झारखंड: हार के `चक्रव्यूह` में कैसे फंसे रघुबर दास? बीजेपी क्यों पिछड़ी? पढ़ें-5 प्वाइंट
झारखंड चुनावों के अब तक के रुझानों के मुताबिक बीजेपी के हाथों से झारखंड फिसलता दिख रहा है.
नई दिल्ली: झारखंड विधानसभा चुनाव (Jharkhand Assembly Election 2019) के अब तक के रुझानों के मुताबिक बीजेपी के हाथों से झारखंड फिसलता दिख रहा है. राज्य की 81 सीटों पर हुए चुनावों में अबकी बार 65 पार का नारा देने वाली बीजेपी 30 सीटें हासिल करने के लिए संघर्ष करती दिख रही है. वहीं दूसरी तरफ हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM), कांग्रेस और राजद गठबंधन बहुमत से एक कदम आगे यानी 42 सीटों पर बढ़त बनाए हुए हैं. ऐसे में सवाल उठते हैं कि आखिर रघुबर दास के नेतृत्व में पार्टी क्यों पिछड़ी? यहां पांच प्वाइंट के आधार पर बीजेपी के पिछड़ने की वजहों को समझा जा सकता है.
1. स्थानीय मुद्दों की अनदेखी: रघुबर दास के नेतृत्व में बीजेपी ने जनता के स्थानीय मुद्दों की अनदेखी कर आर्टिकल 370, राम मंदिर, नागरिकता संशोधन कानून जैसे विषयों पर फोकस किया. इन मुद्दों के कारण पार्टी स्थानीय आधार पर लोगों से जुड़ नहीं सकी.
2. नेताओं की बगावत: बीजेपी के अंदर सरयू राय के नेतृत्व में एक धड़ा रघुबर दास की कार्यशैली पर सवाल उठा रहा था. रघुबर दास को मुख्यमंत्री के रूप में फिर से पेश नहीं करने की भी मांग इस धड़े ने की. लेकिन जब उनकी मांग को नामंजूर कर दिया तो वरिष्ठ नेता सरयू राय ने पार्टी से बगावत करते हुए जमदेशपुर पूर्व से रघुबर दास के खिलाफ खम ठोकने का निश्चय कर लिया. नतीजतन भितरघात का पार्टी को नुकसान हुआ.
3. गैर-आदिवासी कार्ड: पिछली बार चुनावों के बाद बीजेपी ने चुनावों में 37 सीटें हासिल करने के बाद गैर-आदिवासी कार्ड खेलते हुए रघुबर दास को मुख्यमंत्री बनाने का निश्चय किया. हालांकि विपक्ष ने उनको 'बाहरी' कहा. इस बार भी चुनावों में विपक्ष ने हेमंत सोरेन के समर्थन में आदिवासी बनाम गैर-आदिवासी कार्ड खेला.
4. महंगाई: चुनावों के दौरान प्याज समेत खाद्य वस्तुओं की बढ़ी कीमतों को भी विपक्ष ने मुद्दा बनाया.
5. बेरोजगारी: राज्य के चुनावों में बेरोजगारी बड़ा मुद्दा रहा. स्थानीय स्तर पर हरियाणा लोक सेवा आयोग समेत सरकारी नौकरियों में भर्तियों का नहीं आना बड़ा मुद्दा रहा.
बीजेपी के लिहाज से रुझानों के सियासी मायने
1. यदि बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो पाई तो हाल में महाराष्ट्र के हाथ में निकलने के बाद झारखंड के रूप में एक और राज्य बीजेपी के हाथ से निकल सकता है. हरियाणा में भी बीजेपी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था और पार्टी को चुनावों बाद दुष्यंत चौटाला से हाथ मिलाना पड़ा था.
2. नागरिकता संशोधन कानून का बीजेपी को कोई लाभ नहीं मिला. इस वक्त पूरे देश में ये सबसे अहम मुद्दा है. इसके खिलाफ देशव्यापी विरोध-प्रदर्शनों में अब तक 20 लोगों की मौत हो चुकी है. वैसे जब ये कानून अस्तित्व में आया तो झारखंड के तीन चरणों के चुनाव हो चुके थे और दो चरण रह गए थे.
3. बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने चुनावों में राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का बार-बार उल्लेख किया. लेकिन रुझान बता रहे हैं कि राम मंदिर पर आए नतीजों का लाभ पार्टी को नहीं मिला.
4. विपक्ष पर जनता का विश्वास पहले की तुलना में बढ़ा है. 2017 के बाद के विधानसभा चुनावों में एक ट्रेंड ये देखने को मिल रहा है कि जहां भी विपक्ष एकजुट होकर लड़ता है, वहां बीजेपी लक्ष्य के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाई. इस बार झारखंड के चुनावों में बीजेपी ने अबकी बार 65 पार का नारा दिया था.
5. चुनावों में मुख्यमंत्री रघुबर दास को लेकर बीजेपी के अंदरखाने में भी विरोध के सुर उठे. नतीजा ये रहा कि पार्टी के वरिष्ठ नेता सरयू राय उनके खिलाफ मैदान में ही निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में उतर गए. पार्टी का एक धड़ा रघुबर दास के चेहरे के साथ चुनाव में जाने के पक्ष में नहीं था. उनकी कार्यशैली पर सवाल खड़े किए गए. रुझानों को देखकर ऐसा लगता है कि जनता ने भी उन पर अपेक्षित भरोसा नहीं जताया.
6. बीजेपी अपने दम पर राज्यों में सरकार नहीं बना पा रही है.
7. क्षेत्रीय पार्टियां बीजेपी के लिए चुनौती बन रही हैं.
8. वोटरों का बीजेपी से मोहभंग हो रहा है. बीजेपी सरकार के कामकाज पर वोटरों का भरोसा कमजोर हो रहा है.
9. रघुवर सरकार के कामकाज पर जनता ने भरोसा नहीं किया.
10. राज्यों के मुद्दों को बीजेपी ने नजरअंदाज किया.