के अनुसार, ओबीसी को मिलने वाले आरक्षण को 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत किया जाएगा. इसी तरह अनुसूचित जाति यानी एससी को मिलने वाला आरक्षण 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति एसटी का आरक्षण 26 से बढ़ाकर 28 प्रतिशत किया जाएगा. 


EWS को 10 प्रतिशत आरक्षण
इसके अलावा अत्यंत गरीब वर्ग यानी EWS के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है. ये लागू हुआ तो कुल मिलाकर राज्य में आरक्षण का प्रतिशत 50 से बढ़कर 77 हो जायेगा. इसके साथ ही कैबिनेट ने झारखंड का डोमिसाइल यानी स्थानीय निवासी होने के लिए नया मापदंड तय किया है.


कैसे मिलेगा लाभ?
नई पॉलिसी के अनुसार जिन व्यक्तियों या जिनके पूर्वजों के नाम 1932 में राज्य में हुए भूमि सर्वे के कागजात यानी खतियान में दर्ज होंगे, उन्हें ही झारखंड का स्थानीय निवासी माना जायेगा. ऐसे लोग जिनके पूर्वज 1932 या उसके पहले से झारखंड में रह रहे हैं, लेकिन जमीन न होने के कारण जिनके नाम 1932 के खतियान में दर्ज नहीं होंगे, उन्हें ग्राम सभाओं की पहचान के आधार पर डोमिसाइल माना जायेगा. आरक्षण का लाभ उन्हें ही मिलेगा, जो झारखंड के डोमिसाइल होंगे.


केंद्र को भेजा जाएगा प्रस्ताव
कैबिनेट सचिव वंदना डाडेल ने बताया कि कैबिनेट में पारित प्रस्ताव के अनुसार आरक्षण बढ़ाने और डोमिसाइल की पॉलिसी लागू करने के लिए राज्य सरकार विधानसभा में विधेयक पारित करायेगी. इसके बाद इन्हें संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार को भी भेजा जायेगा. और यही बात इस मामले को सियासी रूप से संवेदनशील बनाती है. 


राज्य नहीं कर सकता आरक्षण देने की सीमा
दरअसल आरक्षण कितना देना है, ये राज्य अपने बूते तय नहीं कर सकता. इसमें केंद्र की भूमिका है. 1992 में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने आरक्षण की अपर लिमिट लगाई है. ये कुल मिलाकर 50% से ज्यादा नहीं हो सकती. कई राज्यों ने इस अपर लिमिट को पार करने की कोशिश की लेकिन या तो उनपर स्टे लग गया और फिर वो कानूनी पचड़ों में फंस कर रह गया.


सुप्रीम कोर्ट ने अंसैधानिक करार दिया था
जनवरी 2000 में तब के आंध्र प्रदेश के गवर्नर ने ऐलान किया था कि शिड्यूल एरिया में अनुसूचित जाति के लोगों को शिक्षक भर्ती में 100 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे अंसैधानिक करार दिया था. 


हाईकोर्ट ने सरकार के फैसले पर लगाई रोक
छत्तीसगढ़ सरकार ने OBC आरक्षण को 27 प्रतिशत बढ़ाने की कोशिश की थी. इसमें EWS कोटा को मिला दिया जाए तो राज्य में कुल कोटा 82 फीसदी हो जाता. लेकिन 2019 में हाईकोर्ट ने इसपर रोक लगा दी.


सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक
मध्य प्रदेश सरकार ने भी 2019 में ऐसा ही करने की कोशिश की लेकिन इसपर भी हाई कोर्ट ने रोक लगा दी. महाराष्ट्र सरकार ने 50 प्रतिशत मराठा आरक्षण का विधेयक पास किया था. लेकिन 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने इसपर रोक लगा दी.


कुछ राज्यों ने 50 प्रतिशत लिमिट को पार किया भी है तो वो संविधान की 9वीं अनुसूची में संसद से बदलाव करा कर. जैसे कि 1993 में एक कानून बनाकर तमिलनाडु ने कॉलेजों और राज्य सरकार की नौकरियों में 69% आरक्षण का प्रावधान किया. और यही बात झारखंड कैबिनेट के फैसले को बीजेपी से जोड़ती है. 


आरक्षण बढ़ाने की मांग
झारखंड सरकार चाहती है कि आरक्षण का कैप बढ़ाने के प्रावधान को 9वीं अनुसूची में शामिल किया जाए. अनुसूचि में शामिल होने के बाद कोर्ट इसमें दखल नहीं दे सकता. अगर केंद्र में बैठी एनडीए सरकार झारखंड सरकार के इस प्रस्ताव को आगे नहीं बढ़ाती है तो इसे हेमंत सोरेन और गठबंधन झारखंड में एक मुद्दा बना सकता है. 


मुश्किल में बीजेपी
जाहिर है संबंधित विधेयक झारखंड विधानसभा से पास हुआ और केंद्र में लटका तो कठघरे में बीजेपी होगी. गौरतलब है कि 9वीं अनुसूची केंद्र और राज्य के कानूनों की ऐसी सूची होती है, जिन्हें न्यायालय के समक्ष चुनौती नहीं दिया जा सकता.