झारखंड में जंगलों में एक से बढ़कर एक जड़ी-बूटियां मौजूद हैं. इसके बारे में यहां के जंगलों में रहने वाले आदिवासी बारीकी से जानते हैं. इन हरे पत्तों में छिपे औषधियों के गुण का इस्तेमाल यहां के आदिवासी खूब करते हैं. यही वजह है कि वो आज भी अंग्रेजी दवा से ज्यादा प्राकृतिक उपचार पर ही भरोसा करते हैं.
झारखंड के आदिवासी सर्दियों के मौसम में कुटई साग का खूब इस्तेमाल करते हैं. इस साग को खाने के कई सारे आयुर्वेदिक फायदे हैं. जिसके चलते आयुर्वेद के डॉक्टर भी कुटई के साग को खाने की सलाह देते हैं. कुटई का साग आयुर्वेदिक पोषक तत्वों से भरा हुआ खजाना है.
कुटई के साग में कई प्रकार के विटामिन मिनरल्स होते हैं. इस साग में विटामिन ए, बी, सी और उच्च मात्रा में फाइबर, मिनरल, आयरन, फाइबर पाया जाता है. इसका नियमित सेवन करने से शरीर और स्वास्थ्य पर काफी असर देखने को मिलता है. ये साग शरीर को डिटॉक्स करने का काम करता है.
कुटई के साग के सेवन से पेट से जुड़े हुए रोग में आराम मिलता है. इसके लगातार सेवन से हड्डियां को मजबूती मिलती है. लीवर के लिए इस साग को काफी फायदेमंद माना जाता है.
कुटई साग के सेवन से अनियमित पीरियड, बाल से जुड़ी समस्या, शरीर में खून की कमी, हृदय संबंधी रोग में भी फायदा मिलता है. झारखंड के आदिवासियों के खान-पान में कुटई का साग हमेशा से एक हिस्सा रहा है.
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