राजेश कुमार/रांची: 23 जनवरी यानी आज (शनिवार) उस शख्स की जयंती (Subhash Chandra Bose Jayanti) है, जिनके बारे में कभी गोपाल प्रसाद व्यास ने लिखा था,


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'आजानु-बाहु ऊँची करके,
वे बोले, "रक्त मुझे देना।
इसके बदले भारत की
आज़ादी तुम मुझसे लेना।"


हो गई सभा में उथल-पुथल,
सीने में दिल न समाते थे।
स्वर इनकलाब के नारों के
कोसों तक छाए जाते थे. '


जिन्होंने कभी गुलाम भारत में आह्वान किया था, 'कि तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा', पूरे देश ने इस नारे पर यकीन भी किया था क्योंकि देश को 'देशनायक' पर भरोसा था, सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) पर भरोसा था।


सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose Birth Anniversary) का जन्म कोलकाला के एक रईस बंगाली परिवार में जानकीनाथ बोस और प्रभावती देवी के घर 23 जनवरी 1897 को हुआ था. सुभाष चंद्र बोस हिन्दुस्तान के स्वाभिमान का प्रतीक बन गए थे. एक तरफ आईसीएस जैसी कठिन परीक्षा में सफल होने का हुनर था, तो दूसरी तरफ प्रतिष्ठित पद को ठुकराने का साहस भी था.


सुभाष चंद्र बोस के जीवन पर बात करने लगेंगे तो कागज के पन्ने कम पड़ जाएंगे, आज हम बात करेंगे नेताजी सुभाष चंद्र बोस के झारखंड कनेक्शन की, झारखंड यानी कि उस वक्त का अविभाजित बिहार.


1939 में गुजरात के हरिपुरा में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था, जिसमें सुभाष चंद्र बोस अध्यक्ष चुने गए थे. इसके बाद 1940 के त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन में भी वे कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए, हालांकि गांधी जी से वैचारिक मतभेद के बाद परिस्थिति ऐसी हो गई कि उन्हें इस्तीफा देना पड़ गया.


पूर्वी सिंहभूम के पोटका प्रखंड के कालिकापुर में 5 दिसंबर 1939 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस आए थे. बताया जाता है कि गांववालों ने जब इलाके के चरित्रहीन दारोगा के खिलाफ आवाज उठाई तो कई गांववालों पर फर्जी मुकदमा लाद दिया गया. इसके बाद गांव में नेताजी के कदम पड़े. गांववालों ने आज भी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी स्मृतियों को संजोकर रखा है.


इसके बाद नेताजी सुभाषचंद्र बोस झारखंड तब आए जब ऐतिहासिक रामगढ़ अधिवेशन हो रहा था. 1940 में नेताजी खूंटी होते हुए रांची पहुंचे थे और फिर रामगढ़ गए थे. लालपुर में वे स्वाधीनता सेनानी फणींद्रनाथ के घर रूके थे. फणींद्रनाथ के परिवार ने भी नेताजी से जुड़ी निशानियों को सहेज कर रखा है.


झारखंड से सुभाष चंद्र बोस का रिश्ता इतना गहरा है कि जब वे देश से बाहर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जंग का एलान करने जा हे थे तो झारखंड से ही ट्रेन पर सवार हुए थे. नेताजी सुभाष चंद्र बोस को अंग्रेजों ने 1940 में गिरफ्तार कर लिया था, अपनी गिरफ्तारी के खिलाफ सुभाष बोस ने जेल में अनशन शुरू कर दिया, जब तबीयत बिगड़ने लगी तो उन्हें उनके ही घर में नजरबंद कर दिया गया. इसके बाद उन्होंने पेशावर के फॉरवर्ड ब्लॉक लीडर अकबर शाह से संपर्क किया, और देश से बाहर रूस जाने की योजना बनाई. हालांकि, उन्हें रूस की बजाए काबुल (Kabul) के रास्ते जर्मनी (Germany) जाना पड़ा.


16 जनवरी 1941 को रात 1.30 बजे सुभाष बोस ने वेष बदलकर बीमा एजंड मोहम्मद जियाउद्दीन का वेष बनाया. अपने भतीजे शिशिर बोस को साथ लेकर नेताजी कार के जरिए कोलकाता से निकल पड़े. नेताजी के बड़े भाई शरत चंद्र बोस के नाम से 1937 मॉडल की ऑडी रैंडरर डब्ल्यू 24 कार थी जिसका रजिस्ट्रेशन नंबर था BLA 7169, ये कार नेताजी के परिवार ने 1937 में खरीदी थी. बताया जाता है कि देश में खरीदी गई ये पहली ऑडी कार थी. इसी गाड़ी में नेताजी ने आखिरी बार भारत में सफर किया था.


इस कार का इस्तेमाल 1957 तक शिशिर बोस ने किया, और बाद में नेताजी रिसर्च ब्यूरो म्यूजियम को दे दिया गया. म्यूजियम में पड़े-पड़े कार में जंग लग गया और ये खराब हो गई. इसके बाद शिशिर बोस के पुत्र सुगाता बोस ने ऑडी कंपनी से संपर्क कर कार को दोबारा रिस्टोर किया. ये कार आज भी नेताजी के एल्गिन रोड कोलकाता के घर में लोगों के देखने के लिए रखी गई है.


जब नेताजी अपने भतीजे शिशिर के साथ कोलकाता के अपने घर से आधी रात को अंग्रेज पुलिसवालों की आंखों में धूल झोंककर निकले तो उन्होंने ग्रांड ट्रंक रोड की राह ली और सुबह आसनसोल पहुंचकर कार में पेट्रोल भरवाया. इसके बाद उन्होंने धनबाद की राह ली जहां बरारी में उनके एक और भतीजे अशोक बोस इंजीनियर के पद पर तैनात थे. यहां बीमा एजेंट मोहम्मद जियाउद्दीन बनकर वो दिन भर रहे और रात को अपने दोनो भतीजे और बड़े भतीजे की पत्नी के साथ गोमो स्टेशन आए, जहां से दिल्ली जाने के लिए कालका मेल पकड़ी और दिल्ली से फ्रंटियर मेल पकड़कर वो पेशावर पहुंचे।.आज गोमो स्टेशन का नाम बदलकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस स्टेशन (Netaji Subash Chandra Bose Station) कर दिया गया है. यही वो जगह है जहां से नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने देश की माटी को आखिरी बार सलाम किया था.