रांची : धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा के वंशज मंगल मुंडा जी का असामयिक निधन झारखंड के लिए एक गहरी वेदना और शर्मिंदगी का कारण बन गया है. सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल होने के बाद उनकी मृत्यु केवल एक हादसा नहीं है, बल्कि हमारी व्यवस्था की संवेदनहीनता और गरीबों के प्रति लापरवाही का भी एक काला अध्याय है.


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इलाज में हुई घोर लापरवाही
सड़क दुर्घटना के बाद मंगल मुंडा को इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उनकी गंभीर स्थिति के बावजूद ट्रॉमा सेंटर में समय पर बेड नहीं मिल सका. इलाज शुरू होने में 10 घंटे की देरी हुई, जो किसी भी मरीज के लिए घातक साबित हो सकती है. इतना ही नहीं, उनके परिवार को अपनी जेब से 15,000 रुपये की दवाइयां खरीदनी पड़ीं. यह स्थिति झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था की खामियों को उजागर करती है.


एक गरीब आदिवासी की अनदेखी
मंगल मुंडा केवल भगवान बिरसा मुंडा के वंशज ही नहीं थे, बल्कि झारखंड के उन लाखों गरीब आदिवासियों के प्रतिनिधि थे, जिनकी आवाज अक्सर दबा दी जाती है. जिस झारखंड को धरती आबा बिरसा मुंडा के आदर्शों पर चलकर आदिवासियों की भलाई का उदाहरण बनना चाहिए था, वहां उनके ही वंशज के साथ ऐसा अमानवीय व्यवहार हुआ.


व्यवस्था की हत्या
यह केवल एक सड़क दुर्घटना का मामला नहीं है, बल्कि हमारी लचर और असंवेदनशील व्यवस्था के कारण हुई एक व्यक्ति की हत्या है. आज यह सवाल उठता है कि अगर एक गरीब आदिवासी को समय पर इलाज नहीं मिल पाता है, तो हमारे समाज और सरकार की प्राथमिकताएं क्या हैं.


शर्मिंदगी का सवाल
मंगल मुंडा के निधन ने केवल उनके परिवार को नहीं, बल्कि पूरे झारखंड के गरीब और आदिवासी समुदाय को झकझोर कर रख दिया है. क्या यह वही झारखंड है, जो बिरसा मुंडा के सपनों का राज्य बनना चाहता था. क्या गरीबों और आदिवासियों की जिंदगी इतनी सस्ती हो गई है कि उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं.


सरकार और समाज के लिए सबक
मंगल मुंडा जी का निधन एक चेतावनी है कि अगर समय रहते व्यवस्था में सुधार नहीं किया गया, तो हम अपनी जड़ों और मूल्यों को खो देंगे. यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि हम किस दिशा में जा रहे हैं. उनकी आत्मा को शांति मिले और उनके परिवार को इस दुख को सहने की शक्ति प्रदान हो. लेकिन हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में किसी और गरीब को इस तरह की स्थिति का सामना न करना पड़े.


इनपुट- राजेश कुमार


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