रांची: झारखंड सरकार ने असम के चाय बागानों में काम करने वाले झारखंड के मजदूरों के हितों को ध्यान में रखते हुए एक महत्वपूर्ण फैसला लिया है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि राज्य सरकार असम में काम कर रहे झारखंड के मजदूरों की स्थिति का पता लगाएगी. असम के चाय बागानों में झारखंड से करीब 15-20 लाख आदिवासी और मूलवासी काम करते हैं, जिन्हें अब तक वहां का आदिवासी दर्जा नहीं मिला है.


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मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बताया कि अंग्रेजों के समय में झारखंड के आदिवासियों को काम करने के लिए असम, अंडमान और निकोबार जैसे दूर-दराज के इलाकों में बसाया गया था. अब उनकी सरकार ऐसे सभी मूल निवासियों को वापस झारखंड लौटने के लिए आमंत्रित कर रही है. इस मुद्दे को हल करने के लिए एक मंत्री स्तर की समिति बनाई जाएगी, जो इन मजदूरों की समस्याओं का आकलन करेगी और राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट देगी.


कैबिनेट की बैठक के बाद सचिव वंदना दादेल ने जानकारी दी कि असम में रहने वाली झारखंड मूल की चाय जनजातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग का दर्जा प्राप्त है. उनकी स्थिति सुधारने के लिए इन जनजातियों के सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक सर्वेक्षण कराने का निर्णय लिया गया है. इसके लिए एक विशेष समिति बनाई जाएगी, जिसका नेतृत्व झारखंड के अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अल्पसंख्यक एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री करेंगे.


राजनीतिक जानकारों का मानना है कि झारखंड सरकार के इस फैसले का दूरगामी प्रभाव असम की चाय बागान अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. असम के चाय बागानों में लगभग सात लाख मजदूर काम करते हैं, जिनमें से 70 प्रतिशत मजदूर झारखंड के संताल परगना और अन्य इलाकों के आदिवासी हैं. इन मजदूरों के बिना असम की चाय बागानों की उत्पादन क्षमता पर असर पड़ सकता है. इसके अलावा असम की चाय बागान अर्थव्यवस्था 5000 करोड़ रुपये की है और यह विदेशी मुद्रा में भी 3000 करोड़ रुपये का योगदान करती है.


झारखंड सरकार इस फैसले से झारखंड के मजदूरों को उनका हक और अधिकार दिलाने की दिशा में कदम उठा रही है, जो असम की राजनीति और अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित कर सकती है.


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