पटना: झारखंड में बीजेपी (BJP) की हार के अलग-अळग कारण बताए जा रहे हैं. जेडीयू (JDU) कह रही है कि अगर झारखंड में सहयोगी दलों के साथ गठबंधन होता, तो आज परिणाम बिल्कुल विपरीत होते. वहीं, भारतीय जनता पार्टी भी मानती है कि वहां चूक हुई है और अनुभवी नेताओं को किनारे करने से कार्यकर्ता भी नाराज हुए.


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आरजेडी ने कहा है कि एक साल में पांच राज्य बीजेपी के हाथ से निकल चुके हैं. झारखंड में 65 प्लस का दावा करने वाली बीजेपी चुनाव हार चुकी है. चुनाव में हार क्यों हुई इसके अलग-अलग कारण बताए जा रहे हैं. बिहार में बीजेपी और उसकी सहयोगी जेडीयू ने वजह बताई है.


बिहार बीजेपी के मुताबिक, झारखंड में अनुभवी नेताओं की नाराजगी पार्टी पर भारी पड़ी है. पार्टी प्रवक्ता अजीत चौधरी के मुताबिक, झारखंड में सरकार की जगह अफसरशाही हावी रही है. इसलिए नेता और कार्यकर्ता पार्टी से दूर होते चले गए. अजीत चौधरी ने कहा है कि अनुभवी नेताओं की उपेक्षा भी पार्टी पर भारी पड़ी है.


उन्होंने कहा कि अफसरशाही और कार्यकर्ताओं की नाराजगी से चुनाव हारे हैं. जो अनुभवी लोग थे उनकी उपेक्षा हुई है. लेकिन हार में भी जीत छिपी होती है और हेमंत सोरेन को पार्टी की तरफ से बधाई है.


दूसरी तरफ जनता दल यूनाइटेड ने कहा है कि बीजेपी ने झारखंड में अपनी अहम सहयोगी आजसू की उपेक्षा की. पार्टी प्रवक्ता राजीव रंजन ने कहा है कि, अगर झारखंड में भारतीय जनता पार्टी ने सहयोगी दलों के साथ चुनाव लड़ा होता तो तस्वीर बिल्कुल उलट होती. लेकिन वहां इसके साथ ही आदिवासियों में भी सरकार के लिए नाराजगी थी.


आरजेडी नेता सुबोध राय का कहना है कि लगातार हो रही जीत से बीजेपी में अहंकार हो गया था. उसके मुख्यमंत्री कार्यकर्ताओं की भी बात नहीं मान रहे थे. बीजेपी में अहंकार था लिहाजा जनता ने उसे सीख दी है.


उन्होंने कहा कि झारखंड में बीजेपी ने अपने बलबूते चुनाव लड़ा. लेकिन अगर बीजेपी ने सहयोगी दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ा होता तो, परिणाम बिल्कुल उलट होते. आरजेडी नेता ने कहा कि बीजेपी को सहयोगी दलों के साथ चलना चाहिए था.


सुबोध राय ने कहा कि लगातार जीत से बीजेपी को अहंकार हो गया था. कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया था. क्या ऐसे नारे उचित थे. लेकिन झारखंड की जनता ने सिखाया है कि सिर्फ पूंजीपतियों के भरोसे चुनाव नहीं जीत सकते हैं. चुनाव जीतेने के लिए जनता के दिलों में उतरना होता है.