Ekadashi Vrat: एकादशी व्रत के बारे में आपने जरूर सुना होगा, जो सनातन धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. हर महीने दो बार एकादशी का व्रत रखा जाता है, जो कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की 11वीं तिथि को आता है. यह दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष अवसर होता है. लोग इस दिन व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करते हैं. ऐसा माना जाता है कि यदि भगवान विष्णु प्रसन्न हो जाएं, तो वे सभी इच्छाओं को पूरा करते हैं और हर काम में सफलता दिलाते हैं.


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आचार्य मदन मोहन के अनुसार एकादशी व्रत को सिर्फ पापों से मुक्ति दिलाने वाला ही नहीं, बल्कि मोक्ष प्राप्ति का साधन भी माना जाता है. यदि सच्चे मन और पवित्र भाव से इस व्रत को किया जाए, तो यह व्यक्ति को मोक्ष तक पहुंचा सकता है. इस व्रत के पीछे एक पौराणिक कथा है. कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने मुंडन नामक राक्षस का वध करने के लिए अपने शरीर के 11 अंगों से एक कन्या का सृजन किया था, जिसका नाम एकादशी रखा गया. इसी कारण इस व्रत का विशेष महत्व है.


बता दें कि महाभारत के समय पांडवों में से भीम ने भी एकादशी व्रत किया था और उन्हें बैकुंठ का वास मिला था. इस वजह से एक एकादशी को "भीमसेनी एकादशी" भी कहा जाता है. एक और प्रसिद्ध एकादशी है "निर्जला एकादशी," जिसमें बिना जल ग्रहण किए व्रत रखा जाता है. इसे बहुत ही फलदायी माना जाता है. अगर किसी कन्या का विवाह नहीं हो रहा हो, तो उसे यह व्रत रखने से विवाह जल्दी हो जाता है. साथ ही एकादशी के दिन कुछ खास नियमों का पालन भी किया जाता है. इस दिन तुलसी या किसी अन्य पेड़ के पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए. साथ ही तेल का सेवन भी वर्जित माना गया है. शुद्ध देसी घी में बना भोजन ही ग्रहण करना चाहिए. इस दिन शराब, मांसाहार और नशीली चीजों का सेवन पूरी तरह से वर्जित है.


इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि एकादशी के दिन चावल नहीं खाने चाहिए. इसके पीछे एक पौराणिक कथा है जिसमें कहा गया है कि महर्षि मेधा के शरीर त्याग से एकादशी के दिन अन्न उत्पन्न हुआ था, जिसे चावल कहा जाता है. इसलिए, चावल को जीव के रूप में माना गया और इस दिन उसका सेवन निषेध बताया गया है.


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