Bihar News: कल्पवास एक परंपरा है जो सदियों से सिमरिया के गंगा तट पर आयोजित होती रही है. देश मे धार्मिक आस्था के इस प्रमुख केंद्र पर जाती धर्म अमीरी गरीबी से अलग लोग पूर्ण कुटीरों मे रहकर श्रद्धाभाव से गंगा की पूजा अर्चना और मोक्ष पाने के लिए तपस्या करते है. आस्था का यही स्वरुप कल्पवास की परंपरा को बेहद खास और अलग बनाता है. मिथिलांचल के लोगों के लिए बेहद ही खास माने जाने वाले सिमरिया के इस तट पर देश ही नहीं नेपाल के भी श्रद्धालु कल्पवास के लिए आते है और पूरे एक महीने तक एक अलग और अनोखी दुनिया का एहसास कराते है, जो देश विदेश के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र होता है. इस बार कुंभ का भी आयोजन किया गया. स्कूल साइन स्नान में देश-विदेश समेत कई राज्यों से साधु संत शाही स्नान करने के लिए पहुंचे थे. हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने गंगा में आस्था की डुबकी लगाई. वहीं, बिहार सरकार की तरफ से अच्छे तरीके से सिमरिया धाम को रंग रूप देने का काम किया जा रहा है.


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सिमरिया मगध का उत्तरी, अंग का पश्चिमी और मिथिला का दक्षिणी किनारा होने के कारण यह एक विशिष्ट स्थान है. कहां जाता है कि इसी स्थान से होकर भगवान राम-सीता के साथ अयोध्या गए थे. इसी स्थान पर राजा जनक ने माता सीता के पैर पखारने का काम किया था. कहा जाता है कि राजा जनक ने भी यहां कल्पवास किया था, जिसके बाद सिमरिया मे कल्पवास की अनोखी परंपरा आगे बढ़ी. माना जाता है कि इसी इलाके मे समुद्र मंथन के साथ साथ राजा कर्ण का दाह संस्कार किया गया था. सिमरिया देव कर्म और पितृ कर्म का स्थान है. जहां पूजा पाठ के अलावा कोसी और मिथिलांचल से बड़ी संख्या मे लोग हर दिन दाह संस्कार के लिए आते है. बदलते वक्त और बदलते हालत के बाबजूद इस स्थान पर धर्म कर्म के अलावा कल्पवास की परंपरा ज्यो की त्यों चली आ रही है. 


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दरअसल, लोगों की श्रद्धा और इस स्थान की महत्ता को देखते हुए नीतीश कुमार की सरकार ने साल 2016 में काल्पवास को राजकीय मेला का दर्जा दिया, तब से लेकर आज तक यह स्थान आधुनिकता के रंग मे रंग गया. बताते चले की पूरे कार्तिक महीने मे लोग सुबह तीन बजे से ही उठकर गंगा की पूजा अर्चना से अपने दिन की शुरुआत करते है और इनका पूरा दिन धर्म कर्म मे वितता है. पूरे कल्पवास की खासियत यह है कि यहां ना अमीरी देखी जाती है ना गरीबी देखी जाती है है ना ही जात पात का रंग देखा जाता है. यहां हर कोई बस मोक्ष की प्राप्ति की कामना के साथ पूर्ण कुटीरों मे रहकर गंगा का सेवन करते है जो पूरे एक महीने तक चलता है. इस दौरान क्या बूढ़े क्या बुजुर्ग क्या महिलाये क्या जवान और क्या बच्चे आधुनिकता, भोग बिलास और भाग दौड़ की जिंदगी से अलग एक नई दुनिया का अहसास कराते है, जो बड़ा हीं मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है.


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चिरागमन महाराज ने बताया कि प्रत्येक 12 वर्षों पर यहां कुंभ और 6 वर्षों पर अर्ध कुंभ लगाया जाता है. गंगा का दर्शन हीं पाप से मुक्ति दिलाने वाला है. यहां आने वाले लोग पाप से मुक्त होते है. मिथिला वासी धन्य है जो विश्वामित्र के धनुष भंग हुआ. यह स्थान आदि शक्ति और ब्रह्म का मिलन स्थल है. उन्होंने बताया कि इस बार कुंभ का शाही स्नान में संत साधु कई राज्यों से आकर गंगा स्नान किया. खासकर इस बार कुंभ का आयोजन किया, जिसमें भारी संख्या में श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगाया. वही कल्पवास मेला के बारे में लोगों ने बताया की जैसा हमलोग जानते है कि राजा जनक जी से काल्पवास की शुरुआत हुई है. हमारे पूर्वज खखर बाबा लोटा में खिचड़ी बना कर लोगों का परमार्थ करते थे और भजन कीर्तन मे अपने जीवन को चलाते थे. इस संबंध लोगों बताया कि हम लोग मानते है कि सिमरिया से ही मिथिला की शुरुआत होती है. उन्होंने बताया कि मिथिला और कोसी का कोई घर ऐसा नहीं है जिनके पूर्वज का आत्मा यहां नहीं है. यह आठ करोड़ लोगों के आस्था का जगह है. 


रिपोर्ट: जितेंद्र कुमार