झारखंड के चक्रधरपुर बालाजी मंदिर में बीते पांच दिनों से चल रहा 36वां पंचहनिका ब्रह्मोत्सव भगवान बालाजी के विवाह पूजन अनुष्ठान (कल्याणम) के साथ संपन्न हुआ.
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आनंद प्रियदर्शी/चक्रधरपुरः झारखंड के चक्रधरपुर बालाजी मंदिर में बीते पांच दिनों से चल रहा 36वां पंचहनिका ब्रह्मोत्सव भगवान बालाजी के विवाह पूजन अनुष्ठान (कल्याणम) के साथ संपन्न हुआ. इस खास पूजनोत्सव में सैकड़ों विवाहित जोड़ियों ने कल्याणम पूजा में शामिल होकर भगवान बालाजी के साथ विवाह का संकल्प लेने का सौभाग्य प्राप्त किया.
इस खास पूजन समारोह में शामिल होने और इसका गवाह बनने के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु मंदिर परिसर में मौजूद थे. खासकर दक्षिण भारतीय समाज के लोगों की संख्या इसमें ज्यादा थी. इससे पहले चक्र स्नानम, ध्वजा अवरोहणम, पूर्णाहुति कार्यक्रम संपन्न हुआ. इसके बाद विवाह पूजन अनुष्ठान की शुरुआत हुई.
इस पूजन समारोह में भगवान बालाजी का विवाह माता पद्मावती और माता अन्डालू के साथ दक्षिण भारतीय रीती रिवाज में पुरे विधि विधान के साथ कराया गया. विवाह से पहले भगवान बालाजी, माता पदमावती(लक्ष्मी) एवं माता अंडालु (भूदेवी) की मुर्तियों को सोना चांदी के गहने व रेशमी वस्त्र पहना कर भव्य श्रंगार किया गया. तिरुपति से आये पंडित अनंतनारायनचार्युल ने दक्षिण भारतीय परंपरा के अनुसार पूरे विधी विधान से वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ भगवान बालाजी का विवाह संपन्न करवाया.
वहीँ भगवान बालाजी की प्रतिमा के समक्ष बैठे सैकड़ों विवाहित जोड़ियों की भी भगवान बालाजी के साथ सामूहिक विवाह हुई. सभी ने भगवान बालाजी के साथ विवाह का संकल्प लिया. इस दौरान पूरा मंदिर प्रांगण दक्षिण भारतीय गाजे बाजे की धून से गुंजायमान रहा. शाम से शुरू हुआ यह अनुष्ठान देर रात तक चला.
चक्रधरपुर में इस ब्रह्मोत्सव के बहाने दक्षिण भारतीय समाज के लोगों का महा जुटान हुआ. देश के कोने कोने में निवास करने वाले दक्षिण भारतीय समाज के लोग मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई जैसे शहरों से चक्रधरपुर बालाजी मंदिर पहुंचे थे. दरअसल रेल नगरी चक्रधरपुर के पंचमोड़ में वर्ष 1983 में दक्षिण भारतीय रेलकर्मियों ने मिलकर रेल प्रशासन की अनुमति से आन्ध्रा एसोसियेशन के बैनर पर बालाजी मंदिर की स्थापना की थी. श्रद्धालुओं में आस्था का केंद्र बना चक्रधरपुर बालाजी मंदिर 34 वर्ष पुरे कर चूका है. लेकिन मंदिर और भगवान् बालाजी को समर्पित श्रद्धा लोगों को यहां तक खिंच लाती है.
मंदिर की स्थापना करने वाले रेलवे से रिटायरमेंट के बाद देश के विभिन्न ईलाकों में चले गए हैं. लेकिन वेब्रह्मोत्सव में अपने परिवार संग चक्रधरपुर जरुर पहुँचते हैं. यही नहीं ब्रह्मोत्सव की तैयारी से लेकर इसके सञ्चालन और समापन की भी जिम्मेदारी प्रदेश में रहकर निभाते हैं. मंदिर के संस्थापक सदस्यों की अनुपस्थिति में उनके संतान मंदिर के विकास कार्यों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं.
यही वजह है की दूर रहकर भी दक्षिण भारतीय समाज के लोगों को एक सूत्र में बांधने का काम भगवान वेकटेश्वर अपने बालाजी मंदिर से कर रहे हैं. केवल दक्षिण भारतीय ही नहीं बल्कि अन्य जाती व समुदाय से जुड़े लोग भी बालाजी मंदिर में आस्था रखते हैं. यह मंदिर रेलनगरी चक्रधरपुर के हिन्दू धर्मावलम्बियों के लिए सबसे खास और आस्था का केंद्र माना जाता है. जो किसी कारन तिरुपति नहीं जा पाते उन्हें तिरुपति की तरह पुजन प्रक्रिया और भगवान् बालाजी के दर्शन के साथ साथ उनका आशीर्वाद यहां प्राप्त होता है.