पटना : पूर्व विदेश मंत्री और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की कद्दावर नेता रही सुषमा स्वराज का बिहार से भी गहरा लगाव था. वह लोकनायक जयप्रकाश नारायण से काफी प्रभावित थीं. इतना ही नहीं, 1977 में जब जॉर्ज फर्नांडिस लोकसभा चुनाव लड़ रहे थे तो उसकी कमान सुषमा स्वराज के पास ही थी. उनके पति स्वराज कौशल भी सोशलिस्ट रहे हैं और जॉर्ज फर्नांडिस के मित्र भी. 1974 में जॉर्ज के आह्वान पर ही देश भर में रेल हड़ताल हुई थी. भारत में पहली बार ऐसा हुआ था. कांग्रेस सरकार ने बदले की आग में जॉर्ज को मुजफ्फरपुर जेल में डाल दिया था.


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इसके बाद जार्ज फर्नांडिस पर पर देशद्रोह का आरोप लगा था. बड़ौदा डायनामाइट कांड के नाम से यह घटना मशहूर हुआ. आरोप था कि सरकारी कार्यालयों को उड़ाने का षड्यंत्र जॉर्ज और उनके समाजवादी साथियों ने किया. बाद में केस खत्म हो गया. इस केस में सुषमा और स्वराज कौशल ने जॉर्ज का बचाव किया था. लीगल एक्शन कमेटी टीम में और भी वकील शामिल थे.


1977 में जॉर्ज को मुजफ्फरपुर से टिकट मिला. वह यहीं जेल में बंद थे. उनके चुनाव में सुषमा ने रात-दिन एक कर दिया. नुक्कड़ सभाएं करना. आम सभा के दौरान चुनाव के लिए लिए जनता से चंदा मांगना. यह उस दौर की बात है, जब पटना से गंगा पार करने का साधन सिर्फ पनिया जहाज ही था. पटना से पहलेजा पहुंचने पर वहां से ट्रेन या सड़क मार्ग से मुजफ्फरपुर जाना पड़ता था. मतलब, उस दौर में पटना से मुजफ्फरपुर जाना आसान नहीं था.


विजय किशोर तब बिहार विवि छात्र संघ से जुड़े थे. युवापन की कहानी फोन पर बताते फफक पड़ते हैं. जॉर्ज की हथकड़ियों वाली तस्वीर चर्चित हुई. इसके पीछे सुषमा स्वराज ही थी. तब फोटो का चुनाव में देश भर में उपयोग हुआ था. इस फोटो का पोस्टर, बैनर, कट आउट बना. उस पर लिखा था, यह हथकड़ी हाथों में नहीं, लोकतंत्र पर है. जेल का ताला टूटेगा, जॉर्ज फर्नांडिस छूटेगा. युवाओं में यह बहुत लोकप्रिय था. प्रेरित करनेवाला क्रांतिकारी.


जार्ज को चुनाव जिताने के लिए सुषमा ने दिन रात एक कर दीं. न खाने की कोई चिंता और न आराम करने की फिक्र. कार्यकर्ताओं को प्रेरित करना. किसी घर से खाना मांग कर खा लेना. गांव-गांव घूमना. बस एक ही जज्बा था, जॉर्ज को जिताना. मेहनत रंग लाई. आखिर जॉर्ज चुनाव जीते. हथकड़ियां खुलीं. जेल का फाटक भी खुला. उन्होंने कांग्रेस के मज़बूत उम्मीदवार नीतीश्वर सिंह को हराया था. रिकॉर्ड मत मिले थे. इसके पीछे सुषमा स्वराज का बहुत श्रम था. विजय किशोर बताते हैं कि उनकी बोलने की शैली, ओजस्विता, प्रखरता, निडरता प्रेरित करती हैं. वो कभी बदलीं नहीं. इन्हीं कारणों से जेपी उनको बहुत मानते थे.


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