Karwa Chauth Mahtva: करवा चौथ की पूजा में क्या है कलश, थाली, करवा, दीपक और सींक का महत्व
Karva Chauth: करवा चौथ की पूजा में दीपक और छलनी भी शामिल होते हैं. दीपक ज्ञान के प्रकाश और चेतना का स्वरूप है. दीपक जलाने से नकारात्मकता दूर होती है एवं पूजा में ध्यान केंद्रित होता है.
रांचीः Karva Chauth Samagri Importance: करवा चौथ के व्रत में महिलाएं निर्जला व्रत रहती हैं. इस दौरान विभिन्न परंपराएं उनके व्रत का हिस्सा बनती हैं. करवा चौथ की पूजा में छलनी, दीपक, मिट्टी का करवा, सींक और कलश का बहुत महत्व है. इन सामग्रियों के बिना चौथ का पूजन नहीं होता है. सही मायनों में ये पांचों वस्तुएं पंच तत्वों का प्रतीक हैं. इन पंचों तत्वों को महिलाएं हाथ में लेकर ईश्वर से पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं. जानिए क्या है करवा चौथ में शामिल सभी पांच वस्तुओं का महत्व
करवा और करवा माता का चित्र
करवा चौथ की पूजा में करवा का बहुत महत्व है. यह मिट्टी का होता है और इसके जरिए चंद्र देव अर्घ्य दिया जाता है. करवा को संपूर्ण रूप से गणेश जी का प्रतीक माना जाता है. इसमें लगी जल की नली उनकी सूंड का प्रतीक है. भरा हुआ जल आत्मा का. करवा के ऊपर रखे पात्र में जलाया गया दीपक चेतना और आत्मा का स्वरूप है. यह जल और अग्नि तत्व के भी प्रतीक हैं. इस तरह महिलाएं ये कामना करती हैं कि गणेश जी उनके पति के जीवन में जल और अग्नि तत्व को बनाए रखें. यानि वह जीवन को बनाए रखने की बात करती हैं.
करवा माता की कथा में है कि करवा नाम की स्त्री के पति नदी में नहाने गए तो उनका पैर एक मगरमच्छ ने पकड़ लिया था. करवा में भरा जल इस नदी का भी प्रतीक है. करवा माता का चित्र बनाते हुए इन सारी घटनाओं का चिंत्राकन किया जाता है.
दीपक और छलनी का महत्व
करवा चौथ की पूजा में दीपक और छलनी भी शामिल होते हैं. दीपक ज्ञान के प्रकाश और चेतना का स्वरूप है. दीपक जलाने से नकारात्मकता दूर होती है एवं पूजा में ध्यान केंद्रित होता है जिससे एकाग्रता बढ़ती है. छलनी का प्रयोग के महत्व के पीछे का दृष्टिकोण है कि जिस तरह छलनी से छनकर सिर्फ साफ अनाज ही निकलपाता है और गंदगी या फिर गैर जरूरी चीजें अलग हो जाती हैं, वैसे ही जीवन की बाधाएं भी छन कर अलग हो जाएं.
सींक है इच्छाशक्ति का प्रतीक
करवा चौथ व्रत की पूजा सींक, इच्छाशक्ति का प्रतीक है. इसका संबंध भी करवा माता की कथा से जुड़ा हुआ है. कथा के अनुसार मां करवा के पति का पैर मगरमच्छ ने पकड़ लिया था. तब उन्होंने कच्चे धागे से मगर को आन देकर बांध दिया और यमराज के पास पहुंच गईं. वे उस समय चित्रगुप्त के खाते देख रहे थे. करवा ने सात सींक लेकर उन्हें झाड़ना शुरू किया जिससे खाते आकाश में उड़ने लगे. करवा ने यमराज से पति की रक्षा मांगी. जब यमराज ने उनकी बात नहीं मानी तो करवा माता ने उन्हीं सींको उनकी तरफ दिखाकर कहा कि सात सींक सात बाण बन जाएंगे. यमराज इस दृष्य से डर गए और तब उन्होंने मगर को मारकर करवा के पति के प्राणों की रक्षा कर उसे दीर्घायु प्रदान की.
कलश और थाली
करवाचौथ की पूजा में मिटटी या तांबे के कलश से चन्द्रमा को अर्ध्य दिया जाता है. पुराणों में कलश को सुख-समृद्धि,ऐश्वर्य और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है. मान्यता है कि कलश में सभी ग्रह,नक्षत्रों एवं तीर्थों का निवास होता है. इनके आलावा ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र, सभी नदियों, सागरों, सरोवरों एवं तैंतीस कोटि देवी-देवता कलश में विराजते हैं. इसके अलावा पूजा की थाली में रोली,चावल,दीपक, फल,फूल,पताशा,सुहाग का सामान और जल से भरा कलश रखा जाता है.करवा के ऊपर मिटटी की सराही में जौ रखे जाते हैं.जौ समृद्धि,शांति,उन्नति और खुशहाली का प्रतीक होते हैं. इन सभी सामग्रियों से करवा माता की पूजा की जाती है.
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