पश्चिम बंगाल चुनाव का बिहार कनेक्शन, आखिर क्यों खल रही लालू यादव की कमी?
West Bengal Election 2021: आज ज्योति बसु के ही बंगाल में सियासत के नाम पर जो कुछ हो रहा है वो सोचने पर मजबूर कर रहा है और इन्हीं वजहों से लालू प्रसाद की सियासी समझ को याद करना जरूरी लग रहा है.
Patna: बिहार में सियासी सत्ता की धुरी रहे लालू प्रसाद के सितारे कुछ मद्धम पड़ गए हैं. ढलती उम्र, कमजोर होती काया और कुछ सियासी गलतियां अब उन्हें परेशान करने लगी हैं. हालांकि, सत्ता से दूर रहकर भी लालू प्रसाद की कमी नहीं हुई है. उन्होंने अपने लाड़लों को सियासी गुर जरूर सिखाया है. लेकिन कमान अपने हाथ में ही रखी है. आज लालू प्रसाद की बात और उनकी सियासी दूरदर्शिता की बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि पश्चिम बंगाल में हो रहे चुनाव में जो तस्वीरें देखने को मिल रही हैं वह मजबूर कर रही हैं.
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ज्योति बसु को लालू मानते हैं गुरु
लालू प्रसाद की सियासी तिलिस्म, उनकी भाषा, बोली मजाकिया अंदाज और जनता की नब्ज टटोलने की कला ही तो थी. इनमें से कुछ गुर लालू प्रसाद ने पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु से सीखे थे और उन्हें अपना सियासी गुरु भी मानते थे. लेकिन आज ज्योति बसु के ही बंगाल में सियासत के नाम पर जो कुछ हो रहा है वो सोचने पर मजबूर कर रहा है और इन्हीं वजहों से लालू प्रसाद की सियासी समझ को याद करना जरूरी लग रहा है.
बात पुरानी नहीं है
बहुत पुरानी बात नहीं है. 31 साल पहले 1990 में लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) को बिहार की सत्ता हाथ लगी थी. लेकिन बिहार की सत्ता हासिल करने के लिए उन्हें कई तरह के पापड़ बेलने पड़े थे. विरोधी दल का नेता होते हुए उन्होंने ना सिर्फ अपनी सियासी जमीन तैयार की बल्कि सियासी मित्र भी बनाए, जो आज की सियासत में कम दिखती है. अब तो सिर्फ अवसरवादी मित्र बनते हैं.
विधायक दल के नेता पर फंसा था पेंच
इस बात का जिक्र यहां इसलिए जरूरी है क्योंकि तब लालू प्रसाद के सियासी मित्र नहीं होते तो शायद 1990 में लालू प्रसाद बिहार के मुख्यमंत्री नहीं बने होते. उस वक्त बिहार में विधानसभा की 324 सीटें होती थी. 1990 के विधानसभा चुनाव में जनता दल सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. जनता दल के खाते में कुल 122 सीटें आई थी. लेकिन विधायक दल का नेता कौन होगा इसे लेकर मतभेद हो गया था.
नंबर गेम के माहिर लालू ने दिखाया अपना खेल
कहा जाता है कि पूर्व मुख्यमंत्री रामसुंदर दास (Ramsundar Das) विधायकों की पहली पसंद थे. क्योंकि बिहार में तब अगड़ा और पिछड़ा की हवा जोरों पर थी और अगड़ी जातियों की पसंद रामसुंदर दास थे. लेकिन सियासत के चतुर खिलाड़ी लालू प्रसाद यादव इस मौके को यूं हीं हाथ से नहीं जाने देना चाहते थे. उन्होंने अपनी दावेदारी भी पेश कर दी. लेकिन बात नंबर गेम की थी, जिसमें उस वक्त लालू प्रसाद कमजोर दिख रहे थे. इसके लिए उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से मदद मांगी.
ऐसे हुई लालू की सियासत में इंट्री
चंद्रशेखर जी ने मदद का भरोसा दिया और तब शुरू हुआ असली सियासी खेल. मुख्यमंत्री के दावेदारों की फेहरिस्त में एक और नाम शुमार हो गया और वो नाम था दिवंगत रघुनाथ झा का. फिर क्या था. विधायक दल के नेता के चुनाव के लिए वोटिंग हुई. कुछ वोट रघुनाथ झा की झोली में गए. रामसुंदर दास सियासी बिसात पर मात खा गए और लालू प्रसाद ने बाजीगर बनकर भारतीय राजनीति में एंट्री मारी.
बसु नहीं 'दीदी' के साथ तेजस्वी
अब बंगाल (West Bengal Election 2021) में लालू प्रसाद के राजनीतिक गुरु ज्योती बसु (Jyoti Basu) की पार्टी CPM बेहद कमजोर पड़ गई है. लिहाजा उनके लाडले भी बंगाल के चुनाव में दिलचस्पी दिखाने लगे. लेकिन आज के दौर की सियासी मांग के मुताबिक उन्होंने ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) की पार्टी टीएमसी (TMC) का समर्थन किया.